गुप्त इतिहास

घर का चिराग – एपिसोड 13

मंदिर के अंदर अंधकार घना हो चुका था। हर तरफ़ सिर्फ़ काले धुएँ की लहरें थीं। आरव अब तीन दंश के सामने खड़ा था।

"अगर मैंने एक गलत हमला किया, तो असली दंश बच जाएगा और मुझ पर पलटवार करेगा!" आरव के मन में विचार दौड़ने लगे।

दंश के तीनों रूप एक साथ बोले, "क्या हुआ, आरव? डर लग रहा है?"

आरव ने तेजी से तलवार निकाली और अपने चारों ओर एक दिव्य चक्र बनाया, ताकि अंधकार का प्रभाव उस पर न पड़े।

"चलो, देखते हैं कि असली दंश कौन है!" आरव ने अपनी तलवार घुमाई और हवा में वार किया।

शिंक!

पहले दंश पर वार पड़ा—पर वह सिर्फ़ धुआँ था!

दूसरा दंश आरव की ओर झपटा, लेकिन आरव ने उसे भी काट डाला—वह भी गायब हो गया।

"हाहाहा! तुम कितने भोले हो, आरव!" असली दंश की आवाज़ आई, और तभी तीसरा दंश आरव के पीछे प्रकट हुआ।

इससे पहले कि आरव बच पाता बचने से पहले ही— धड़ाम!

आरव दीवार से जा टकराया। खून उसके होंठों से टपकने लगा।

"अब मैं तुझे तड़पता हुआ देखना चाहता हूँ!" दंश ने अपने हाथ ऊपर उठाए, और मंदिर की ज़मीन कंपन करने लगी।

अचानक, वीर प्रताप की आत्मा और अन्य दिव्य शक्तियाँ जो मंदिर में बंधी थीं, दंश की ओर खिंचने लगीं!

"नहीं!" सुमित्रा चिल्लाई।

"आज मैं इन सभी शक्तियों को निगल जाऊँगा, और उसके बाद, आरव, तुझे मिटाने में बस कुछ ही पल लगेंगे!"

आरव ने ज़मीन पर घुटने टेक दिए।

"मैं कुछ नहीं कर पा रहा..."

"अगर ये सभी आत्माएँ चली गईं, तो मैं दंश को कभी नहीं हरा पाऊँगा!" तभी, उसकी तलवार से हल्की रोशनी निकली।

"आरव..." वह आवाज़ वीर प्रताप की थी!

"तू ही हमारी आखिरी उम्मीद है! पर याद रख—शक्ति सिर्फ़ बाहरी नहीं होती, असली ताकत भीतर होती है!"

आरव के शरीर में बिजली दौड़ गई। उसे एक अजीब-सी ऊर्जा महसूस होने लगी।

उसकी आँखें नीली होने लगीं!

"यह क्या हो रहा है?"

अमावस की रात हमेशा बुराई के लिए नहीं होती। यह रात सिर्फ़ दंश की ताकत नहीं बढ़ाती—यह रात असली योद्धाओं की सच्ची शक्ति भी जगाती है!

मंदिर की छत फटने लगी, और चंद्रमा की काली रोशनी आरव के शरीर में समाने लगी!

अब वह एक नए रूप में था—उसकी आँखें नीली, तलवार चाँदी जैसी चमक रही थी, और उसके शरीर से एक दिव्य आभा निकल रही थी।

"दंश, अब तेरा अंत तय है!"

दंश पीछे हट गया। "यह… यह कैसे हुआ?"

आरव ने तलवार उठाई। "अब तेरा अंधकार तुझे बचा नहीं सकता!"

मंदिर के भीतर हर चीज़ कांप रही थी। हवा भारी हो चुकी थी, और आरव का बदला हुआ रूप अब सामने था—उसकी आँखों में चमकती नीली रोशनी और तलवार पर जलती चाँदी की लपटें।

दंश पहली बार पीछे हटा।

"यह... यह कैसे संभव है?"

आरव की आँखों में एक अजीब शांति थी, लेकिन उसका शरीर बिजली जैसा कंपन कर रहा था। उसने तलवार को ज़मीन पर टिकाया, और अचानक, पूरी ज़मीन में दरारें पड़ गईं।

"तूने बहुत खेल खेल लिए, दंश!"

