मल्होत्रा मेंशन के हर कोने में अब एक अनकही जंग चल रही थी।
विक्रम की बेटियाँ—नेहा और सिया, करण और आर्यन के दिलों में शक का बीज बो चुकी थीं।
करण और आर्यन अब शनाया पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे।
लेकिन शनाया अब पहले जैसी नहीं रही थी।
अगर दुनिया उसे गलत समझ रही थी, तो अब वह खुद को सही साबित नहीं करेगी।
अब वह खुद वो खेल खेलेगी, जिसमें जीत सिर्फ़ उसी की होगी।
---
🔥 जब शनाया ने पहली चाल चली
उस रात शनाया चुपचाप अपने कमरे में बैठी थी, लेकिन उसके दिमाग में कई साजिशें बन रही थीं।
तभी दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई।
> "अंदर आ सकते हैं?"
शनाया ने बिना देखे ही पहचान लिया कि ये करण था।
वह धीमे कदमों से उसके पास आया और उसकी बगल में खड़ा हो गया।
> "क्या तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो?" शनाया ने बिना भाव के पूछा।
करण ने उसे देखा, उसकी आँखों में कुछ था—गुस्सा? शक? या कुछ और?
> "तुम बदल गई हो, शनाया," करण ने ठंडी आवाज़ में कहा।
"पहले तुम इतनी चुप नहीं रहती थी।"
शनाया हल्के से मुस्कुराई।
> "हो सकता है कि अब मुझे बोलने की ज़रूरत नहीं लगती," उसने शांति से जवाब दिया।
करण कुछ पल उसे देखता रहा, फिर उसने उसकी कलाई पकड़ ली।
> "क्या तुम सच में हमारे साथ कोई खेल खेल रही हो?"
शनाया की मुस्कान और गहरी हो गई।
> "अगर मैं हाँ कहूँ तो?" उसने धीमे से कहा।
करण की आँखें सख्त हो गईं।
> "तो मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूँगा," उसने धीमे लेकिन गंभीर स्वर में कहा।
शनाया झुककर उसके चेहरे के करीब आई और फुसफुसाई—
> "तब तो तुम्हें जल्द ही मुझे माफ करने का मौका नहीं मिलेगा, करण।"
वह उसे छोड़कर चली गई, लेकिन करण वहीं खड़ा रह गया, यह समझने की कोशिश करता हुआ कि यह शनाया अब वैसी क्यों नहीं रही, जैसी पहले थी।
---
💔 जब आर्यन ने शनाया से दूर जाने का फैसला किया
दूसरी तरफ़, आर्यन की उलझन बढ़ती जा रही थी।
नेहा ने उसे समझाया था कि शनाया एक धोखेबाज है।
> "उसने सिर्फ़ इस घर में घुसने के लिए तुम दोनों से शादी की," नेहा ने कहा था।
"अब वह धीरे-धीरे तुम्हें और करण को तोड़ने की कोशिश कर रही है।"
आर्यन को खुद भी शनाया की हरकतों में बदलाव दिखने लगा था।
वह अब उनसे पहले की तरह बात नहीं करती थी।
वह अब पहले की तरह परेशान नहीं लगती थी।
वह अब किसी की परवाह नहीं करती थी।
और यही बात आर्यन को सबसे ज़्यादा खल रही थी।
तभी उसने खुद से एक फैसला किया—
> "अगर शनाया को मेरी ज़रूरत नहीं, तो मैं भी उसे अपनी ज़िंदगी से निकाल दूँगा।"
---
🔪 जब शनाया और विक्रम आमने-सामने आए
अगले दिन, शनाया ने वह कर दिखाया, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
वह विक्रम से मिलने गई।
उसने सीधे जाकर विक्रम के घर के दरवाज़े पर दस्तक दी।
कुछ ही देर में दरवाज़ा खुला और विक्रम खुद सामने खड़ा था।
> "अरे, यह तो सरप्राइज़ है," विक्रम ने हँसते हुए कहा।
"क्या हुआ? मल्होत्रा मेंशन में तुम्हारी जगह अब नहीं बची?"
शनाया ने उसकी आँखों में देखा और मुस्कुराई।
> "नहीं, विक्रम," उसने ठंडी आवाज़ में कहा।
"अब मैं तुम्हारे ही खिलाफ़ तुम्हारी चालें खेलने आई हूँ।"
विक्रम की मुस्कान फीकी पड़ गई।
> "दिलचस्प..." वह बुदबुदाया।
शनाया ने उसकी ओर एक कदम बढ़ाया और फुसफुसाई—
> "अब यह खेल मेरा होगा। और मैं हमेशा जीतती हूँ।"
विक्रम ने एक लंबी साँस ली और मुस्कुराया।
> "तो देखते हैं कि इस बार बाज़ी कौन मारता है, शनाया।"
---
🔥 अगला अध्याय: जब शनाया ने अपना सबसे बड़ा दांव खेला!
अब जब शनाया ने विक्रम को चुनौती दे दी है, तो क्या करण और आर्यन को उसकी सच्चाई का एहसास होगा?
या फिर वे हमेशा के लिए उसे खो देंगे?
अगले अध्याय में देखिए, जब शनाया अपने प्यार और दुश्मनी के बीच सबसे बड़ा फैसला करेगी!