भूलभुलैया की पुकार

एपिसोड 6: भूलभुलैया की पुकार

ज़मीन अर्जुन के पैरों तले टूट रही थी, मानो काँच का कोई पतला टुकड़ा चटक गया हो। वह अंधेरे में गिरता चला गया, हवा उसकी चीखों को निगल रही थी। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, लेकिन तभी एक हल्की नीली चमक ने उसे थाम लिया। ऐसा लगा जैसे कोई अदृश्य हाथ उसे धीरे-धीरे नीचे ले जा रहा हो। उसके जूते आखिरकार ठोस ज़मीन पर टिके, और दुनिया स्थिर हो गई।

उसने आँखें खोलीं। वह अब जंगल में नहीं था। उसके सामने एक विशाल गुफा थी, जिसकी दीवारें पत्थरों की नहीं, बल्कि जड़ों और लताओं से बनी थीं। हवा में एक अजीब-सी ऊर्जा गूँज रही थी, और हल्की-हल्की फुसफुसाहट सुनाई दे रही थी, जैसे कोई प्राचीन आत्मा उससे बात करना चाहती हो।

"मैं कहाँ हूँ?" उसने बुदबुदाया, उसकी आवाज़ दीवारों से टकराकर लौट आई।

तभी उसके सामने होलोग्राफिक स्क्रीन चमकी—

[आप भूलभुलैया वन के हृदय में प्रवेश कर चुके हैं। यहाँ समय और स्थान एक भ्रम हैं।]

अर्जुन ने चारों ओर नज़र दौड़ाई। यह कोई साधारण गुफा नहीं थी। लताएँ हल्के-हल्के हिल रही थीं, और हर पत्ती पर नीली रोशनी की बूँदें चमक रही थीं, जैसे आकाश के टुकड़े यहाँ बिखर गए हों। हवा शांत थी, फिर भी शाखाएँ लहरा रही थीं, मानो जीवित हों। तभी, कहीं से एक मधुर स्वर गूँज उठा—

"सुनो, हे यात्री, जो खो गया अपने ही मन में...

इस भूलभुलैया का रास्ता तुम्हारे दिल से होकर जाता है..."

यह आवाज़ उसके रोंगटे खड़े कर गई। यह किसी पुरानी लोरी की तरह थी, जो उसे नींद में सुनाई देती थी—एक नींद जो उसने कभी नहीं देखी।

"कौन हो तुम?" उसने हिम्मत जुटाकर पूछा, अपनी ऊर्जा तलवार को मज़बूती से पकड़ते हुए।

जवाब में केवल गीत की अगली पंक्ति गूँजी—

"सच को पाने के लिए, झूठ को गले लगाओ...

हर कदम पर छिपा है एक सवाल, हर सवाल में जवाब..."

मन के दर्पण

अर्जुन ने सावधानी से कदम बढ़ाया। गुफा उसके चारों ओर बदल रही थी। लताएँ हट रही थीं, और नई राहें खुल रही थीं। हर राह के अंत में एक दर्पण खड़ा था—लंबा, चमकता हुआ, और इतना साफ़ कि उसमें उसकी आत्मा तक झलक रही थी।

वह पहले दर्पण के पास पहुँचा। उसमें उसकी परछाई थी, लेकिन यह आज का अर्जुन नहीं था। एक छोटा बच्चा था—नन्हा, कमज़ोर, आँखों से आँसू बहाता हुआ। उसके पीछे एक मंदिर जल रहा था, आग की लपटें आकाश को चूम रही थीं।

"ये... मेरी यादें हैं?" उसने हाथ बढ़ाया, लेकिन दर्पण धुंधला हो गया और कोहरे में बदल गया।

दूसरे दर्पण में वह एक योद्धा था। उसके हाथ में सुनहरी तलवार चमक रही थी, लेकिन उसकी आँखें खाली थीं, जैसे उसकी आत्मा कहीं खो गई हो।

तीसरा दर्पण और भी भयावह था। उसमें वह कालद्रष्टा था—शक्तिशाली, लेकिन अकेला। उसके चारों ओर लाशें बिछी थीं, और उसका चेहरा खून से सना था।

"क्या यह मेरा भविष्य है?" अर्जुन का गला सूख गया।

होलोग्राफिक स्क्रीन फिर चमकी—

[चेतावनी: यह भूलभुलैया आपके मन का खेल है। जो दिखता है, वह सच नहीं भी हो सकता।]

अर्जुन ने गहरी साँस ली। "तो यह सब एक भ्रम है... लेकिन फिर सच क्या है?"

रहस्यमयी मार्गदर्शक

तभी, लताओं के बीच से एक छोटी-सी चमकती आकृति निकली। यह एक नीली तितली थी, जिसके पंखों से प्रकाश बिखर रहा था। वह अर्जुन के पास मँडराई और फिर आगे बढ़ने लगी।

"क्या तुम मुझे रास्ता दिखा रही हो?" अर्जुन ने पूछा।

तितली ने हल्की-सी चहचहाहट की, और अर्जुन उसके पीछे चल पड़ा। रास्ते में गीत फिर गूँजा—

"साथी चुनो, पर भरोसा सोचो...

हर मदद एक परीक्षा भी हो सकती है..."

अर्जुन सतर्क हो गया। "क्या यह तितली मेरा मार्गदर्शक है, या कोई जाल?"

