मंदिर के भीतर अंधकार और घना हो गया। भीष्म और आरव दोनों पीछे हट गए। उनके सामने हवा में तैरती हुई वह रहस्यमयी आकृति धीरे-धीरे आकार लेने लगी। उसकी आँखें सफ़ेद और भयावह थीं, जैसे उनमें अनगिनत आत्माओं की पीड़ा कैद हो। उसके शरीर पर काले निशान उभर रहे थे, मानो किसी प्राचीन शाप ने उसे जकड़ रखा हो।
"मैं वो हूँ, जिसे कोई नहीं रोक सकता," वह गूँजती हुई आवाज़ में बोला।
आरव ने खुद को संभाला। उसने अपनी छाया को हराकर अपनी असली शक्ति को स्वीकार किया था। लेकिन अब, जो शक्ति उसके सामने थी, वह कुछ और ही थी—असली दुनिया के किसी भी नियम से परे। भीष्म ने तलवार कसकर पकड़ ली। "यह कोई साधारण आत्मा नहीं है… यह कुछ और ही है," उन्होंने कहा।
अचानक, उस आकृति की त्वचा पर गहरे लाल निशान चमकने लगे। जैसे ही वो निशान पूरी तरह उभरे, मंदिर की दीवारों से चीखें उठीं। मंदिर की मूर्तियाँ दरकने लगीं। ज़मीन पर दरारें पड़ गईं और उनके भीतर से खून बहने लगा! आरव के शरीर में एक अजीब-सी बेचैनी दौड़ गई। "ये... ये खून कहाँ से आ रहा है?"
"यह सिर्फ खून नहीं… यह श्राप है!" आकृति हँसी। उसकी आवाज़ गूँज रही थी, मानो एक साथ हजारों आत्माएँ बोल रही हों। भीष्म ने चेतावनी दी, "आरव, यह शक्ति बहुत ही पुरानी और खतरनाक है। यह 'रक्त श्राप' है—ऐसा शाप जिसे सिर्फ एक ही तरीक़े से रोका जा सकता है… और वो तरीका कोई नहीं जानता!"
लेकिन इससे पहले कि वे कुछ और समझ पाते, आकृति ने अपने दोनों हाथ उठाए। उसके शरीर से काले धुएँ की लहरें निकलने लगीं और सीधे आरव की ओर बढ़ गईं।
"अब देख, तेरा अंत कैसा होगा!"
काल-दुर्ग में दंश अपने सिंहासन पर बैठा था, लेकिन आज उसके चेहरे पर घबराहट थी। उसने अपने दर्पण में जो देखा, वह उसके लिए भी अप्रत्याशित था। "यह कैसे हो सकता है?" उसके सामने वही रहस्यमयी आकृति थी, लेकिन यह उसके किसी खेल का हिस्सा नहीं थी। यह शक्ति दंश से भी परे थी, और वह इसे पहचानता था। उसने अपनी लंबी काली उँगलियाँ घुमाईं, और एक पुराना ग्रंथ उसके सामने आ गया। ग्रंथ के पन्ने हवा में पलटने लगे। आखिरकार, एक पृष्ठ पर कुछ लिखा हुआ मिला:
"जब रक्त श्राप जागेगा, तो समय का चक्र टूटा जाएगा। इसे रोकने वाला ही नया भाग्य रचेगा।"
दंश की आँखें गहरी हो गईं। "अगर यह शक्ति जाग चुकी है… तो यह खेल अब मेरे हाथ में भी नहीं रहा।" उसने अपने हाथ उठाए और अंधेरे में एक भयानक मंत्र बोला। लेकिन मंत्र पूरा होते ही… दंश खुद पीछे हट गया। "क्या यह शक्ति मेरे मंत्रों से भी परे है?"
अब दंश को समझ आ गया था—यह सिर्फ आरव की परीक्षा नहीं थी, बल्कि पूरे संसार का भविष्य इस लड़ाई पर निर्भर था। "अगर आरव हार गया, तो सिर्फ वही नहीं, बल्कि मैं भी खत्म हो जाऊँगा!"
