अस्तित्व – ख़ुद से संघर्ष

मंदिर के भीतर घना अंधकार फैल चुका था। भीष्म की आँखों में चिंता की हल्की झलक आई—यह परीक्षा वैसी नहीं थी, जैसी उन्होंने सोची थी। कुछ अलग हो रहा था, कुछ अप्रत्याशित।

आरव ने आत्मा की ओर देखा, जो अब अपने पूरे रूप में प्रकट हो चुकी थी। उसका शरीर लगातार बदल रहा था—कभी एक इंसान की तरह, कभी एक विशालकाय जानवर की तरह। हवा में एक अजीब-सी दुर्गंध फैल गई।

"ये कोई आम शैतानी आत्मा नहीं," भीष्म ने तलवार को कसकर पकड़ते हुए कहा।

आत्मा ने जोर से अट्टहास किया, "मुझे स्वामी ने भेजा है, आरव! लेकिन सिर्फ तुझे मारने के लिए नहीं—तेरी परीक्षा को असंभव बनाने के लिए!"

आरव की परीक्षा अब बदल चुकी थी। भीष्म की आँखों में चिंता गहरी हो गई। "यह परीक्षा तेरे डर से लड़ने की थी, लेकिन अब यह कुछ और बन गई है। यह राक्षस हमारी योजना से पहले से ही परिचित है!" आरव ने खुद को संभाला। "मैं डरूंगा नहीं!" उसने दृढ़ स्वर में कहा।

भीष्म कुछ सोच ही रहे थे कि तभी आत्मा हवा में घुलकर गायब हो गई। एक पल के लिए मंदिर शांत हो गया। फिर अचानक, आरव के चारों ओर अंधेरा घना होने लगा।

"ये क्या हो रहा है?" आरव ने घबराकर कहा।

और फिर... दर्पण से निकली उसकी छाया बदलने लगी। अब वो केवल उसकी छवि नहीं थी, बल्कि उसका एक अलग रूप था—बिल्कुल वैसा ही जैसा काल था। उसके सिर पर छोटे-छोटे सींग उभर आए, और उसकी आँखें अब पूरी तरह काली हो चुकी थीं। "मैं अब सिर्फ तेरा डर नहीं, तेरी छाया भी हूँ, आरव!" वह भयावह आवाज़ में बोली।

और इससे पहले कि आरव कुछ समझ पाता, छाया ने अपना हाथ उठाया—और अगले ही पल आरव के शरीर में एक जबरदस्त झटका लगा!

"आह!" आरव ज़मीन पर गिर पड़ा। भीष्म तुरंत आगे बढ़े, लेकिन जैसे ही उन्होंने अपनी तलवार उठाई, एक अदृश्य दीवार ने उन्हें पीछे धकेल दिया। "यह कैसा जादू है?" भीष्म फुसफुसाए।

अब आरव अकेला था। "अब कोई तुझे नहीं बचा सकता," छाया ने कहा। "तू जितना मुझसे लड़ेगा, उतना ही खुद को खो देगा। क्योंकि मैं तेरा ही हिस्सा हूँ!"

आरव दर्द में था। लेकिन फिर भी उसने खुद को खड़ा किया। "अगर तू मेरा हिस्सा है, तो तुझमें मुझसे ज्यादा ताकत नहीं हो सकती!" छाया ने क्रूर हँसी हँसी। "यही तो तेरा भ्रम है!"

अचानक, छाया ने अपनी काली उंगलियाँ फैलाईं और आरव का गला पकड़ लिया। "अब देख, तेरा अंत कैसे होता है!"

आरव की साँसें रुकने लगीं। भीष्म बाहर से यह सब देख रहे थे, लेकिन कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। "कुछ गड़बड़ है," भीष्म ने मन ही मन सोचा। "यह परीक्षा मेरी दी हुई नहीं, किसी और की थोपी हुई है!" भीष्म की आँखें गहरी चिंता में डूब गईं। "कहीं यह उस शैतान दं... की चाल तो नहीं?"

