पहली परीक्षा और शैतान की चाल

छाया हँस पड़ी। "डर लग रहा है न? ये तेरा सबसे बड़ा डर है, आरव—अपनों को खो देने का डर। तू खुद को ताकतवर समझता है, लेकिन हकीकत में तू बिल्कुल अकेला है!" आरव का सिर घूमने लगा। उसका शरीर कांप रहा था।

भीष्म का आदेश—"डर मत!" मंदिर के बाहर खड़े भीष्म ने अपनी तलवार ज़मीन पर मारते हुए गरजकर कहा, "डर मत, आरव! ये सब तेरी कल्पना का जाल है। अगर तू इसे सच मान लेगा, तो हार जाएगा!"

उनकी आवाज़ ने मानो आरव के अंदर एक ऊर्जा भर दी। उसने गहरी साँस ली और अपने हाथ ज़मीन पर रखे।

"ये सच नहीं हो सकता!"

छाया रुकी। "क्या?"

आरव की आँखों में अब विश्वास था। "ये सब मेरा भ्रम है! मैं इससे नहीं डर सकता!" और तभी, आरव के शरीर से एक तेज़ प्रकाश निकला। उसकी छाया चीख उठी। दर्पण चटकने लगा, और एक भयंकर धमाके के साथ चूर-चूर हो गया! भीष्म ने मुस्कराते हुए कहा, "शिष्य, तूने अपनी पहली परीक्षा पार कर ली। लेकिन असली जंग अभी बाकी है।"

दूसरी ओर, अंधकार के गर्भ में, एक काले महल के भीतर, एक गहरे सिंहासन पर एक आकृति बैठी थी। उसकी लाल आँखें अंधेरे में चमक रही थीं। उसके चारों ओर दर्जनों प्रेत खड़े काँप रहे थे। एक ने हिम्मत जुटाकर कहा, "स्वामी, अमावस्या के लिए सब तैयार है। परंतु..."

"परंतु क्या?" सिंहासन पर बैठे व्यक्ति की आवाज़ इतनी भयावह थी कि वो प्रेत काँप उठा।

"आरव... उसने अपनी पहली परीक्षा पार कर ली है।"

महल की दीवारें हिल गईं। शैतान ने धीरे से सिर उठाया। "तो वो तैयार हो रहा है..." तभी एक अन्य प्रेत आगे बढ़ा और कांपते हुए बोला, "स्वामी, यदि आरव अपनी शक्तियाँ जागृत कर ले, तो वह..."

"चुप!" शैतान की गरज इतनी भयानक थी कि वह प्रेत वहीं जलकर राख हो गया!

"मुझे कोई हरा नहीं सकता। मैं सिर्फ एक राक्षस नहीं... मैं स्वंय 'काल' हूँ!" उसकी आवाज़ से पूरी धरती थर्रा उठी। "संसार के इतिहास में मेरा नाम लेने से लोग डरते हैं। सदियों पहले, जब मैं जन्मा था, तब देवताओं ने खुद मेरी आत्मा को नष्ट करने की कोशिश की थी। लेकिन वो भूल गए कि मैं सिर्फ शरीर नहीं, एक अभिशाप हूँ! मेरा अस्तित्व खुद मृत्यु के नियमों से परे है!" उसने अपने हाथ उठाए और आसमान में बिजली कड़कने लगी।

"अब अमावस्या की रात, आरव का अंत होगा। मैं उसे उसके पिता की तरह जला दूँगा!"

उधर, वीर प्रताप और सुमित्रा गुप्त किताब के पन्ने पलट रहे थे। "ये नक्शा एक गुफा तक जाता है," वीर प्रताप ने कहा।

व्यास ने सिर हिलाया। "हाँ। ये वही गुफा है जहाँ हरीश ने अपनी आखिरी योजना बनाई थी। इसमें छुपी है एक ऐसी शक्ति, जो अगर आरव तक पहुँच गई, तो काल भी उसे नहीं हरा पाएगा।"

सुमित्रा की आँखों में चिंता थी। "लेकिन क्या आरव समय रहते वहाँ पहुँच पाएगा?" व्यास ने गंभीरता से कहा, "अगर वो वहाँ नहीं पहुँचा, तो संसार पर हमेशा के लिए अंधकार छा जाएगा!"

इधर चारों ओर अंधेरा था। हवाओं में सिसकियाँ थीं। वह स्थान जहाँ कोई भी जीवित नहीं रह सकता था—काल-दुर्ग!

इस महल में प्रवेश करते ही आत्माएँ खुद को भस्म होते देखतीं। यहाँ शैतान का शासन था—वह राक्षस, जिसका नाम तक लेने से लोग डरते थे। लेकिन आज, इस महल में किसी ने उसका नाम लिया।

"द...." एक भयंकर आवाज़ गूँजी।

सिंहासन पर बैठे लाल आँखों वाले उस राक्षस ने धीरे से सिर उठाया। "किसने हिम्मत की मेरा नाम लेने की?" उसकी आवाज़ किसी गरजते हुए तूफान जैसी थी।

एक गहरी छाया सिंहासन के सामने आकर खड़ी हो गई। यह कोई आम प्रेत नहीं था, बल्कि वही था, जिसने शैतान को अमरत्व का रहस्य दिया था—उसका गुरु!