आरव ज़मीन पर गिर पड़ा। उसके पूरे शरीर में अजीब-सी जलन हो रही थी। "आहहह! आहहह!"
उसकी चमड़ी पर वही काले निशान उभरने लगे, जो उस रहस्यमयी आकृति के शरीर पर थे।
"अब तू भी श्रापित हो चुका है, आरव!" आकृति की हँसी मंदिर की दीवारों में गूंज उठी।
आरव ने खुद को संभालने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने खड़े होने की कोशिश की, उसके पैरों के नीचे की ज़मीन चटक गई। वहाँ से और भी खून बहने लगा।
भीष्म को अब एहसास हो गया था कि यह शक्ति किसी सामान्य शैतान की नहीं, बल्कि कुछ और ही थी—कुछ जिसे मिटाया नहीं जा सकता था।
"आरव! ध्यान से सुन! अगर तूने इसे मारने की कोशिश की, तो यह शक्ति तुझे भी निगल जाएगी।"
लेकिन आरव ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। उसके भीतर की नई शक्ति जाग उठी थी। उसकी आँखों में दो जलती हुई मशालें चमक उठीं। उसने अपना हाथ ऊपर उठाया और हवा में कुछ मंत्र बोले। फिर एक ज़ोरदार धमाका हुआ। मंदिर की छत हिल उठी। आरव के चारों ओर ऊर्जा की लपटें दौड़ गईं। लेकिन तभी आरव की पीठ पर वही काले निशान फैल गए। अब वो शक्ति उसके अंदर समाने लगी थी! भीष्म ने झट से अपनी तलवार उठाई। लेकिन इससे पहले कि वे कुछ कर पाते, आकृति ने ज़ोर से चीख मारी और गायब हो गई। मंदिर में अचानक शांति छा गई।
आरव घुटनों के बल बैठा था, उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं भीष्म आगे बढ़े। "क्या तू ठीक है?" आरव ने धीरे-धीरे सिर उठाया। लेकिन उसकी आँखें अब वैसी नहीं थीं।
अब वे दो मशालें नहीं थीं… वे दो गहरे काले गड्ढे बन चुकी थीं।
भीष्म ने घबराकर एक कदम पीछे खींचा। "नहीं… ये नहीं हो सकता!"
आरव के चेहरे पर अब एक हल्की-सी मुस्कान थी—लेकिन यह उसकी नहीं थी। "अब मैं आरव नहीं हूँ…" उसने धीमे से कहा। "अब मैं रक्त श्राप का नया वाहक हूँ!"
भीष्म के सामने अब जो खड़ा था, वह आरव नहीं था। उसकी आँखों की गहराई में एक अजीब अंधकार था, मानो कोई प्राचीन शाप उसमें घर कर गया हो। उसकी त्वचा पर फैले काले निशान धीरे-धीरे चमकने लगे, और उसकी उंगलियों से हल्की-हल्की धुएँ की लहरें उठ रही थीं। भीष्म ने अपनी तलवार कसकर पकड़ी। "आरव, होश में आ! तुझे इस शक्ति को खुद से दूर करना होगा!"
लेकिन आरव सिर्फ मुस्कुराया। उसकी आवाज़ अब भारी और गूँजती हुई लग रही थी। "अब कुछ भी वैसा नहीं रहेगा, यह शक्ति मुझे बुला रही थी, और अब यह पूरी तरह मुझमें समा चुकी है।" भीष्म ने अपने कदम पीछे खींचे। "नहीं, अगर यह शक्ति तुझमें समा गई, तो तेरा अस्तित्व खत्म हो जाएगा!"
