गूँजी, और झील का पानी और भी उफान मारने लगा। वीर प्रताप ने तलवार से उन काले हाथों पर वार किया, लेकिन तलवार उनके पास पहुँचने से पहले ही धुएँ में बदल गई।
व्यास ने तुरंत स्थिति को समझने की कोशिश की। "यह सिर्फ ताकत की परीक्षा नहीं है... यह हमारी इच्छाशक्ति की परीक्षा है!"
सुमित्रा पानी में खिंचती जा रही थी, लेकिन उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और खुद को शांत किया। अचानक, हाथों की पकड़ कमजोर होने लगी।
व्यास चिल्लाए, "डरो मत! डर ही हमें फँसा रहा है!"
वीर प्रताप ने सुमित्रा का हाथ पकड़ा और पूरी ताकत से उसे ऊपर खींचा। जैसे ही सुमित्रा ने खुद को पूरी तरह शांत किया, काले हाथ धीरे-धीरे झील में वापस समाने लगे। पानी एक बार फिर स्थिर हो गया, और झील के दूसरी ओर एक चमकता हुआ द्वार प्रकट हुआ।
"हमने यह परीक्षा भी पार कर ली," व्यास ने गहरी साँस लेते हुए कहा।
वे तीनों द्वार की ओर बढ़े। जैसे ही उन्होंने उसमें प्रवेश किया, वे एक विशाल गुफा में पहुँच गए। वहाँ बीचो-बीच एक रहस्यमयी हीरा रखा था, जो नीली और लाल रोशनी से चमक रहा था।
वीर प्रताप ने धीरे से कहा, "यही वह हीरा है, जो रक्त श्राप को रोक सकता है…"
लेकिन इससे पहले कि वे उसे छू पाते, गुफा के कोनों से काले साए उठने लगे। एक भारी आवाज़ गूँजी, "क्या तुम सच में बलिदान देने के लिए तैयार हो?"
व्यास ने ग्रंथ के शब्दों को याद किया—"पुराने रक्त का बलिदान ही इसे रोक सकता है।"
गुफा के भीतर अंधकार गहराने लगा। चारों ओर से उठते काले साए हवा में घूमने लगे, और रहस्यमयी हीरा एक मंद गूंज के साथ और भी तेज चमकने लगा। "क्या तुम बलिदान देने के लिए तैयार हो?" भारी आवाज़ दोबारा गूँजी।
वीर प्रताप, सुमित्रा और व्यास के मन में अजीब बेचैनी घर करने लगी। अचानक, वीर प्रताप को ऐसा लगा जैसे सुमित्रा उसे संदेह की नज़रों से देख रही हो। "तुम हमें धोखा देने की कोशिश तो नहीं कर रही, सुमित्रा?" वीर प्रताप ने भौंहें चढ़ाते हुए कहा।
सुमित्रा चौक गई। "क्या बकवास कर रहे हो! मैंने हमेशा तुम्हारा साथ दिया है!"
व्यास को भी बेचैनी महसूस होने लगी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वीर प्रताप कुछ छुपा रहा है। "वीर, तुम्हें इतना यकीन कैसे है कि यह हीरा श्राप को रोक ही देगा? कहीं तुम इसे खुद के लिए तो नहीं लेना चाहते?"
वीर प्रताप का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। "तुम मुझ पर शक कर रहे हो, व्यास? मैंने अपनी जान दांव पर लगा दी, और तुम मुझ पर ही आरोप लगा रहे हो?"
तीनों की आँखों में अब गुस्से की ज्वाला थी। वे भूल चुके थे कि वे एक ही उद्देश्य के लिए यहाँ आए थे। हीरा अब और भी तेज चमकने लगा, और उसकी रोशनी उनकी आँखों में अजीब-सी नफरत भरने लगी।
सुमित्रा ने तलवार निकाल ली। "अगर मुझे अपनी जान देनी ही होगी, तो यह मेरी मर्जी से होगी, न कि किसी और के कहने पर!" व्यास ने ग्रंथ की ओर इशारा किया। "शायद यही परीक्षा है! यह हीरा हमारे मन की कमज़ोरी को उजागर कर रहा है।" लेकिन वीर प्रताप अब अंधे गुस्से में था। उसने तलवार उठाई और सुमित्रा की ओर बढ़ा, मगर तभी गुफा में एक ज़ोरदार धमाका हुआ!
अचानक, एक रहस्यमयी आकृति धुएँ से बनी हुई वहाँ प्रकट हुई। उसकी आँखें जल रही थीं, और उसकी आवाज़ काँपती हुई गूँजी— "तुम सब अब श्राप के घेरे में आ चुके हो!"
गुफा के भीतर गूँजती हुई उस भारी आवाज़ ने पूरे माहौल को कंपा दिया। रहस्यमयी आकृति, जो धुएँ से बनी थी, अब धीरे-धीरे एक ठोस रूप लेने लगी। उसकी जलती हुई आँखें जैसे आत्मा को चीर देने वाली थीं। वीर प्रताप, सुमित्रा और व्यास ने अपनी तलवारें कसकर पकड़ लीं, लेकिन उनकी आँखों में गुस्से और संदेह की वही चिंगारी जल रही थी।
"कौन हो तुम?" वीर प्रताप ने दहाड़ लगाई।
आकृति हल्के से मुस्कुराई, उसकी मुस्कान भयानक थी। "मैं वही हूँ जो इस श्राप का रक्षक हूँ… और अब तुम तीनों इस श्राप का हिस्सा बन चुके हो!"