दंश ने गुस्से से दाँत कस लिए। "मैं अंधकार का राजा हूँ! मुझे कोई नहीं हरा सकता!"

अचानक, दंश ने अपने हाथों को उठाया, और मंदिर का पूरा वातावरण बदलने लगा।

"इस बार, मैं तुझे ऐसी आग में जलाऊँगा, जिसे खुद राक्षसों ने रचा है!"

चारों ओर से काले लपटें उठने लगीं। यह कोई साधारण आग नहीं थी—यह अमावस की रात में पैदा होने वाली शापित आग थी, जो आत्माओं को जला सकती थी।

आरव को भी पहली बार हल्का झटका महसूस हुआ। दंश ने ज़ोर से हँसते हुए कहा, "अब देख, आरव! मैं तुझे और इस मंदिर की हर शक्ति को इस काली आग में राख बना दूँगा!"

सुमित्रा और व्यास बेबस खड़े थे। सुमित्रा की आँखों में आँसू आ गए।

"आरव! हमें कुछ करना होगा!"

पर अचानक, दंश ने एक नई चाल चली—उसने व्यास को पकड़ लिया और उसे हवा में उछाल दिया!

"नहीं!" सुमित्रा चीख पड़ी।

व्यास अब सीधा काली आग की ओर गिरने वाला था। अगर वह उसमें समा गया, तो उसकी आत्मा हमेशा के लिए नष्ट हो जाएगी!

आरव अब दोराहे पर था—

1️⃣ अगर वह व्यास को बचाने के लिए दौड़ा, तो दंश को हमला करने का मौका मिल जाएगा।

2️⃣ अगर वह दंश पर हमला करता, तो व्यास काली आग में जलकर समाप्त हो जाता।

आरव की साँसें तेज़ हो गईं। यह वही परीक्षा थी जिसके बारे में साधु ने चेतावनी दी थी—त्याग का असली सबक!

"क्या करूँ? मैं किसी को खोना नहीं चाहता!"

लेकिन तभी...

अचानक, आरव के कानों में एक जानी-पहचानी आवाज़ आई—

"त्याग, आरव! यह युद्ध सिर्फ़ शक्ति से नहीं जीता जाता, यह दिल से लड़ा जाता है!"

यह वीर प्रताप की आत्मा थी।

आरव की आँखें चमक उठीं।

और फिर उसने एक ऐसा फैसला लिया जो अब तक की कहानी में सबसे बड़ा मोड़ था—

उसने अपनी तलवार ज़मीन में गाड़ दी और खुद काली आग की ओर कूद पड़ा!

जैसे ही आरव काली आग में गिरा, पूरा मंदिर थर्रा उठा। हवा में एक अजीब सी चीख गूंजने लगी, और दंश ने एक जोरदार अट्टहास किया।

"देखा?! मैंने कहा था, कोई भी मुझे नहीं हरा सकता!"

सुमित्रा और व्यास की आँखों के सामने आरव जलता हुआ दिखाई दिया।

"आरव!" सुमित्रा चीख पड़ी।

पर… फिर कुछ अजीब हुआ।

दंश की हँसी अचानक रुक गई। उसके चेहरे पर भय की परछाईं थी। "नहीं… यह कैसे हो सकता है?"

काली आग जो अब तक हर आत्मा को निगल जाती थी, अचानक हवा में घूमने लगी। उसकी लपटें आरव के शरीर से हटकर चारों ओर बिखरने लगीं, जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसे रोक दिया हो।

आरव की आँखें बंद थीं, लेकिन उसके चारों ओर एक अजीब सी ऊर्जा उत्पन्न हो रही थी।

धीरे-धीरे आरव की आँखें खुलीं। पर वे अब पहले जैसी नहीं थीं। उनमें नीली और काली रोशनी एक साथ जल रही थी, जैसे अंधकार और प्रकाश का मिलन हो रहा हो।

"यह… यह क्या हो रहा है?" दंश बड़बड़ाया।

आरव ने अपने हाथों को देखा—अब उसकी हथेलियों पर अजीब रहस्यमयी चिह्न उभर आए थे।

"दंश…" आरव की आवाज़ पहले से कहीं ज़्यादा गहरी और शक्तिशाली लग रही थी।

"अब तेरी हार तय है।"

दंश को पहली बार अपने ही जादू से डर लग रहा था। उसने तुरंत एक और चाल चली—उसने मंदिर की दीवारों को गिराने की कोशिश की।

"अगर मैं तुझे हरा नहीं सकता, तो यह मंदिर ही तबाह कर दूँगा!"