आरव के होंठों पर एक हल्की मुस्कान थी। "क्या सच में? या फिर यह मेरा असली स्वरूप है?" बाहर अंधेरा घिर चुका था। अचानक मंदिर के शिखर पर एक विशाल काले धुएँ की आकृति उभरी। आसमान में बिजलियाँ चमकने लगीं। मंदिर की मूर्तियाँ अब खुद ही दरकने लगी थीं, जैसे कोई प्राचीन शक्ति उनके भीतर बंद थी जो अब मुक्त हो रही थी।
भीष्म को अब कुछ समझ नहीं आ रहा था। "अगर आरव इस शक्ति के काबू में आ गया, तो उसे रोकने का कोई तरीका नहीं होगा!" भीष्म ने तलवार उठाई और आरव पर वार करने के लिए बढ़े। लेकिन जैसे ही उन्होंने हमला किया, एक अदृश्य शक्ति ने उन्हें हवा में उछालकर मंदिर की दीवार से टकरा दिया। आरव की आँखें चमक उठीं। उसने अपनी हथेलियाँ खोलीं, और अचानक एक ज़ोरदार लपटें उसके चारों ओर घूमने लगीं।
"अब इस संसार को नए नियमों की जरूरत है…" और फिर मंदिर के ऊपर एक ज़ोरदार विस्फोट हुआ।
काल-दुर्ग में दंश अभी भी दर्पण को देख रहा था। लेकिन इस बार, उसके चेहरे पर हल्की चिंता थी। "यह सही नहीं है। अगर रक्त श्राप आरव पर पूरी तरह हावी हो गया, तो यह खेल मेरे हाथ से भी निकल जाएगा।" उसने एक मंत्र बुदबुदाया, और एक काले धुएँ से बनी आकृति उसके सामने प्रकट हुई। यह उसकी छाया थी—वही छाया, जो उसकी असली शक्ति का स्रोत थी।
"मुझे इसे रोकना होगा… लेकिन कैसे?"
उसके सामने पड़े प्राचीन ग्रंथ का पृष्ठ फिर से खुल गया। उसमें एक नया संदेश उभर आया: "रक्त श्राप को रोकने का बस एक ही तरीका है—पुराने रक्त का बलिदान।"
"क्या इसका मतलब है कि..."
उसने एक काले क्रिस्टल पर हाथ रखा, और उसमें एक चेहरा उभर आया—वीर प्रताप!
इधर व्यास वीर प्रताप और सुमित्रा को बात रहे थे "यह किताब सदियों पहले लिखी गई थी," व्यास ने वीर प्रताप को देखते हुए कहा। "जिन्होंने ये किताब लिखी थी, उन्होंने पहले ही देख लिया था कि यह दिन आएगा।"
वीर प्रताप और सुमित्रा ने किताब को ध्यान से देखा। उसके पन्ने पीले और पुराने हो चुके थे, लेकिन उनमें लिखा हर शब्द एक रहस्य खोल रहा था।
"जब रक्त श्राप जागेगा, तब हीरे की गुफा का द्वार खुलेगा। लेकिन वहाँ जाना आसान नहीं होगा। यह गुफा समय और मृत्यु के बीच स्थित है। जो भी वहाँ जाएगा, उसे अपनी आत्मा का एक हिस्सा छोड़ना होगा।"
वीर प्रताप ने किताब बंद की। "अगर यह सच है, तो हमें आरव को बचाने के लिए इस गुफा तक पहुँचना ही होगा।"
सुमित्रा की आँखों में संदेह था। "लेकिन व्यास, अगर यह गुफा इतनी ही रहस्यमयी है, तो हमें वहाँ जाने का रास्ता कैसे मिलेगा?"
व्यास ने एक हल्की मुस्कान दी। "रास्ता सिर्फ उसे मिलेगा जो खुद को खोने के लिए तैयार होगा।"
वीर प्रताप ने कहा। "तो चलो, हम ये बलिदान देने के लिए तैयार हैं!" लेकिन इससे पहले कि वे आगे बढ़ते, अचानक किताब के पन्ने हवा में उड़ने लगे। कमरे में चारों ओर एक रहस्यमयी ऊर्जा घूमने लगी।
सुमित्रा चौंक गई। "ये क्या हो रहा है?" व्यास ने गंभीरता से कहा, "गुफा ने तुम्हें स्वीकार कर लिया है… लेकिन इसके बदले, तुम्हें अपनी सबसे कीमती चीज़ छोड़नी होगी।"
वीर प्रताप ने अपनी तलवार पकड़ी। "कोई भी कुर्बानी देनी पड़े, मैं तैयार हूँ!"