काल- दुर्ग में दंश अपने सिंहासन पर बैठा था। उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान थी।

"शुरू हो गया खेल!" उसने धीरे से कहा। "अब कोई आरव को नहीं बचा सकता। यह परीक्षा अब उसकी मृत्यु बन जाएगी!" उसने अपने चारों ओर खड़े प्रेतों की ओर देखा। "अब अगला वार करने का समय आ गया है!" दंश ने अपनी काली उँगलियों से एक गहरा मंत्र बोला। और फिर, एक और नई मुसीबत आरव की ओर बढ़ने लगी।

मंदिर के चारों ओर काले बादल छा गए। हवा में एक अजीब-सी सनसनाहट थी, जैसे कोई अदृश्य ताकत हर दिशा से आरव को घेर रही हो। आरव की छाया, जो अब एक भयंकर राक्षसी रूप ले चुकी थी, उसका गला दबाए हुए थी। उसकी काली आँखों में एक विकराल चमक थी। "अब तेरा अस्तित्व खत्म होने वाला है, आरव!"

भीष्म मंदिर के बाहर खड़े छटपटा रहे थे। उनकी तलवार बार-बार अदृश्य दीवार से टकरा रही थी, लेकिन कोई असर नहीं हो रहा था। "यह शक्ति मेरी समझ से परे है…" भीष्म बुदबुदाए। अचानक, मंदिर के भीतर से एक तीखी चीख गूँजी। "आहहह!!"

आरव के चारों ओर अंधकार और घना हो गया। छाया ने उसे पूरी तरह जकड़ लिया था। "अब तू खुद को खो देगा… अब तेरा अंत निश्चित है!" छाया की आवाज़ गहरी और डरावनी हो गई थी।

इधर काल-दुर्ग में दंश ने एक गहरे काले दर्पण में देखा, जिसमें आरव संघर्ष करता दिखाई दे रहा था। "शिकार फँस चुका है," दंश मुस्कुराया। "पर यह सिर्फ शुरुआत है…" उसने अपने हाथ हवा में उठाए और एक घातक मंत्र बुदबुदाया। तभी, दर्पण के भीतर कुछ और प्रकट हुआ।

एक और परछाईं… लेकिन यह छाया अलग थी। यह न सिर्फ आरव की छाया थी, बल्कि उसका विकृत भविष्य थी—एक रूप जो कभी बन सकता था। यह छाया किसी देवता की तरह भव्य थी, लेकिन उसकी आँखें क्रूर और निर्दयी थीं। उसकी हथेलियों में बिजली लहराने लगी। "अब असली परीक्षा शुरू होगी!" दंश हँस पड़ा।

मंदिर मे आरव ज़मीन पर गिर चुका था। उसकी आँखें धीरे-धीरे बंद हो रही थीं… लेकिन तभी, कुछ अजीब हुआ। जैसे ही छाया ने उसे पूरी तरह निगलने की कोशिश की, आरव के शरीर से एक अजीब रोशनी फूटी।

"क्या?" छाया चीख उठी।

भीष्म भी चौक गए।

आरव की देह अब आधी प्रकाश और आधी अंधकार से घिरी हुई थी। तभी, मंदिर के फर्श पर दरारें पड़ने लगीं। और फिर… धरती फट गई! भीष्म चौंक गए। "यह क्या हो रहा है?"

मंदिर के फर्श से एक विशालकाय आकृति प्रकट हुई। यह आकृति भविष्य का आरव थी—वही रूप जो दंश के दर्पण में दिखा था। लेकिन यह आरव… कोई सामान्य योद्धा नहीं था। उसके पूरे शरीर पर चमकते हुए अजीब शास्त्र लिखे थे, लेकिन उसकी आँखों में अब दया नहीं थी। "मैं तेरा भविष्य हूँ, आरव," उसने गूँजती हुई आवाज़ में कहा।

आरव हाँफते हुए उठा, उसने खुद को संभालने की कोशिश की। "तू मेरा भविष्य कैसे हो सकता है?"

"क्योंकि मैं वह हूँ, जो तुझसे छीन लिया जाएगा!" और इसके साथ ही, उस भविष्य के आरव ने अपना हाथ उठाया और अंधकार में समा गया…

अगले ही पल, मंदिर की दीवारें फटने लगीं, और भीष्म को जबरदस्त झटका लगा।

"नहीं!"

काल-दुर्ग में दंश अपने स्थान से खड़ा हो गया। "खेल खत्म हो चुका है। अब आरव का अंत निश्चित है!"