मंदिर की छत दरकने लगी। विशाल पत्थर गिरने लगे। लेकिन आरव अब कोई साधारण योद्धा नहीं रह गया था।

उसने एक हाथ उठाया, और पूरा मंदिर अचानक स्थिर हो गया। पत्थर बीच हवा में रुक गए, जैसे समय ठहर गया हो।

आरव की तलवार अब काली आग से घिरी हुई थी। उसने तलवार उठाई और दंश की ओर इशारा किया।

"तेरा समय पूरा हो गया, दंश!"

दंश गुस्से से चीखा, "नहीं! मैं अमर हूँ! कोई मुझे नहीं मार सकता!"

लेकिन आरव ने ज़ोर से तलवार घुमाई, और पूरा मंदिर रोशनी से भर गया।

जैसे ही तलवार दंश की ओर बढ़ी, एक और आवाज़ गूंजी—

"आरव, रुक जा!"

आरव ने तुरंत तलवार रोक दी। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।

सामने… खड़ा था वीर प्रताप।

लेकिन वो अब आत्मा नहीं था। वह पूरी तरह जीवित लग रहा था!

"यह… यह असंभव है!" व्यास भी चौंक गया।

सुमित्रा की आँखों से आँसू बहने लगे। "वीर… आप?"

वीर प्रताप मुस्कुराए, लेकिन उनकी आँखों में गंभीरता थी।

"दंश को मारने का समय अभी नहीं आया, आरव।"

आरव और दंश दोनों स्तब्ध थे। "तुम क्या कह रहे हो?" आरव ने पूछा।

वीर प्रताप ने गहरी सांस ली।

"क्योंकि… दंश सिर्फ एक दानव नहीं, बल्कि तेरे अतीत का एक हिस्सा है!"

और यह सुनते ही, पूरे मंदिर में सन्नाटा छा गया।

मंदिर के अंदर गूंजती हुई आवाज़ ने सबको चौंका दिया था। वीर प्रताप, जो अब तक एक आत्मा के रूप में बंधे हुए थे, अब एक जीवित व्यक्ति की तरह खड़े थे। उनकी आँखों में गहरी चमक थी, और शरीर पूरी तरह ठोस लग रहा था।

"यह कैसे संभव है?" आरव की आवाज़ कांप रही थी।

सुमित्रा और व्यास अवाक थे। दंश की आँखों में भी संदेह की परछाईं दिख रही थी।

वीर प्रताप ने गंभीर स्वर में कहा, "अभी समय नहीं आया है आरव… दंश को खत्म करने का तरीका कुछ और है।"

"मुझे मार डालो!" दंश को जैसे अपनी मौत सामने खड़ी दिखाई दे रही थी, लेकिन उसकी हँसी अभी भी जारी थी।

"हाहाहा! तो क्या सोच रहे हो, आरव?"

वो आगे बढ़ा, और अपने दोनों हाथ फैला दिए।

"अगर तुझे लगता है कि मैं तेरा सबसे बड़ा शत्रु हूँ, तो मार डाल! लेकिन याद रखना… जो तू देख रहा है, वो अधूरा सच है!"

आरव की तलवार काँपने लगी।

"झूठ मत बोल!" उसने गुस्से से कहा।

लेकिन वीर प्रताप ने उसका हाथ थाम लिया।

"आरव, नहीं!"

आरव ने उनकी ओर देखा, उसकी आँखों में सवाल थे।

"क्यों? आखिर क्यों?"

वीर प्रताप की आँखों में गहरा दर्द था।

"क्योंकि अगर तूने अभी इसे मारा, तो इसकी असली शक्ति जाग जाएगी… और फिर हम इसे कभी नहीं रोक पाएँगे!"

सुमित्रा ने एक कदम आगे बढ़ाया। "लेकिन, आप तो… आप तो मर चुके थे… फिर ये सब?"