गुफा की दीवारों पर अजीब-अजीब आकृतियाँ उभरने लगीं—भूतकाल की परछाइयाँ, वो योद्धा जो पहले इस श्राप को तोड़ने आए थे लेकिन कभी लौटकर नहीं गए। सुमित्रा ने तलवार उठाई। "हमें डराने की कोशिश मत करो! हमें इस श्राप को खत्म करना ही होगा!"
"खत्म?" आकृति हँसने लगी। "अभी तो यह शुरू हुआ है!" जैसे ही उसने अपने हाथ उठाए, वीर प्रताप, सुमित्रा और व्यास के शरीर अचानक जकड़ गए। तीनों की आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा, और जब उन्होंने होश में आने की कोशिश की, तो उन्हें लगा जैसे वे किसी और ही दुनिया में पहुँच चुके हैं।
अजनबी दुनिया में जब वीर प्रताप की आँखें खुलीं, तो वह खुद को एक विशाल युद्धभूमि के बीच खड़ा पाया। चारों तरफ़ जलती हुई मशालें, टूटी हुई तलवारें और मर चुके सैनिकों के ढेर थे। सामने सुमित्रा और व्यास खड़े थे, लेकिन उनके चेहरे पर एक अजीब-सी नफरत थी।
"यह कहाँ हैं हम?" सुमित्रा ने चारों ओर देखा। लेकिन इससे पहले कि कोई जवाब देता, आकृति की गूँजती हुई आवाज़ आई—
"यह तुम्हारे अपने मन की दुनिया है! यहाँ कोई मित्र नहीं, कोई भरोसा नहीं—सिर्फ़ विश्वासघात और अंतहीन युद्ध!"
वीर प्रताप ने महसूस किया कि उसकी तलवार अपने आप भारी हो रही थी। अचानक, उसकी आँखों के सामने अतीत की यादें कौंधने लगीं—एक युद्ध, जहाँ उसका भाई उसे मारने की कोशिश कर रहा था। व्यास की आँखों में भी अजीब-सा डर था। उसने देखा कि उसके सामने उसका अपना पुराना गुरु खड़ा है, वही जिसने कभी उसे शिष्य मानने से इंकार कर दिया था।
सुमित्रा को अपने बचपन का एक दृश्य दिखा, जब उसके अपने ही माता-पिता ने उसे छोड़ दिया था, क्योंकि वह एक लड़की थी और उन्हें पुत्र चाहिए था।
तीनों के दिलों में गुस्से और दुख की लहर दौड़ने लगी। अचानक, उनकी तलवारें अपने आप ऊपर उठ गईं—और वे एक-दूसरे की ओर बढ़ने लगे! तीनों की तलवारें हवा में चमकीं, और एक भयंकर टकराव होने ही वाला था कि…
"रुको!"
अचानक, व्यास की आँखों में जैसे कोई नई रोशनी जाग उठी। उसने तलवार नीचे कर दी और गहरी साँस ली।
"यह हमारा अतीत है… यह हकीकत नहीं!"
वीर प्रताप और सुमित्रा की आँखों में क्रोध और भ्रम का साया था, लेकिन व्यास की बात उनके दिमाग में कहीं गूँज उठी।
"यह सब एक छलावा है। हमें लड़ाने के लिए हमारे डर और तकलीफ़ों को हमारे खिलाफ़ इस्तेमाल किया जा रहा है!" वीर प्रताप के हाथ काँप गए। क्या सच में वह अपने सगे भाई से इतनी नफरत करता था? क्या वह इतनी आसानी से भड़क गया? सुमित्रा के मन में एक तूफ़ान उठ रहा था। क्या वह अपने माता-पिता की गलती को कभी माफ़ नहीं कर सकती?
गुफा में गूँजने वाली आवाज़ अब और ज़ोर से हँसने लगी। "तुम लोग इस श्राप के असर से बच नहीं सकते! नफरत ही तुम्हारी सबसे बड़ी सच्चाई है!"
लेकिन व्यास अब पूरी तरह जाग चुका था। उसने ज़ोर से कहा, "नहीं! यह हमारी सच्चाई नहीं! हमारी सच्चाई वह है जो हम खुद चुनते हैं!"
