अमावस की काली रात उतर चुकी थी। हवाएँ स्याह धुंध में लिपटी हुई थीं, और हर पेड़ की डालियाँ मानो अंधेरे के पंजे बन चुकी थीं। आरव अब निशाचर वन में था—एक ऐसा जंगल, जहाँ से अब तक कोई ज़िंदा वापस नहीं लौटा था।
आरव के कदम थम गए। घने कोहरे में किसी की परछाई उभरी।
"आरव!"
यह आवाज़… यह असंभव था!
वह मुड़ा और देखा—वीर प्रताप खड़े थे!
उनका चेहरा गंभीर था, आँखों में वही तेज़ था, जो आरव ने हमेशा देखा था। लेकिन… यह कैसे हो सकता है? वीर प्रताप तो मर चुके थे!
"तुम यहाँ कैसे?" आरव की आवाज़ काँप गई।
वीर प्रताप मुस्कुराए। "क्या तुमने सच में सोचा था कि मैं तुम्हें छोड़कर जा सकता हूँ?"
आरव का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। "क्या तुम… जीवित हो?"
वीर प्रताप ने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।
आरव उनके करीब जाने ही वाला था कि तभी—एक गहरी, ठंडी हँसी जंगल में गूँज उठी।
"कितना भोला है यह लड़का…"
अचानक, वीर प्रताप की छवि हिलने लगी… और फिर, वह काले धुएँ में बदल गई!
आरव ने घबराकर पीछे देखा—दंश खड़ा था!
"स्वागत है, आरव… निशाचर वन में!"
दंश की नई चाल—आरव की सबसे बड़ी परीक्षा
दंश की आँखों में अंधेरा उमड़ रहा था।
"तुम्हें लगा कि वीर प्रताप लौट आए हैं?" वह हँसा। "यह जंगल तुम्हें वही दिखाएगा, जो तुम देखना चाहते हो। लेकिन अफ़सोस…"
आरव की मुट्ठियाँ भींच गईं। "तुमने वीर प्रताप की छवि का इस्तेमाल किया!"
"ओह, तो तुम्हें समझ आ गया?" दंश की मुस्कान गहरी हो गई। "लेकिन असली खेल तो अब शुरू हुआ है, आरव!"
तभी, पूरे जंगल में एक अजीब कंपन हुआ। ज़मीन कांपने लगी, और चारों तरफ़ से गहरी परछाइयाँ उठने लगीं। ये आकृतियाँ इंसानी थीं, लेकिन उनकी आँखें खोखली थीं, चेहरे पर कोई पहचान नहीं थी।
दंश ने अपनी हथेली खोली, और उसमें एक काला क्रिस्टल चमकने लगा।
"ये वो लोग हैं, जो कभी इस जंगल में आए थे… और फिर कभी वापस नहीं लौटे!"
अचानक, वे परछाइयाँ आरव की तरफ़ बढ़ने लगीं!
आरव ने तलवार निकाल ली, लेकिन जैसे ही उसने वार किया—परछाइयाँ धुएँ में बदल गईं और उसके पीछे से निकल आईं!
"तलवार इन पर काम नहीं करेगी, आरव!" दंश हँसा।
आरव ने चारों ओर देखा। निशाचर वन उसे निगलने वाला था!
"तुम अब तीन दिशाओं में फँसे हो, आरव।" दंश की आवाज़ आई। "अगर तुम पीछे मुड़ोगे, तो तुम्हारा अतीत तुम्हें निगल जाएगा। अगर आगे बढ़ोगे, तो तुम्हारा भविष्य समाप्त हो जाएगा। और अगर तुम यहीं रुके रहे… तो यह जंगल तुम्हें अपने अंदर समा लेगा!"