वीर प्रताप ने लंबी सांस ली। "यह सिर्फ कुछ पलों के लिए है, सुमित्रा। मैं जीवित नहीं हूँ। बस… एक शक्ति ने मुझे यहाँ वापस भेजा है, ताकि मैं आरव को सचेत कर सकूँ।"

आरव का दिमाग जैसे सुन्न हो गया था। "शक्ति? कौन सी शक्ति?"

वीर प्रताप ने चारों ओर देखा, जैसे किसी अनदेखे खतरे को भांप रहे हों।

"जो तुझे इस लड़ाई तक लेकर आई है, वही शक्ति… लेकिन उसका असली उद्देश्य कुछ और है!"

दंश अब तक खामोश था, लेकिन उसके चेहरे पर डर और हैरानी साफ थी।

वीर प्रताप ने आरव की ओर देखा और कहा "तू इस लड़ाई का हिस्सा नहीं है, आरव। बल्कि यह लड़ाई तेरे लिए बनाई गई थी!"

आरव पीछे हट गया। "मतलब?"

वीर प्रताप की आवाज़ गंभीर थी।

"तेरा जन्म सिर्फ दंश को हराने के लिए नहीं हुआ… बल्कि एक बहुत बड़े सत्य को छिपाने के लिए किया गया था!"

सभी को जैसे ज़मीन खिसकती हुई महसूस हुई।

दंश ने होंठ काटे और धीरे से बुदबुदाया—

"उसे अब पता चलने वाला है…"

अचानक हुआ सबसे बड़ा धमाका!

इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, पूरी जमीन काँपने लगी।

मंदिर के चारों ओर काले धुएँ का गुबार उठने लगा।

वीर प्रताप ने एक दर्द भरी चीख निकाली।

"अब मेरे जाने का समय आ गया!"

सुमित्रा ने दौड़कर उनके हाथ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह हवा में घुलने लगे।

वीर प्रताप की आखिरी आवाज़ मंदिर में गूंज उठी—

"आरव, अमावस की अगली रात… सच्चाई सामने आएगी…!"

और फिर… वह पूरी तरह गायब हो गए।

वीर प्रताप के गायब होते ही मंदिर में गहरा सन्नाटा छा गया। हवा अब भी भारी थी, और आरव की साँसें तेज़ हो चुकी थीं।

सुमित्रा ने धीरे से कहा, "वीर प्रताप का मतलब क्या था? कौन-सी सच्चाई सामने आने वाली है?"

व्यास, जो अब तक खून से लथपथ ज़मीन पर पड़े थे, ने बड़ी मुश्किल से कहा—

"शायद… हमें जवाब मंदिर के अंदर ही मिलेगा।"

दंश अब भी मंदिर के प्रवेश द्वार पर खड़ा था, लेकिन इस बार उसकी मुस्कान अलग थी।

"तो आखिरकार तुम्हें एहसास हो ही गया… कि ये लड़ाई कभी तुम्हारी थी ही नहीं।"

आरव ने तलवार उठाई। "अब मैं तेरी कोई बात नहीं सुनूंगा, दंश! तूने बहुत खेल खेल लिए!"

लेकिन दंश ने कोई प्रतिरोध नहीं किया। वह बस मुस्कुराया और बोला—

"मार डालो मुझे, आरव! अगर तुम सच में सोचते हो कि इससे सब खत्म हो जाएगा, तो मार दो!"

आरव के हाथ कांप गए। वह सोचने लगा कि आखिरकार दंश अपने आप को मारने के लिए क्यों कह रहा है।

तभी… मंदिर की ज़मीन तेज़ी से हिलने लगी।

फर्श पर बना एक प्राचीन चक्र चमकने लगा, और उसके बीच से एक दरार उभर आई।

सुमित्रा ने चौककर कहा, "यह क्या हो रहा है?"

दंश ने ठंडी साँस ली और कहा, "अमावस की रात शुरू हो चुकी है। अब वो जाग जाएगा!"

"कौन?" आरव ने घबराकर पूछा।

लेकिन इससे पहले कि कोई जवाब मिलता, ज़मीन के नीचे से एक काले धुएँ का सैलाब निकला और पूरा मंदिर हिल उठा।

और फिर… कोई वहाँ से बाहर आया। "एक नया दुश्मन?"