व्यास ने वीर प्रताप और सुमित्रा की ओर हाथ बढ़ाया। "तलवारें नीचे करो… यह युद्ध हमारा नहीं है!" वीर प्रताप और सुमित्रा अभी भी संघर्ष कर रहे थे, लेकिन फिर…
हीरे की चमक अचानक मंद पड़ने लगी। गुफा की दीवारों पर बनी आकृतियाँ हिलने लगीं, जैसे उनकी पकड़ कमज़ोर पड़ रही हो।
"नहीं! यह संभव नहीं!" वह रहस्यमयी आवाज़ गुस्से से चीख पड़ी। सुमित्रा ने गहरी साँस ली और अपनी तलवार ज़मीन पर डाल दी। वीर प्रताप ने भी धीरे-धीरे अपनी तलवार छोड़ दी जैसे ही तीनों ने अपने डर और नफ़रत को छोड़ा, गुफा अचानक ज़ोर से हिलने लगी। हीरा एक आखिरी बार चमका और फिर…
"तरड़, तरड़"
सब कुछ बिखरने लगा। दीवारें टूटने लगीं, छत गिरने लगी, और वह रहस्यमयी आकृति काले धुएँ में बदलकर हवा में समा गई। श्राप टूट चुका था। तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा, उनकी आँखों में नई समझ और नया भरोसा था।
"हमने कर दिखाया," व्यास ने मुस्कुराकर कहा।
लेकिन इससे पहले कि वे राहत की साँस लेते, गुफा का फर्श उनके नीचे से हिलने लगा। बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था, और वे मलबे में दब सकते थे! गुफा का फर्श दरारों में बंट चुका था, और हर तरफ चट्टानें गिरने लगीं। हीरा अब हल्की रोशनी के साथ थरथरा रहा था, जैसे उसकी शक्ति खत्म हो रही हो।
"भागो!" वीर प्रताप ने चिल्लाया, लेकिन गुफा के दरवाजे बंद हो चुके थे। बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था! सुमित्रा ने चारों ओर नजर दौड़ाई। "व्यास! तुम्हारे ग्रंथ में इसका कोई हल लिखा था?"
व्यास जल्दी-जल्दी पन्ने पलटने लगा, लेकिन शब्द अब धुंधले हो गए थे। जैसे ही श्राप टूटा, ग्रंथ की लिखावट भी मिटने लगी। "हमें अपने दिमाग से ही रास्ता निकालना होगा!" व्यास ने कहा।
"वो देखो!" वीर प्रताप ने इशारा किया। गुफा की एक दीवार पर हल्की दरार थी, जिससे ठंडी हवा आ रही थी। "अगर हम इसे तोड़ सकें, तो शायद बाहर निकल सकें!" सुमित्रा ने कहा।
लेकिन दीवार मोटी थी, और उनके पास ज्यादा समय नहीं था। गुफा तेजी से गिर रही थी, और अब विशाल चट्टानें उनके ऊपर गिरने लगीं। वीर प्रताप ने अपनी पूरी ताकत से दीवार पर वार किया, लेकिन कुछ असर नहीं हुआ। "हमें कुछ और करना होगा!" व्यास ने कहा। "यह दीवार सिर्फ ताकत से नहीं टूटेगी… हमें इसे सही जगह से तोड़ना होगा!"
सुमित्रा ने गौर किया कि दरार के पास ही एक अजीब-सा चिन्ह बना हुआ था। "शायद यह गुफा की सबसे कमजोर जगह हो!" वीर प्रताप ने अपनी पूरी शक्ति के साथ तलवार उठाई और उस चिन्ह पर वार किया। और फिर- "क्रैक!"
दीवार अचानक से हिल गई, लेकिन तभी…
"वीर! पीछे हटो!" सुमित्रा चिल्लाई, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। दीवार का बड़ा हिस्सा टूटकर गिरने लगा, और वीर प्रताप सीधा मलबे के नीचे दब गया। सुमित्रा और व्यास ने तेजी से टूटे हुए हिस्से से बाहर छलांग लगाई। वे एक पहाड़ी की चोटी पर आ गिरे, जहाँ सूरज की रोशनी फैली हुई थी। लेकिन जब उन्होंने पीछे देखा वीर प्रताप बाहर नहीं निकल सका था।
"वीर!" व्यास और सुमित्रा ने चिल्लाया।
मलबे के नीचे वीर प्रताप की हल्की परछाई दिख रही थी। उसकी आवाज़ थकी हुई थी, लेकिन उसमें संतोष था।
"तुम लोग निकल गए… यही काफी है…"
"नहीं! हम तुम्हें नहीं छोड़ सकते!" सुमित्रा ने आँसू भरी आँखों से कहा।
वीर प्रताप हल्के से मुस्कुराया। "यही नियति थी… यह बलिदान जरूरी था…"
गुफा की आखिरी दीवार भी ढह गई, और वीर प्रताप हमेशा के लिए अंधेरे में समा गया। सुमित्रा और व्यास पहाड़ी की चोटी पर खड़े थे। गुफा अब पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी थी। श्राप खत्म हो चुका था, लेकिन उसकी कीमत बहुत बड़ी थी।
सुमित्रा ने आसमान की ओर देखा। "वीर का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।"
व्यास ने ग्रंथ के आखिरी बचे शब्दों को पढ़ा—
"जिसका बलिदान सच्चा हो, वही इतिहास रचता है।"
शायद यह अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत थी…
अब आगे क्या होगा.....
जानने के लिए पढ़ते रहिए – "घर का चिराग – एपिसोड 12"