आरव ने गहरी सांस ली। यह उसकी अब तक की सबसे बड़ी परीक्षा थी।
चारों तरफ़ घना अंधेरा था। हवाओं में अजीब-सी गूँज थी, जैसे किसी ने सदियों से यहाँ कदम न रखा हो। आरव को महसूस हुआ कि यह जगह सिर्फ एक जंगल नहीं, बल्कि एक अभिशप्त भूमि थी।
दंश अब भी मुस्कुरा रहा था।
"क्या हुआ, आरव?" उसकी आवाज़ में ठंडापन था। "तुम बहादुर बनते हो, लेकिन इस जंगल के रहस्य से डरे हुए लग रहे हो।"
आरव ने तलवार को कसकर पकड़ा। "मैं डरता नहीं, दंश!"
"डर सबको लगता है। लेकिन असली सवाल यह है—तुम्हें सबसे ज्यादा किससे डर लगता है?"
आरव को अचानक तेज़ सिरदर्द महसूस हुआ। उसकी आँखों के आगे अजीब-अजीब दृश्य तैरने लगे—
वीर प्रताप का मरा हुआ शरीर
सुमित्रा की चीखें
मंदिर में बहता खून
और सबसे भयानक—उसके अपने हाथ खून से सने हुए थे!
"नहीं!!" आरव चिल्लाया।
अचानक, जंगल में एक गूंज उठी। पेड़ों के पीछे से एक विशाल आकृति निकली।
वह एक दैत्य था—पुराने समय का शापित रक्षक।
"तुम कौन हो?" आरव ने पूछा।
दैत्य की आँखें चमकीं। "मैं इस जंगल का रक्षक हूँ… लेकिन अब मैं इस जंगल का कैदी हूँ!"
आरव चौंक गया। "कैदी?"
दैत्य ने भारी आवाज़ में कहा, "यह जंगल किसी को जाने नहीं देता। यहाँ जो आता है, वह यहीं का हो जाता है।"
दंश हँसने लगा। "क्या सुना तुमने, आरव? यह जंगल तुम्हें भी अपना बना लेगा!"
तभी, आरव को महसूस हुआ कि ज़मीन उसके पैरों के नीचे से खिसक रही है। वह दलदल में धँस रहा था!
"यह क्या हो रहा है?"
दैत्य ने कहा, "अगर तुम इस जंगल के सबसे बड़े रहस्य को हल नहीं कर पाए… तो तुम भी इन खोई हुई आत्माओं का हिस्सा बन जाओगे!"
आरव के पास अब समय कम था। दलदल आरव को नीचे खींच रहा था। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
"नहीं! मैं यहाँ फँस नहीं सकता!"
उसने अपनी तलवार से पास की बेलों को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वे हाथ में आते ही सूखकर राख बन गईं।
दंश पास खड़ा हँस रहा था। "आरव, यह सिर्फ़ शुरुआत है। तुम्हें अब एहसास होगा कि तुम्हारी शक्ति भी यहाँ काम नहीं करेगी!"
आरव ने गहरी साँस ली और अपनी ऊर्जा को केंद्रित किया। उसके चारों तरफ़ हल्की नीली रोशनी फैली, और धीरे-धीरे दलदल की पकड़ कमजोर पड़ने लगी। लेकिन तभी—
"रुक जाओ!" एक गहरी गूँज उठी।
जंगल में एक औरत प्रकट हुई। उसकी आँखें चमक रही थीं, और उसके लंबे बाल हवा में लहरा रहे थे। वह कोई साधारण महिला नहीं थी—वह इस जंगल की आत्मा थी।
"तुम कौन हो?" आरव ने पूछा।
"मैं इस जंगल की रक्षक हूँ।" उसकी आवाज़ में रहस्य भरा था। "जो यहाँ आता है, उसे एक परीक्षा से गुजरना पड़ता है।"
आरव ने खुद को संभाला। "कैसी परीक्षा?"