"दंश," उस छाया ने कहा।

महल की दीवारें कांप उठीं। आसमान में बिजली चमक उठी। वहाँ खड़े प्रेत घबराकर ज़मीन पर गिर पड़े। क्योंकि कोई भी उसके नाम को नहीं लेता था...

"गुरुदेव..." काल के स्वर में आदर था, लेकिन उसकी आँखों में घमंड की ज्वाला थी। गुरु ने गहरी साँस ली। "तू समझता है कि तू अजेय है। लेकिन आरव... वो तेरा अंत कर सकता है।"

"मेरा अंत?" काल ज़ोर से हँसा। उसकी हँसी से पूरी धरती काँप उठी। "मुझे कोई मार नहीं सकता, गुरुदेव! मैं अमर हूँ!"

"अभी नहीं, लेकिन तुझे सचमुच अमर बनना होगा। और इसके लिए तुझे वो आखिरी बलिदान देना होगा, जिससे कोई तुझे छू तक ना सके।"

कैसा बलिदान, जिस दंश के सामने आने ही हिम्मत कोई नहीं कर सकता, मेरे पीठ पीछे भी अब मेरा नाम लेने से थर थर कांपते हैं। जिस दंश से दैत्य, दानव, असुर, देवता, मानव यहां तक कि काल भी मुझसे भयभीत रहता है उसे 7 साल के एक छोटे से बच्चे से क्या डर। राक्षस ने कहा।

गुरुदेव ने कहा कि - "इतना घमंड ठीक नहीं है दंश, आत्मविश्वास सही है परन्तु जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास किसी को भी मृत्यु की शैय्या पर सुला सकता है। अगर तुझे इतना ही विश्वास है तो तू क्यों नहीं उस चिराग को मार पाया जिसका जन्म तुझे मारने के लिए हुआ है। अगर तुझे उसे मारना है और संसार पर राज़ करना है तो तुझे बलिदान देना होगा।

"मुझे बताइए, गुरुदेव।" दंश सिंहासन से उठा। उसकी लाल आँखें और भी भयावह हो गईं।

गुरु ने धीमे से कहा, "तुझे अपने ही हृदय का बलिदान देना होगा।"

दंश चौंक गया। "क्या?"

"हाँ। अपने हृदय को शरीर से अलग कर, उसे मृत्यु के एक ऐसे स्थान पर छिपा देना होगा, जहाँ कोई भी उसे छू ना सके। तभी तू संपूर्ण अमर बन पाएगा।" दंश कुछ क्षण के लिए रुका, फिर उसकी आँखों में एक शैतानी चमक आई।

"तो फिर, यही होगा!"

उसने अपने हाथ उठाए, और हवा में तेज़ तूफ़ान उठने लगा। पूरी धरती कांप उठी। एक काले जादू का घेरा बना, और काल ने अपनी छाती से अपना हृदय निकाल लिया! पूरे महल में एक खौफनाक चीख गूँजी। आसमान से आग की वर्षा होने लगी। काल के चारों ओर काले धुएँ की लपटें उठने लगीं। अब, उसे मारने का कोई तरीका नहीं बचा था!

भीष्म के मंदिर में आरव अभी तक पहली परीक्षा से उबर नहीं पाया था। "तूने पहला इम्तिहान पार कर लिया, लेकिन असली जंग अब शुरू हुई है," भीष्म की आवाज़ गूंजती रही।

तभी अचानक... मंदिर की दीवारें हिलने लगीं!

"क्या हो रहा है?" आरव चौंक गया। भीष्म ने अपनी तलवार उठा ली। उनकी आँखों में वही धधकती हुई गंभीरता थी।

"वो आ गया..."

"कौन?"

"शैतान ने तुझ पर पहला हमला कर दिया है!"

और तभी... मंदिर के द्वार से एक भयानक काली आकृति अंदर आई। उसकी आँखें गड्ढों जैसी खाली थीं, और उसके शरीर से लगातार धुआँ निकल रहा था। "मुझे स्वामी ने भेजा है, आरव!" वह चीखी।

यह शैतानी राक्षस दंश की पहली चाल थी—एक शैतानी आत्मा, जो आरव को पहली बार मौत के करीब ले जाने वाली थी!

"यह कोई आम आत्मा नहीं, आरव। अगर यह तुझे छू भी ले, तो तेरा शरीर राख में बदल सकता है!" भीष्म चिल्लाए। लेकिन आरव को भागना नहीं था। उसे लड़ना था।

"अगर मैं इससे नहीं लड़ सका, तो आगे कुछ भी नहीं बचा!" आरव ने खुद को सँभालते हुए कहा। और तभी... आत्मा ने अपनी शैतानी चीख के साथ आरव की ओर झपट्टा मारा!

क्या आरव इस आत्मा से बच पाएगा?

दंश ने अपना हृदय कहाँ छुपाया?

हरीश की आखिरी योजना का असली रहस्य क्या है!

जानने के लिए पढ़ते रहिए – "घर का चिराग – एपिसोड 9"