अचानक किताब के पन्नों से एक रोशनी निकली, और वे तीनों एक पल में ही गायब हो गए।
वीर प्रताप, सुमित्रा, और व्यास अचानक एक घने जंगल में प्रकट हुए। चारों तरफ घना कोहरा था, और हल्की-हल्की सीटी जैसी आवाजें हवा में तैर रही थीं। सामने एक विशाल पत्थर का दरवाजा था, जिस पर रहस्यमयी प्रतीक खुदे हुए थे।
"यही है हीरे की गुफा का द्वार," व्यास ने कहा।
सुमित्रा ने दरवाजे के पास जाकर उसे ध्यान से देखा। यह किसी साधारण दरवाजे जैसा नहीं था। उसके चारों ओर चमकीले नीलम जड़े थे, और बीच में एक गोल पत्थर था जिस पर कुछ लिखा था:
"यदि चाहो मार्ग को पाना, तो पहले अतीत को अपनाना।
जो बीत चुका, वही द्वार खोल सकता है।
पर ध्यान रहे, सत्य जानने के बाद लौटने का कोई मार्ग नहीं।"
वीर प्रताप ने माथे पर शिकन डाली। "इसका क्या मतलब हुआ? हमें अतीत अपनाने के लिए क्या करना होगा?"
व्यास ने गहरी सांस ली। "यह पहेली हमारी यादों से जुड़ी हुई है। हमें अपने अतीत का वह हिस्सा देखना होगा, जिसे हमने कभी स्वीकार नहीं किया।"
सुमित्रा ने हैरानी से पूछा, "लेकिन यह कैसे होगा?"
अचानक, गुफा के द्वार के सामने हवा घूमने लगी। नीले नीलम से एक धुंधली रोशनी निकली और तीनों के चारों ओर चक्कर लगाने लगी। देखते ही देखते, वे तीनों एक अलग ही जगह पर खड़े थे—जैसे समय ने उन्हें पीछे धकेल दिया हो।
वीर प्रताप ने इधर-उधर देखा और चौंक गए। वे अपने ही पुराने किले में खड़े थे। उनके सामने एक दृश्य चल रहा था—उनका बचपन! वो देख सकते थे कि कैसे उनके पिता ने उन्हें तलवारबाजी सिखाई थी। लेकिन तभी, दृश्य बदल गया। अब वे एक युद्ध के मैदान में थे, जहाँ उनका छोटा भाई घायल पड़ा था। वीर प्रताप ने उस समय अपने भाई को बचाने के बजाय लड़ाई जारी रखी थी… और वही लड़ाई उनके भाई की मौत की वजह बनी। वीर प्रताप की आँखें नम हो गईं। "नहीं… यह सब फिर से क्यों दिखाया जा रहा है?"
व्यास ने गंभीरता से कहा, "गुफा हमें याद दिला रही है कि सच्चाई से भागना हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। अगर तुम इसे स्वीकार नहीं करोगे, तो यह दरवाजा कभी नहीं खुलेगा।"
वीर प्रताप घुटनों के बल बैठ गए। उन्होंने पहली बार अपने मन की पीड़ा को स्वीकार किया। "हाँ, यह मेरी गलती थी। काश मैं उसे बचा सकता… लेकिन अब मैं अपने अतीत को स्वीकार करता हूँ।"
जैसे ही उन्होंने यह कहा, दरवाजे का नीलम चमकने लगा, और पहेली हल हो गई। दरवाजा ज़ोर की आवाज़ के साथ खुल गया, और उनके सामने एक काला सुरंगनुमा मार्ग प्रकट हुआ।
"पहली परीक्षा पार हो गई," व्यास ने कहा। "लेकिन आगे जो आएगा, वो और कठिन होगा।" तीनों सुरंग में आगे बढ़े। अंदर घना अंधेरा था, लेकिन जैसे ही वे गुफा के और भीतर पहुँचे, ज़मीन पर लाल चमकने वाले पत्थर उभर आए। सुमित्रा ने जैसे ही एक पत्थर पर कदम रखा, अचानक उनके चारों ओर से सैकड़ों तीर निकले और हवा में तैरने लगे। "रुको! ये फँदा है!" वीर प्रताप ने चेतावनी दी।
दीवार पर एक और लेख था:
"रक्त बहाए बिना कोई आगे नहीं बढ़ सकता।
पर ध्यान रहे, बलिदान गलत हुआ तो मार्ग हमेशा के लिए बंद हो जाएगा।"
सुमित्रा ने समझने की कोशिश की। "तो क्या हमें खुद को चोट पहुँचानी होगी?"