महिला ने अपनी उँगली उठाई, और अचानक जंगल में अजीब बदलाव आने लगे। पेड़ हिलने लगे, ज़मीन दरकने लगी, और आसमान में काले पक्षी उड़ने लगे।
"जो इस जंगल का रहस्य जानना चाहता है, उसे अपनी सबसे बड़ी सच्चाई से सामना करना पड़ेगा।"
दंश मुस्कुराया। "चलो, आरव! देखते हैं कि तुम्हारी असली सच्चाई क्या है!"
अचानक, जंगल में धुंध छा गई। और जब वह साफ़ हुई, तो आरव की आँखें हैरान रह गईं—
उसके सामने वीर प्रताप खड़े थे!
लेकिन यह संभव कैसे था? वीर प्रताप तो मर चुके थे!
वीर प्रताप की आँखों में चमक थी। "क्या तुम मुझे भूल गए, आरव?"
आरव पीछे हटा। "नहीं… यह संभव नहीं है! आप मर चुके हैं!"
वीर प्रताप आगे बढ़े। "अगर मैं मरा होता, तो तुम मुझे यहाँ कैसे देख सकते हो?"
आरव के शरीर में सिहरन दौड़ गई। "यह… यह एक भ्रम है!"
लेकिन तभी वीर प्रताप ने तलवार निकाल ली।
"अब मैं तुम्हारा दुश्मन हूँ, आरव। अगर तुम्हें इस जंगल से बाहर निकलना है, तो तुम्हें मुझसे लड़ना होगा!"
आरव की तलवार काँप रही थी। क्या यह सच में वीर प्रताप थे, या यह दंश का एक नया जाल था?
आरव की साँसें तेज़ हो गईं। उसके सामने खड़े वीर प्रताप की आँखों में एक अजीब चमक थी। क्या यह सच में वही वीर प्रताप थे, जो मर चुके थे?
"तुम मुझसे क्यों लड़ना चाहते हो?" आरव ने तलवार हाथ में कसते हुए पूछा।
वीर प्रताप ने हल्की मुस्कान दी। "यह युद्ध नहीं है, आरव... यह तुम्हारी परीक्षा है।"
"कैसी परीक्षा?"
वीर प्रताप ने तलवार हवा में घुमाई, और पूरा जंगल एक बार फिर हिल उठा। "सत्य और भ्रम में फर्क करने की परीक्षा।"
आरव को लगा जैसे ज़मीन उसके पैरों तले खिसक रही हो। क्या यह सच में वीर प्रताप थे, या सिर्फ़ दंश का कोई छलावा?
उधर, दंश यह सब देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रहा था। "आखिरकार, आरव भी उसी दर्द से गुज़रेगा जिससे मैंने कभी गुज़रा था!"
तभी जंगल की आत्मा—वह रहस्यमयी महिला—दंश की ओर मुड़ी।
"तुम इस वन में अधिक देर नहीं टिक पाओगे, अंधकार के योद्धा!" उसकी आवाज़ गूंज उठी।
दंश हँसा। "मैं तुम्हारी परीक्षाओं से नहीं डरता।"
महिला ने आँखें बंद कीं और बुदबुदाई। अचानक, ज़मीन के नीचे से भूतिया आकृतियाँ निकलने लगीं। वे हवा में तैर रही थीं, उनकी आँखें जल रही थीं, और उनके चेहरे से लगातार धुआँ उठ रहा था।
"ये कौन हैं?" दंश ने भौंहें सिकोड़ीं।
"ये उन्हीं योद्धाओं की आत्माएँ हैं, जो इस जंगल की परीक्षा में असफल रहे थे।" महिला ने कहा। "अब तय हो जाएगा कि तुम भी उन्हीं की तरह भटकते रहोगे, या इससे आगे बढ़ पाओगे।"
दंश की आँखों में क्रोध भर गया। "मैं किसी परीक्षा में फेल नहीं होता!"
वह अपने अंधेरे मंत्रों का उपयोग करने ही वाला था कि तभी आरव अब तक वीर प्रताप को ध्यान से देख रहा था। कुछ था, जो अजीब लग रहा था।
तभी उसे एहसास हुआ—वीर प्रताप के शरीर से हल्की धुंध निकल रही थी!