अंधकार घना हो चुका था। आरव की छाया अब पूरी तरह बदल चुकी थी—वो अब सिर्फ परछाईं नहीं थी, बल्कि एक जीवित राक्षस बन चुकी थी। उसकी आँखें जलते कोयले जैसी दमक रही थीं, और शरीर पर अजीब-सी काली लपटें उठ रही थीं।

"अब तू आरव नहीं, केवल अंधकार है!" छाया की आवाज़ अब विकृत हो चुकी थी। भीष्म ने अपनी तलवार उठा ली, लेकिन आरव—या अब कहना चाहिए "काला आरव"—ने एक ही झटके में भीष्म को दूर फेंक दिया।

"आरव! संभल!" भीष्म ने चेतावनी दी। लेकिन अब आरव के चेहरे पर केवल एक भयावह मुस्कान थी। "संभल? कौन आरव? मैं तो बस..." उसकी आवाज़ भारी हो गई, "विनाश हूँ!"

फिर वो हवा में काला तूफान बनकर उठा और एक ज़ोरदार विस्फोट हुआ। मंदिर की दीवारें हिलने लगीं, और फ़र्श में गहरी दरारें पड़ गईं। भीष्म ने पहली बार असली डर महसूस किया।

काल-दुर्ग में – दंश का गढ़ और दंश अपने सिंहासन पर बैठा मुस्कुरा रहा था। "हाँ! यही तो चाहिए था!" उसने खुद से कहा। "अब आरव खुद ही अपना विनाश करेगा।"

फिर उसने अपने सामने रखे एक पुराने शैतानी ग्रंथ को खोला। उसके पन्ने अपने आप फड़फड़ाने लगे, और एक अंधकारमय मंत्र हवा में गूंज उठा।

दंश ने धीरे से कहा—"अब शुरू होगा DANSHAKAAL"

जैसे ही उसने मंत्र पूरा किया, आरव के शरीर के चारों ओर काली लपटें और भी भड़क उठीं। मंदिर में आरव ने अपनी ही तलवार उठाई और खुद को मारने के लिए तैयार हो गया!

काला आरव अब पूरी तरह हिंसक हो चुका था। उसने एक ही झटके में मंदिर की छत गिरा दी। भीष्म बड़ी मुश्किल से बच पाए। "अगर मैंने इसे अभी नहीं रोका, तो ये पूरे संसार को खत्म कर देगा! "भीष्म ने अपनी तलवार को कसकर पकड़ा।

लेकिन तभी...

आरव की ही आवाज़ कहीं भीतर से आई—"गुरुदेव... मुझे बचाओ!"

भीष्म चौंक गए। काले आरव की आँखें एक पल के लिए बदलीं। वो कुछ क्षण के लिए ठिठक गया, जैसे उसके अंदर कोई युद्ध चल रहा हो। भीष्म को समझ आ गया—आरव अब भी ज़िंदा था। लेकिन तभी काले आरव ने ज़ोर से चिल्लाया और उसकी पूरी काया से अंधेरे की लपटें फूट पड़ीं। "अब कोई आरव नहीं! बस विनाश!"

आरव की साँसें भारी हो गई थीं। उसकी छाया अब पूरी तरह एक अलग अस्तित्व बन चुकी थी—उतनी ही ताकतवर, जितना वह खुद।

भीष्म अब भी उस अदृश्य दीवार के पीछे कैद थे, उनकी आँखों में बेचैनी थी। "आरव, इसे खत्म करने का एक ही तरीका है!" भीष्म ने जोर से कहा। "तुझे खुद अपनी सबसे गहरी सच्चाई को स्वीकारना होगा!"

आरव ने दाँत भींचे। "कैसी सच्चाई?"

छाया ने जवाब दिया—"कि मैं तेरा ही हिस्सा हूँ!" और अगले ही पल, छाया का रूप बदलने लगा।

अब वह आरव के बचपन की शक्ल में आ गया था—एक मासूम बच्चा, जो खौफ से कांप रहा था। "याद कर, आरव!" वह बच्चे की आवाज़ में बोला। "तेरी सबसे गहरी कमजोरी क्या थी?" आरव के कानों में बचपन की आवाज़ गूँजने लगी—

"तू कमजोर है, आरव! तू किसी से नहीं जीत सकता!"

भीष्म ने कहा। "यही तेरी असली परीक्षा है, आरव! अगर तू इसे स्वीकारे बिना लड़ेगा, तो कभी नहीं जीत पाएगा!"

लेकिन आरव गुस्से में था। "मैं किसी से नहीं डरता!" उसने पूरी ताकत से हमला किया—लेकिन छाया ने उसकी तलवार हवा में ही रोक ली! "तेरी तलवार तुझ पर ही वार करेगी!"