व्यास ने सर हिलाया। "नहीं, इसका अर्थ कुछ और है। यहाँ कुछ ऐसा है, जिसे सही तरीके से खोलने की जरूरत है।"
वीर प्रताप ने ध्यान से ज़मीन पर बने निशानों को देखा। उन्होंने देखा कि पत्थरों के बीच एक छोटा कटोरा रखा था, जिसमें पहले से ही सूखा हुआ खून था। "शायद हमें किसी एक को थोड़ी मात्रा में रक्त देना होगा," उन्होंने कहा।
लेकिन जैसे ही उन्होंने अपने हाथ पर कट लगाने की कोशिश की, दीवारें हिलने लगीं। गुफा एक चेतावनी दे रही थी—अगर गलती हुई, तो वे हमेशा के लिए फँस सकते हैं। "रुको," सुमित्रा ने कहा। "पहेली ने कहा था, बलिदान गलत हुआ तो मार्ग बंद हो जाएगा। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि यह सिर्फ छलावा है।"
व्यास को समझ आ गया उसने गहरी सांस ली और पास के एक छोटे से पत्थर को उठाकर उस कटोरे में रखा। और तभी सारे तीर गायब हो गए, और ज़मीन पर एक नया रास्ता खुल गया।
वीर प्रताप मुस्कुराए। "यह हमारे दिमाग की परीक्षा थी। यह गुफा हमें बलिदान देने के लिए नहीं, बल्कि सोचने के लिए मजबूर कर रही थी।"
वे आगे बढ़े और एक विशाल भूमिगत झील के सामने आ गए। झील का पानी बिल्कुल काला था, और उसकी सतह पर हलचल हो रही थी।
सामने एक पत्थर पर कुछ लिखा था:
"जो इस पानी में उतरेगा, वह कभी लौटकर नहीं आएगा।
परंतु, जो बिना उतरे आगे बढ़ेगा, वह लक्ष्य तक कभी नहीं पहुँच पाएगा।"
सुमित्रा ने सर हिलाया। "तो हमें पानी में जाना ही होगा?" वीर प्रताप ने झील को ध्यान से देखा। "नहीं, यह भी एक छलावा हो सकता है। हमें पहले देखना होगा कि यह पानी सच में क्या करता है।"
उन्होंने पास की एक मशाल का टुकड़ा तोड़ा और पानी में डाला। जैसे ही लकड़ी का टुकड़ा पानी में गिरा, वह पिघल गया—मानो कोई तेज़ाब हो!
"ये तो जानलेवा है!" सुमित्रा चौंक गईं।
व्यास ने ध्यान से झील के किनारे की दीवारों को देखा। वहाँ एक पतली सीढ़ी बनी हुई थी, जो झील को पार करने के लिए थी। "देखो, असली मार्ग यही है!"
वे तीनों संभलकर सीढ़ी से होते हुए झील पार करने लगे। लेकिन जैसे ही वे आधे रास्ते में पहुँचे, झील में से एक काला हाथ निकला और सुमित्रा का पैर पकड़ लिया! "बचाओ!" सुमित्रा ने चीख मारी। वीर प्रताप ने तलवार निकाली, लेकिन पानी में से और भी हाथ निकलने लगे। वे सबको नीचे खींच रहे थे।
अचानक, गुफा के अंदर ज़ोर की आवाज़ गूँजी। "अब बचने का कोई रास्ता नहीं… तुम्हें इसी पानी में समाना होगा!"
क्या वीर प्रताप और सुमित्रा बच पाएंगे?
गुफा के रहस्यों का असली उद्देश्य क्या है?
आरव और रक्त श्राप का भविष्य क्या होगा?
पढ़ते रहिए – "घर का चिराग – एपिसोड 11"