"तुम... तुम असली वीर प्रताप नहीं हो!" आरव ने चीखते हुए कहा।
वीर प्रताप मुस्कुराए।
"तुम्हारी बुद्धि तेज़ हो रही है, आरव।"
जैसे ही आरव ने यह स्वीकार किया, वीर प्रताप का शरीर धीरे-धीरे हवा में बदलने लगा। वह एक छाया में तब्दील हो गया, और उसकी जगह एक पुरानी मूर्ति प्रकट हुई।
आरव हैरान था।
महिला की आवाज़ आई—"तुमने भ्रम को पहचान लिया, आरव। अब समय है, सच्चाई को जानने का!"
लेकिन तभी जंगल में एक ज़ोरदार चीख गूँजी!
दंश के चारों ओर वे भूतिया आकृतियाँ मंडरा रही थीं। उसकी ताकत कमजोर पड़ रही थी।
"नहीं!" उसने गुस्से से चीखते हुए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी।
एक धमाका हुआ!
और जब धुआँ छंटा, तो वहाँ जो नज़ारा था, उसने सभी को चौंका दिया—
दंश अब वहाँ नहीं था।
आरव ने चौंककर इधर-उधर देखा। "वह कहाँ गया?"
महिला गंभीर स्वर में बोली—"यह उसकी हार नहीं थी... यह बस उसकी नई चाल की शुरुआत थी!" जंगल अब पूरी तरह शांत था, लेकिन यह शांति किसी बड़े तूफान से पहले की थी। दंश गायब हो चुका था, मगर उसकी मौजूदगी का अहसास अब भी महसूस किया जा सकता था।
आरव ने जंगल की आत्मा की तरफ देखा। "दंश कहाँ गया?"
महिला की आँखें बंद थीं। उसने धीरे से कहा—"वह अभी भी यहीं है, मगर अब वह इस जंगल का हिस्सा बन चुका है।"
आरव चौंक गया। "इसका क्या मतलब?"
महिला ने एक लंबी साँस ली। "दंश ने खुद को जंगल की छाया में मिला लिया है। अब वह हर जगह है, और कहीं भी नहीं!"
आरव के चेहरे पर चिंता उभर आई। अगर दंश अब इस जंगल का हिस्सा बन गया, तो उसे हराना नामुमकिन था!
मृत योद्धाओं की वापसी?
तभी, जंगल में कुछ हलचल हुई। ज़मीन के नीचे से धुआँ उठने लगा, और चारों ओर परछाइयाँ घूमने लगीं।
आरव ने तलवार कसकर पकड़ ली।
महिला की आवाज़ गूंज उठी—"जो आत्माएँ सदियों से कैद थीं, वे अब जाग रही हैं!"
और फिर—
चार विशाल आकृतियाँ जंगल से निकलीं!
उनके चेहरे धुंधले थे, लेकिन उनकी आँखों में जलती हुई आग थी। उनकी कवच पुराने ज़माने के योद्धाओं जैसे थे, मगर वे अब अर्ध-मृत अवस्था में थे—न पूरी तरह जीवित, न पूरी तरह मृत।
आरव समझ गया कि यह दंश की चाल थी।
तभी, एक गहरी और भयावह आवाज़ गूंजी—
"आरव... तुम्हें लगा कि मैं हार गया?"
आरव ने सिर घुमाया।
दंश अब जंगल के बीचों-बीच खड़ा था, लेकिन यह वही दंश नहीं था।
उसकी आँखों में पहले से भी ज्यादा अंधकार था, और उसके चारों ओर अब कोई शरीर नहीं था—वह पूरी तरह एक छाया में बदल चुका था!