आरव ने जैसे ही देखा, उसके होश उड़ गए।

सामने एक अजीबोगरीब काली आकृति खड़ी थी। उसकी आँखें लाल थीं, और उसके चारों ओर अंधकार लहरा रहा था।

"तो… आखिरकार वह क्षण आ ही गया।"

उसकी आवाज़ जैसे कई आत्माओं की चीखों से बनी हो।

सुमित्रा ने घबराकर कहा, "यह… यह कौन है?"

दंश ने सिर झुका लिया और हल्की मुस्कान के साथ कहा—

"मिलिए असली खेल के मास्टर से। यह वही है जो इस पूरी लड़ाई को चला रहा था… अँधेरे का असली राजा!"

आरव के रोंगटे खड़े हो गए।

मंदिर के भीतर गूंजती हुई वह आवाज़ मानो हर दिशा से आ रही थी। आरव, सुमित्रा, और व्यास का दिल तेजी से धड़कने लगा।

वह रहस्यमयी आकृति धीरे-धीरे आगे बढ़ी। उसके हर कदम के साथ फर्श पर दरारें पड़ने लगीं, और हवा भारी होती जा रही थी।

आरव ने तलवार को कसकर पकड़ लिया।

"तू कौन है?" उसने दहाड़ते हुए पूछा।

आकृति हल्का-सा हंसी। उसकी आवाज़ में एक अजीब-सा कंपन था, जैसे सैकड़ों आत्माएँ एक साथ बोल रही हों।

"तुम मुझे नहीं पहचानोगे, आरव। लेकिन मैं तुम्हें बहुत अच्छे से जानता हूँ… बल्कि यह कहो कि मैं ही तुम्हें इस दुनिया में लाया हूँ!"

आरव की आँखें चौड़ी हो गईं।

"क्या बकवास कर रहा है?"

दंश अब तक सिर झुकाए खड़ा था। लेकिन इस बार, उसके चेहरे पर कोई घमंड या मज़ाक नहीं था। उसने धीमे स्वर में कहा—

"आरव… यह वही शक्ति है, जिसके कारण तेरा जन्म हुआ।"

आकृति अब पूरी तरह सामने आ चुकी थी। उसके लंबे काले वस्त्र हवा में लहरा रहे थे, और उसकी लाल आँखें जलती हुई ज्वालाओं की तरह चमक रही थीं।

"तुम्हारा जन्म सिर्फ एक संयोग नहीं था, आरव," उसने कहा। "तुम इस दुनिया में मेरे कारण आए, ताकि मेरा अंत लाने वाले बन सको… लेकिन क्या तुम सच में ऐसा कर पाओगे?"

आरव का शरीर काँप उठा।

"मेरा जन्म… तेरे कारण हुआ?"

दंश ने गहरी सांस ली।

"सिर्फ जन्म ही नहीं, तेरी सारी तकलीफें, तेरा संघर्ष, तेरा दर्द—सब इसी ने बनाया है। यह तेरी किस्मत लिखने वाला है!"

सुमित्रा अब तक चुप थी, लेकिन अब वह सामने आई और कांपती आवाज़ में बोली—

"अगर यह सच है, तो हमें इसे यहीं खत्म करना होगा!"

लेकिन तभी… आकृति ने बस अपनी उंगली उठाई।

सुमित्रा की आँखें पल भर के लिए सफेद हो गईं, और फिर वह ज़मीन पर गिर पड़ी!

आरव ने चीखते हुए उसकी तरफ दौड़ लगाई।

"माँ!!"

व्यास ने डरते हुए कहा— "यह… यह क्या कर दिया तुमने?"

आकृति हंस पड़ी।

"त्याग की पहली सीख तो पूरी हो गई, अब देखते हैं कि आरव में कितना दम है!"

आरव के अंदर जैसे ज्वालामुखी फट पड़ा।

"अब बहुत हुआ!"

उसने अपनी तलवार उठाई और पूरे बल के साथ आकृति पर झपटा। लेकिन जैसे ही उसका वार पड़ा, आकृति एक काले धुएँ में बदल गई और हवा में विलीन हो गई!

