अध्याय 10: जब साज़िश की परतें खुलने लगीं

शनाया के हाथों में काँपता हुआ कागज़ था। उसकी आँखें एक बार फिर से उस पर लिखी बातों को पढ़ने लगीं, लेकिन यकीन करना मुश्किल था।

"यह कैसे हो सकता है?" उसने फुसफुसाते हुए कहा।

नेहा ने एक नकली मुस्कान के साथ कहा, "अब तुम्हें समझ आ रहा होगा कि यह सिर्फ़ तुम्हारी शादी का मामला नहीं है, बल्कि एक बहुत बड़ा खेल चल रहा है।"

शनाया ने उसकी आँखों में देखा। नेहा वहाँ खड़ी थी, मानो वह यह सब सिर्फ़ एक मज़ेदार तमाशे की तरह देख रही हो।

> "अगर तुम सोचती हो कि यह सब दिखाकर तुम मुझे डराओगी, तो तुम गलत सोच रही हो," शनाया ने ठंडी आवाज़ में कहा।

नेहा हँसी, "डराने के लिए नहीं, भाभी। यह तो सिर्फ़ तुम्हें आगाह करने के लिए है।"

शनाया ने गहरी साँस ली और कागज़ को मोड़कर अपने हाथ में दबा लिया। अब उसे यह तय करना था कि वह इसे करण और आर्यन को बताए या नहीं।

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💔 जब आर्यन का गुस्सा बेकाबू हुआ

शनाया सोच ही रही थी कि उसे क्या करना चाहिए कि तभी कमरे का दरवाज़ा ज़ोर से खुला। आर्यन अंदर आया, उसकी आँखें गुस्से से भरी थीं।

> "तो अब नेहा तुम्हारी खास दोस्त बन गई है?"

शनाया ने उसकी ओर देखा, "यह बात तुमसे किसने कही?"

> "ज़रूरी नहीं कि सब कुछ कहा जाए, कुछ बातें खुद भी समझी जाती हैं।"

शनाया को एहसास हुआ कि नेहा और सिया अब करण और आर्यन को उसके खिलाफ़ भड़काने की कोशिश कर रही थीं।

> "तुम मुझ पर शक कर रहे हो, आर्यन?" शनाया की आवाज़ सख्त हो गई।

आर्यन ने ठंडी नज़रों से उसे देखा, "शक नहीं, मैं सिर्फ़ यह देखना चाहता हूँ कि तुम वाकई किसका साथ दे रही हो—मेरा या हमारे सबसे बड़े दुश्मन के परिवार का?"

शनाया को गुस्सा आ गया। वह उसकी ओर बढ़ी और उसकी आँखों में गुस्से से देखते हुए बोली, "अगर मैं तुम्हारी होती, तो क्या तुम मुझसे इस तरह सवाल करते?"

आर्यन के चेहरे पर एक पल के लिए हलचल हुई, लेकिन उसने खुद को शांत रखा।

> "तुम्हें यह सब इतना आसान क्यों लग रहा है?" उसने कहा।

> "क्योंकि मुझे पता है कि यह सब सिर्फ़ एक खेल है, और मैं इस खेल में किसी को जीतने नहीं दूँगी," शनाया ने जवाब दिया।

आर्यन एक पल के लिए उसे देखता रहा, फिर बिना कुछ कहे कमरे से बाहर चला गया।

शनाया को पहली बार डर महसूस हुआ—नहीं, खुद के लिए नहीं, बल्कि अपने रिश्ते के लिए।

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🔥 जब करण ने अपना दावा ठोका

शनाया अभी भी सोच रही थी कि अब क्या किया जाए कि तभी करण कमरे में आया।

> "काफी हंगामा हो रहा है, है ना?"

> "अगर तुम यहाँ ताने देने आए हो, तो कृपया वापस चले जाओ," शनाया ने ठंडे स्वर में कहा।

करण मुस्कुराया, "और अगर मैं तुम्हें यह बताने आया हूँ कि मुझे इस पूरे खेल में सबसे ज्यादा दिलचस्पी आ रही है?"

शनाया ने गहरी साँस ली, "तुम्हें यह सब मज़ाक लग रहा है, करण?"

करण ने उसकी ठोड़ी को हल्के से छूते हुए कहा, "अगर मज़ाक होता, तो शायद मैं अब तक पीछे हट चुका होता। लेकिन अब मैं तुम्हें किसी और का नहीं होने दूँगा।"

शनाया ने उसका हाथ झटक दिया, "मैं कोई ट्रॉफी नहीं हूँ, करण!"

करण ने एक हल्की हँसी के साथ कहा, "लेकिन तुम मानो या न मानो, यह जंग तुम्हें लेकर ही हो रही है। और मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसका अंजाम क्या होगा—तुम्हें इस खेल में सिर्फ़ मेरी बनकर रहना होगा।"

शनाया की धड़कनें तेज़ हो गईं। करण का दावा और आर्यन की जलन—सबकुछ उसे एक नए मोड़ पर ले जा रहा था।

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🔪 जब साजिश और गहरी हुई

उस रात, मल्होत्रा मेंशन में एक नया राज़ खुला। विक्रम अपने लोगों के साथ एक अंधेरे कमरे में खड़ा था। उसके सामने नेहा और सिया थीं।

> "क्या तुम दोनों ने काम पूरा कर लिया?"

नेहा ने सिर झुकाया, "हाँ, पापा। हमने दरार डाल दी है। अब यह देखना बाकी है कि कब यह दरार इतनी बड़ी हो जाए कि शनाया को इस घर से निकाल दिया जाए।"

विक्रम मुस्कुराया, "बहुत अच्छा। लेकिन याद रखना, यह सिर्फ़ शुरुआत है। असली खेल अभी बाकी है।"

सिया ने विक्रम की ओर देखा, "और अगर शनाया ने हमारे प्लान को भाँप लिया तो?"

विक्रम की मुस्कान और गहरी हो गई, "तो फिर उसे रास्ते से हटाने का इंतज़ाम करना होगा।"

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अगला अध्याय: जब शनाया को अपने अतीत का सबसे बड़ा सच पता चलेगा!

अब जब नेहा और सिया अपना खेल खेल रही हैं, तो क्या शनाया करण और आर्यन को सच्चाई बताने में सफल होगी? और विक्रम की असली साज़िश क्या है?

अगले अध्याय में जब प्यार, साज़िश और बदले की ज्वाला भड़क उठेगी!