"अब मैं सिर्फ एक इंसान नहीं... एक अंधकार की शक्ति हूँ!" दंश की आवाज़ पूरे जंगल में गूँज उठी।
आरव समझ गया कि अब समय आ गया था।
"अगर तुम्हें हराने के लिए मुझे खुद को खोना पड़े, तो मैं तैयार हूँ!" उसने तलवार उठाई।
दंश हँसा। "आओ, आरव। यह तुम्हारा अंत होगा!"
और तभी—
जंगल एक बार फिर हिल उठा!
अचानक, आसमान में एक अजीब चमक उठी।
और जंगल की आत्मा ने कहा—"युद्ध शुरू हो चुका है, लेकिन इसका अंत वही करेगा, जो अपने भाग्य को स्वीकार करेगा!"
चारों ओर अंधेरा फैल चुका था। आकाश में चंद्रमा दिखाई नहीं दे रहा था, और जंगल के पेड़ अब छायाओं की तरह हिल रहे थे।
आरव ने तलवार कसकर पकड़ी और उन चार अर्ध-मृत योद्धाओं की ओर देखा, जो धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ रहे थे।
"तुम कौन हो?" आरव गरजा।
लेकिन वे कुछ नहीं बोले। उनकी आँखों में सिर्फ नफरत थी।
दंश मुस्कुराया। "यह वे योद्धा हैं, जो कभी सबसे ताकतवर थे… लेकिन अब वे सिर्फ मेरी परछाइयाँ हैं।"
तभी, उनमें से एक योद्धा तेज़ी से आरव पर झपटा!
आरव ने तलवार घुमाई और वार को रोका, लेकिन जैसे ही उसकी तलवार ने योद्धा को छुआ—
"आह्ह!" आरव के हाथ जलने लगे!
"क्या हुआ, आरव?" दंश हँसा। "यह योद्धा किसी भी साधारण हथियार से नहीं मारे जा सकते।"
आरव दर्द के बावजूद पीछे नहीं हटा।
"तो फिर मैं तुम्हारी ही शक्ति के खिलाफ तुम्हें इस्तेमाल करूँगा, दंश!"
उसने आँखें बंद कीं और अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करने की कोशिश की। लेकिन तभी—
भयंकर आंधी चली, और जंगल की आत्मा ज़ोर से चिल्लाई—
"रुक जाओ, आरव! तुम्हारी असली परीक्षा अब शुरू होने वाली है!"
अचानक, ज़मीन हिलने लगी। और फिर, वहाँ एक प्राचीन पत्थर से बनी वेदी प्रकट हुई।
दंश ने भौंहें चढ़ा लीं। "यह क्या है?"
जंगल की आत्मा बोली—"यह निशाचर वन का सबसे बड़ा रहस्य है। यह वही जगह है, जहाँ सदियों पहले सबसे पहले अंधकार ने जन्म लिया था!"
आरव ने वेदी की ओर देखा, और उसे वहाँ कुछ लिखा हुआ दिखाई दिया—
"जो यहाँ अपने भाग्य को स्वीकार करता है, वह अंधकार को समाप्त कर सकता है… लेकिन इसकी कीमत चुकानी होगी!"
आरव समझ गया कि यही आखिरी मौका था।
"अगर मैं इसे स्वीकार कर लूँ, तो शायद मैं दंश को हमेशा के लिए खत्म कर सकता हूँ… लेकिन इसकी कीमत क्या होगी?" वह सोचने लगा।
दंश ज़ोर से हँसा। "करो, आरव! अगर तुममें हिम्मत है तो अपनी नियति को स्वीकार करो!"
आरव ने एक गहरी साँस ली… और फिर—
उसने वेदी पर हाथ रख दिया!
और तभी—
पूरा जंगल अचानक बिजली की चमक से रोशन हो गया!
आरव की आँखें पूरी तरह सफेद हो गईं!
"आरव!!!" जंगल की आत्मा चिल्लाई।
दंश पीछे हट गया, क्योंकि अचानक उसके चारों ओर अजीब लपटें उठने लगीं!