अचानक, तलवार ने दिशा बदली—और आरव के ही सीने में घुसने लगी! "आहहह!!" आरव घुटनों पर गिर पड़ा। भीष्म की आँखें फटी रह गईं। "अगर यह खुद को नकारेगा, तो खुद को खत्म कर बैठेगा!"

छाया हँसने लगी। "यही तेरी नियति है, आरव! तू खुद को मिटाए बिना मुझे नहीं हरा सकता!"

आरव के हाथ अब काँप रहे थे। "अगर मैं इसे मारूँगा… तो मैं खुद ही मर जाऊँगा…" लेकिन फिर अचानक हवा में एक नयी गूँज उठी। "कोई इंसान अपनी परछाई को खत्म नहीं कर सकता… लेकिन उसे अपना सकता है!"

आरव के हाथ कांपे। उसकी आँखों में अब गुस्सा नहीं, शांति थी। उसने अपनी छाया की ओर देखा—और तलवार गिरा दी। "मैं तुझे नष्ट नहीं करूँगा…" उसने धीमे से कहा।

छाया का चेहरा बदलने लगा। "क्या?"

आरव खड़ा हुआ। "तू मेरा हिस्सा है, और मैं तुझे अपनाता हूँ!" भीष्म ने चौंककर देखा—और फिर पूरी दुनिया अंधकार में डूब गई। अगले ही पल—आरव का शरीर एक जलती हुई मशाल बन गया! उसकी आँखें अब आम आँखें नहीं थीं—उनमें साक्षात अग्नि थी। छाया ने चीख मारी। "नहीं… नहीं… यह नहीं हो सकता!" और देखते ही देखते, वह अंधकार जलकर राख में बदल गया।

मंदिर की दीवारें कांपीं, भीष्म की कैद टूटी। लेकिन इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते… आरव की आँखों में अब अग्नि की लपटें थीं। उसकी छाया जलकर राख हो चुकी थी। मंदिर की दीवारें धीरे-धीरे हिलनी बंद हो गईं। भीष्म ने राहत की साँस ली, लेकिन उनकी आँखों में अभी भी चिंता थी।

"तूने अपनी परीक्षा पास कर ली, आरव," भीष्म ने कहा, "लेकिन यह अंत नहीं, सिर्फ शुरुआत है।" आरव ने सिर झुकाया, लेकिन तभी…

मंदिर के शिवलिंग से दरारें उभरने लगीं। भीष्म चौकन्ने हो गए। "यह क्या हो रहा है?" आरव ने देखा—दरारों से एक अजीब-सा काला धुआँ निकल रहा था। और फिर, वहाँ एक नई आकृति बननी शुरू हुई—लेकिन यह इंसान नहीं था। वह एक अजीब-सी आकृति थी, जिसकी आँखें सफ़ेद थीं, शरीर पर उभरी हुई नसें काले रंग की थीं, और उसके चेहरे पर मानो कई जख्म थे, जो रह-रहकर खुल और बंद हो रहे थे।

आरव और भीष्म दोनों पीछे हटे। "यह कौन है?" आरव ने धीमे स्वर में कहा।

"मैं वो हूँ… जो तुझे परीक्षा में सफल नहीं होने देगा!"

आकृति की आवाज़ में कई लोगों की चीखें गूँज रही थीं, मानो कई आत्माएँ एक साथ बोल रही हों। और अगले ही पल, पूरा मंदिर हिल उठा। मंदिर के दरवाजे बंद हो गए। भीष्म ने तुरंत तलवार संभाली, लेकिन वह आकृति अब हवा में ऊपर उठने लगी थी। "आरव!" भीष्म चिल्लाए। "अब तुझे अपनी ताकत का असली इम्तिहान देना होगा!"

"तो ठीक है…" उसने धीरे से कहा। "अब मैं देखूँगा कि तू क्या कर सकता है!"

और इसी के साथ, वह आकृति अचानक आरव की ओर झपट पड़ी!

क्या यह नया शत्रु दंश का ही कोई खेल है? या यह कोई और शक्ति है जो आरव को खत्म करने आई है?

क्या आरव अब अपनी नई शक्ति का सही इस्तेमाल कर पाएगा?

अगला एपिसोड होगा अब तक का सबसे भयंकर युद्ध!

जानने के लिए पढ़ते रहिए – "घर का चिराग – एपिसोड 10"