फिर वह आवाज़ गूंजी—

"तुम अभी तैयार नहीं हो, आरव! अगली अमावस तक… मैं लौटकर आऊँगा। और इस बार, सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए!"

अचानक मंदिर की दीवारें हिलने लगीं, और सब कुछ धुंधला पड़ने लगा।

दंश अब भी मुस्कुरा रहा था।

"देखा, आरव? यह लड़ाई तेरी सोच से भी बड़ी है!"

आरव के दिमाग में सवाल ही सवाल थे। वह घुटनों के बल गिर गया, और उसकी मुट्ठियाँ बंध गईं।

लेकिन एक बात साफ थी—

अब यह सिर्फ आरव की लड़ाई नहीं थी… यह पूरे संसार की लड़ाई थी!

मंदिर की दीवारें धीरे-धीरे टूट रही थीं। हवा में एक अजीब-सा कंपन था, और सब कुछ जैसे कांप रहा था।

आरव ने जल्दी से सुमित्रा की नब्ज जांची। वह जिंदा थी, लेकिन बेहोश!

व्यास अब भी सदमे में था।

"यह… यह सब क्या हो रहा है?" उसने कांपती आवाज़ में पूछा।

दंश ने एक गहरी सांस ली और मुस्कुराया।

"खेल अब शुरू हुआ है, आरव। अगली अमावस तक हमारे पास समय है। तब तक या तो तू खुद को इस युद्ध के लिए तैयार कर ले… या फिर अपनी हार स्वीकार कर ले!"

आरव की आँखों में गुस्सा भड़क उठा।

"मैं हार मानने वालों में से नहीं हूँ, दंश!"

लेकिन तभी… मंदिर की छत से काले धुएँ का एक भयंकर भंवर उठने लगा।

आसमान में बिजली चमकी, और चारों ओर स्याह अंधेरा छा गया।

एकाएक हवा में कुछ उभरने लगा—असंख्य चेहरों की छवियाँ!

ये वे लोग थे जो अतीत में इस शैतानी शक्ति से टकराए थे… लेकिन हार गए थे।

उनमें से एक आवाज़ गूंजने लगी—

"आरव… तेरा भाग्य तेरी सोच से भी अधिक जटिल है। अगर तू सच्चाई जानना चाहता है, तो तुझे 'निशाचर वन' जाना होगा!"

आरव ने चौंककर देखा। "निशाचर वन?"

आवाज फिर गूंजी—

"वहीं तुझे अपनी असली शक्ति का पहला सुराग मिलेगा… लेकिन सावधान! वहाँ जाने का अर्थ है मृत्यु को बुलाना!"

आवाज खत्म होते ही छवियाँ धुएँ में बदलकर विलीन हो गईं।

दंश के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।

"तो आखिरकार संकेत आ ही गया।"

"सबसे खतरनाक जगह"

व्यास ने धीरे से कहा, "निशाचर वन… वह जगह जहाँ से कोई भी जिंदा वापस नहीं आया!"

आरव ने अपनी तलवार कसकर पकड़ी।

"मुझे जाना ही होगा!"

लेकिन तभी…

"नहीं!"

सुमित्रा की आवाज़ गूंजी।

वह अब होश में आ चुकी थी।

उसकी आँखों में डर था।

"तू वहाँ नहीं जाएगा, आरव! वहाँ जाने का मतलब है मौत को गले लगाना!"

आरव ने माँ की तरफ देखा।

"अगर मैं नहीं गया, तो मौत हमें खुद ढूंढ लेगी, माँ!"

मंदिर के बाहर आकाश अब भी काला था। अमावस की रात का असर अब तक पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था।

आरव ने धीरे-धीरे अपनी तलवार को म्यान में डाला और गंभीर स्वर में कहा—

"मैं निशाचर वन जाऊँगा। और वहाँ से इस युद्ध का अगला जवाब लेकर लौटूँगा!"

➡️ आरव को निशाचर वन में क्या मिलेगा?

➡️ क्या वहाँ सच में मौत उसका इंतजार कर रही है?

➡️ दंश इस सफर में आरव की मदद करेगा या फिर उसके खिलाफ जाएगा?

जानने के लिए पढ़ते रहिए— "घर का चिराग – एपिसोड 14"!