जैसे ही आरव ने वेदी पर हाथ रखा, पूरा जंगल बिजली की रोशनी से जगमगा उठा। चारों ओर तेज़ हवाएँ चलने लगीं, और ज़मीन में कंपन होने लगा।
दंश पीछे हटा। "यह शक्ति… यह मेरे अनुमान से कहीं ज़्यादा खतरनाक है!"
आरव की आँखें पूरी तरह सफेद हो चुकी थीं, और उसके चारों ओर एक रहस्यमयी ऊर्जा घूमने लगी।
"तुमने अपनी किस्मत स्वीकार कर ली है, आरव!" जंगल की आत्मा की गूँजती आवाज़ आई। "अब या तो तुम इस अंधकार को मिटाओगे… या फिर खुद ही इसका हिस्सा बन जाओगे!"
दंश को लगा कि आरव अब उसके नियंत्रण से बाहर जा सकता है। उसने तुरंत अपना हाथ उठाया और काली जादुई ऊर्जा से घिरा एक मंत्र फेंका।
"यह शक्ति अब मेरी होगी!"
लेकिन जैसे ही दंश की शक्ति आरव को छूने वाली थी, एक भयंकर विस्फोट हुआ!
"धड़ाम!"
दंश हवा में उछलकर दूर जा गिरा। उसकी आँखों में पहली बार डर था।
"यह कैसे संभव है?"
तभी, जंगल की आत्मा फिर से बोली—
"जिसने इस वेदी को छू लिया, वह अब या तो संपूर्ण शक्ति का स्वामी बनेगा… या फिर खुद को खो देगा!"
आरव के भीतर अजीब-अजीब दृश्य कौंधने लगे।
उसे अपनी माँ की आवाज़ सुनाई दी।
वीर प्रताप की चेतावनी याद आई।
उसने देखा कि सुमित्रा और व्यास अभी भी मंदिर में संकट में थे।
और फिर… उसे एक भयानक भविष्य दिखा—
अगर वह इस शक्ति को पूरी तरह स्वीकार कर लेता, तो वह खुद भी अंधकार में समा सकता था!
"क्या करूँ?" आरव के मन में द्वंद्व छिड़ गया।
तभी एक रहस्यमयी आवाज़ उसके कानों में आई—
"आरव, शक्ति हमेशा त्याग मांगती है। अगर तुम सच्चे योद्धा हो, तो तुम्हें यह तय करना होगा—शक्ति चाहिए या अपने प्रियजनों की रक्षा?"
दंश समझ चुका था कि आरव अब पहले जैसा नहीं रहा।
"अगर मैं अभी कुछ नहीं करता, तो यह लड़का सच में मेरा अंत कर देगा!"
अचानक, दंश ने अपनी पूरी शक्ति समेटी और आकाश की ओर हाथ उठाया।
"आओ, अंधकार की अंतिम रक्षक!"
जंगल के सबसे गहरे हिस्से से एक भयानक परछाईं निकली। यह कोई आम राक्षस नहीं था—यह "कालवृक" था, एक शापित आत्मा।
आरव की आँखें फिर से सामान्य हो गईं।
"यह क्या है?"
दंश हँसा। "तुमने सोचा था कि तुम्हारी परीक्षा यहाँ खत्म हो जाएगी? नहीं, आरव! अब तुम्हें मेरे सबसे बड़े शस्त्र से लड़ना होगा!"
जैसे ही कालवृक प्रकट हुआ, पूरी वादी में अंधकार फैल गया। हवा इतनी भारी हो गई कि साँस लेना मुश्किल था। वृक्ष झुक गए, और ज़मीन से काले धुएँ की लपटें उठने लगीं।
आरव की आँखों में हैरानी थी। "यह... यह शक्ति तो किसी और ही स्तर की है!"
दंश मुस्कुराया। "मिलिए अपने विनाश से, आरव। यह कालवृक है—जिसका जन्म ही योद्धाओं को मिटाने के लिए हुआ है!"