तितली उसे एक विशाल पेड़ के पास ले गई। पेड़ का तना इतना मोटा था कि उसमें एक दरवाज़ा बना था। दरवाज़े पर प्राचीन अक्षर खुदे थे—"सत्य का द्वार"।

जैसे ही अर्जुन ने उसे छुआ, दरवाज़ा खुल गया, और वह एक चमकती गुफा में पहुँच गया।

सत्य का दर्शन

गुफा के बीचों-बीच एक विशाल क्रिस्टल हवा में तैर रहा था। उसमें से एक परिचित आकृति उभरी—नकाबपोश योद्धा। लेकिन इस बार उसने अपना नकाब हटा दिया।

उसका चेहरा... अर्जुन का ही था।

"तुम... मैं हूँ?" अर्जुन के पैर लड़खड़ा गए।

"मैं तुम्हारा वह हिस्सा हूँ, जिसे तुमने भुला दिया," योद्धा ने शांत स्वर में कहा। "मैं तुम्हारा डर हूँ, तुम्हारा गुस्सा हूँ, और तुम्हारी वह शक्ति हूँ, जिसे तुमने कभी स्वीकार नहीं किया।"

अर्जुन ने मुट्ठियाँ भींच लीं। "तो तुम मुझसे लड़ना चाहते हो?"

"नहीं," योद्धा मुस्कुराया। "मैं तुमसे जुड़ना चाहता हूँ।"

होलोग्राफिक स्क्रीन चमकी—

[नई चुनौती: अपने भीतर के अंधेरे को स्वीकार करो।]

अर्जुन ने आँखें बंद कीं। उसने अपने डर को याद किया—अकेलेपन का डर, हार का डर, और उस शक्ति का डर जो उसे नष्ट कर सकती थी। उसने अपने गुस्से को महसूस किया—उन लोगों पर जो उसकी यादें छीन ले गए थे।

"अगर मैं कालद्रष्टा हूँ, तो मुझे अपने हर हिस्से को अपनाना होगा।"

जैसे ही उसने यह कहा, योद्धा उसके पास आया और उसमें समा गया। अर्जुन के शरीर में एक तेज़ ऊर्जा दौड़ गई। उसकी आँखें नीली और सुनहरी रोशनी से चमक उठीं।

[नई क्षमता अनलॉक: डार्क लाइट फ्यूजन (अंधेरे और प्रकाश का संगम)]

उसके हाथों से एक नई तलवार उभरी—आधी काली, आधी सफेद, दोनों रंग एक-दूसरे में घुलते हुए।

मायरा की वापसी

अर्जुन की आँखें खुलीं। वह अब भूलभुलैया वन से बाहर था। सामने एक विशाल मैदान फैला था, और दूर क्षितिज पर एक काला महल खड़ा था, जिसके चारों ओर काली धुंध लिपटी थी।

लेकिन तभी, नीली तितली फिर प्रकट हुई। उसने धीरे-धीरे एक मानव आकृति ले ली—यह मायरा थी।

"मायरा?!" अर्जुन चौंक गया। "तुम यहाँ कैसे?"

मायरा की आँखों में उदासी थी। "मैं तुम्हें बचाने आई थी, अर्जुन। लेकिन इस भूलभुलैया ने मुझे बदल दिया। अब मैं पूरी तरह यहाँ की नहीं हूँ।"

अर्जुन ने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उसका हाथ हवा से गुज़र गया। वह एक भूत की तरह थी।

"तुम्हें मुझे छोड़ना होगा, अर्जुन," मायरा ने धीरे से कहा। "लेकिन मैं तुम्हें एक आखिरी तोहफा दे सकती हूँ।"

उसने अपनी हथेली खोली, और एक चमकता हुआ बीज अर्जुन के हाथ में आ गिरा। यह हल्का हरा था, और उसमें से जीवन की गर्मी निकल रही थी।

[आपने 'जीवन का बीज' प्राप्त किया। इसका रहस्य बाद में खुलेगा।]

मायरा धीरे-धीरे गायब होने लगी। उसकी अंतिम आवाज़ हवा में गूँजी—

"उस काले महल में तुम्हारा असली दुश्मन इंतज़ार कर रहा है... सावधान रहना, अर्जुन।"

अर्जुन ने बीज को कसकर पकड़ा। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन चेहरे पर एक दृढ़ संकल्प था।

"मैं तुम्हें नहीं भूलूँगा, मायरा। और जो भी वह दुश्मन है, मैं उसे खत्म करूँगा।"

काले महल की ओर

अर्जुन ने काले महल की ओर कदम बढ़ाए। मैदान सुनसान था, लेकिन हवा में एक भारीपन था, जैसे कोई उसे देख रहा हो। उसकी नई तलवार उसके हाथ में चमक रही थी, और उसकी हर साँस में नई शक्ति का अहसास था।

तभी, ज़मीन हल्के-हल्के काँपने लगी। मैदान के बीचों-बीच से एक काली आकृति उभरी। यह कोई इंसान नहीं था—एक विशाल छाया, जिसकी आँखें लाल थीं और जिसके शरीर से काला धुआँ निकल रहा था।

होलोग्राफिक स्क्रीन चमकी—

[सावधान! छाया सम्राट (Shadow Emperor) प्रकट हुआ।]

अर्जुन ने तलवार को दोनों हाथों से पकड़ा। "तो तुम हो मेरा असली दुश्मन?"

छाया सम्राट की गहरी हँसी गुफा में गूँजी। "तुम यहाँ तक पहुँच गए, कालद्रष्टा। लेकिन क्या तुम मेरे सामने टिक पाओगे?"

अर्जुन मुस्कुराया। "देखते हैं।"

वह उसकी ओर दौड़ा, और उसकी तलवार से नीली और काली रोशनी की लहरें निकलीं। छाया सम्राट ने एक विशाल काला हाथ उठाया, और दोनों की शक्तियाँ हवा में टकराईं।

धड़ाम!

ज़मीन हिल गई, और धूल का गुबार उठा। यह लड़ाई अभी शुरू हुई थी...