कालवृक ने अपने लंबे पंजे फैलाए, और उसकी आँखों से लाल ज्वाला निकलने लगी।
"ग्रहण की रात आई है... अब तुम्हारा अंत निश्चित है!"
आरव ने अपनी ऊर्जा को समेटा और वेदी की शक्ति से एक तेज़ ऊर्जा लहर छोड़ी।
"धड़ाम!"
प्रकाश और अंधकार की टक्कर हुई, लेकिन कालवृक पर कोई असर नहीं पड़ा।
दंश ज़ोर से हँसा। "हाहाहा! व्यर्थ प्रयास मत कर, आरव। यह किसी आम राक्षस की तरह नहीं है।"
कालवृक ने अपने पंजे घुमाए, और काली ज्वाला की लपटें आरव की तरफ बढ़ने लगीं।
आरव ने तुरंत अपनी शक्ति का कवच बनाया, लेकिन...
"आहह!"
ज्वाला ने कवच तोड़ दिया, और आरव पीछे जा गिरा। उसका दाहिना हाथ झुलस गया था।
"यह शक्ति... यह बहुत अधिक है!" आरव के मन में संशय आने लगा।
दंश ने आदेश दिया—"कालवृक, इसे खत्म कर दो!"
कालवृक काले धुएँ में बदलकर बिजली की गति से आरव की तरफ लपका।
आरव का सबसे बड़ा दांव
आरव को महसूस हुआ कि सीधी लड़ाई में वह नहीं जीत सकता। उसे कुछ और सोचना होगा।
"मुझे इसे हराने का कोई और तरीका निकालना होगा!"
तभी उसे याद आया—
"जिस शक्ति का जन्म अंधकार से हुआ है, उसे प्रकाश ही खत्म कर सकता है!"
लेकिन समस्या यह थी कि जंगल में हर तरफ अंधेरा था।
आरव ने अपनी अंतिम शक्ति को समेटा और ज़मीन पर अपनी हथेली रखी।
"अगर प्रकाश चाहिए, तो इसे खुद बनाना होगा!"
उसकी आँखें सफेद चमकने लगीं, और पूरा जंगल हिलने लगा।
"तुम कर सकते हो, आरव!"
कालवृक बस एक क्षण दूर था। आरव ने अपनी पूरी ऊर्जा एक बिंदु पर केंद्रित की—
और तभी...
"धड़ाम!"
पूरा जंगल सोने की तरह चमक उठा!
कालवृक चीखने लगा, उसकी काली लपटें काफूर होने लगीं।
"नहीं... यह नहीं हो सकता!"
आरव ने अपने हाथों को जोड़कर वेदी की शक्ति से एक प्रकाश विस्फोट किया।
"शुद्धि अग्नि!"
दंश की आँखें चौड़ी हो गईं। "यह असंभव है!"
कालवृक ने एक अंतिम दहाड़ लगाई, और उसके शरीर की परछाइयाँ बिखरने लगीं।
कुछ ही पलों में, वह पूरी तरह जलकर राख हो गया।
लेकिन...
दंश ने मुट्ठियाँ भींच लीं।
"यह लड़का हर बार बच कैसे जाता है?"
लेकिन तभी...
एक रहस्यमयी आवाज़ हवा में गूँजी—
"युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है, आरव। यह तो बस शुरुआत थी!"
अचानक, दंश का शरीर काले धुएँ में बदल गया और वह गायब हो गया।
आरव चौंक गया। "यह... यह क्या था?"
जंगल अब शांत हो गया था, लेकिन आरव जानता था—
यह शांति असली नहीं थी।
अगले एपिसोड में:
➡ दंश कहाँ गया?
➡ क्या कालवृक सच में समाप्त हो चुका है?
➡ निशाचर वन का सबसे बड़ा रहस्य क्या है?
पढ़ते रहिए— "घर का चिराग – एपिसोड 15"!