स्टोन ने अनिकेत का रूप ले लिया था।
और तभी।
अनन्या: अनिकेत को देखते हुए सवाल किया, "डॉक्टर अनिकेत, आप पूरी रात मेरे दरवाजे पर क्या कर रहे थे?"
अनिकेत ने उसकी ओर देखते हुए कहा, "मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है। क्या हम अकेले में बात कर सकते हैं?"
अनन्या ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "डॉक्टर अनिकेत, अगर आप फिर से मुझे प्रपोज करने की सोच रहे हैं, तो मेरा जवाब वही है – ना।"
अनिकेत ने सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, बात इससे अलग है। मुझे उस पत्थर के बारे में तुमसे कुछ कहना है।"
इस बात को सुनकर अनन्या कुछ पल के लिए अनिकेत को देखने लगी, फिर बोली, "ठीक है, मेरी केबिन में चलो। वैसे भी हमारी सिक्रेट लैबोरेटरी अभी बंद होगी।"
अनन्या अनिकेत को लेकर अपने केबिन में चली गई। अपने सीट पर बैठते ही उसने पूछा, "अब बताओ, आखिर क्या हुआ था उस वक्त? जहां तक मैंने देखा, तुम कुछ छिपा रहे थे।"
अनिकेत हल्की मुस्कान के साथ बोला, "तुम बहुत होशियार हो, अनन्या।" इतना कहते ही उसने टेबल के नीचे अपने हाथ हिलाए, और अचानक उसके हाथों से छोटी-छोटी रोशनियां निकलकर अनन्या की ओर बढ़ने लगीं।
अनन्या कुछ प्रतिक्रिया कर पाती, इससे पहले ही वे रोशनियां उसे पूरी तरह जकड़ चुकी थीं, यहां तक कि उसका मुंह भी बंद हो गया था। तभी अनिकेत उसके ठीक सामने आ खड़ा हुआ और उसके दोनों कंधों को पकड़ लिया। अनन्या ने अनिकेत की आंखों में देखा – वे पूरी तरह सफेद थीं, उनमें कुछ भी नहीं था। अचानक उसकी आंखों से सुनहरी रोशनी निकलकर सीधी अनन्या की आंखों में समाने लगी।
अचानक, किसी ने अनिकेत के सिर पर जोरदार वार किया, जिससे वह जमीन पर गिर पड़ा। वह व्यक्ति तेजी से उसके सिर को कपड़े से लपेटने लगा और फिर उसके हाथ-पैर बांधकर उसे कुर्सी पर बैठा दिया। इसके बाद, उस व्यक्ति ने अनन्या को मुक्त किया।
"अनन्या, क्या तुम ठीक हो?" वह व्यक्ति अनन्या के सामने खड़ा था – असली डॉक्टर अनिकेत!
अनन्या ने घबराकर पहले अनिकेत को देखा और फिर कुर्सी पर बंधे दूसरे अनिकेत को। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
"देखो अनन्या, मुझे तुम्हें यह समझाने का समय नहीं है, लेकिन इतना जान लो कि जब मैं उस ग्लास क्यूब के अंदर था, जहां वह दिव्य पत्थर रखा था, तब वह पत्थर अचानक चमका। तुम लोगों ने क्यूब को सील कर दिया था, लेकिन असल में वह पत्थर मेरे पास आकर मुझे बेहोश कर गया और मेरा रूप लेकर बाहर आ गया। तुम सबको धोखा दे रहा था।"
अनन्या अवाक थी।
"यह तो अच्छा हुआ कि डॉक्टर संजीव के अलावा मेरे पास भी वहां से बाहर निकलने का एक्सेस था। वरना जब मैं होश में आया, तब तक तो मुझे बाहर निकलने में कम से कम दो-तीन दिन लग ही जाते।"
"अब हमें क्या करना चाहिए?" अनन्या ने चिंतित स्वर में पूछा।
"हमें तुरंत लैबोरेटरी जाना होगा और डॉक्टर संजीव से मिलकर इस बारे में बताना होगा। अगर हमने देरी की, तो यह बहुत बड़ी परेशानी खड़ी कर सकता है।" अनिकेत ने दृढ़ स्वर में कहा।
डॉक्टर अनिकेत पत्थर से बने हुए उस अजीब जीव को घूरते हुए बोले, "कुछ भी कर लो, तुम लोग मुझे नहीं रोक पाओगे!"
जैसे ही उन्होंने यह कहा, वह दिव्य पत्थर तेजी से अपने हाथ-पैर हिलाने लगा, जिससे उसकी रस्सियाँ धीरे-धीरे ढीली होने लगीं। यह देखकर डॉक्टर अनिकेत और डॉक्टर अनन्या घबरा गए। वे फौरन उसकी रस्सियों को कसकर बाँधने लगे और सुनिश्चित किया कि वह फिर से मुक्त न हो सके।
"देखो अनन्या, अब यह नहीं खुलेगा," अनिकेत ने राहत की सांस लेते हुए कहा। "हमें तुरंत लैब जाना होगा और बेस पर सभी को सूचित करना होगा कि यह यहाँ है। पूरी फोर्स टीम को बुलाना पड़ेगा ताकि इसे सुरक्षित वापस ले जाया जा सके। वरना अगर यह आज़ाद होकर घूमने लगा, तो..."
अनिकेत अचानक चुप हो गए। उनके चेहरे पर चिंता झलक रही थी। बिना समय गँवाए, दोनों लैब छोड़कर बेस की ओर रवाना हो गए।
रास्ते में वे डॉक्टर संजीव को कॉल करने की कोशिश करते रहे, लेकिन उनका फोन लगातार स्विच ऑफ आ रहा था। मजबूरन उन्हें सीधे उनके घर जाना पड़ा।
***
दूसरी ओर, शौर्य धीरे-धीरे होश में आ रहा था। वह एक बिस्तर पर लेटा हुआ था और उसकी आँखों के सामने एक सुंदर डॉक्टर बैठी थी। उसके बगल में साक्षी मैम भी मौजूद थीं।
"वैसे, डॉक्टर प्रीति, शौर्य कब तक पूरी तरह ठीक हो जाएगा?" साक्षी मैम ने चिंतित स्वर में पूछा।
"कह नहीं सकते," डॉक्टर प्रीति ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया। "अभी तो यह होश में आ रहा है, लेकिन पूरी तरह पहले जैसा होने में थोड़ा समय लगेगा। इसके सिर पर गहरी चोट लगी है, इसलिए इसे पूरा आराम चाहिए।"
डॉक्टर प्रीति थोड़ी देर रुककर बोलीं, "वैसे मैंने सुना है, साक्षी मैम, आपने शौर्य को बहुत सारा होमवर्क दिया था, वो भी सिर्फ एक दिन में पूरा करने के लिए! अब, चूँकि यह बीमार था, क्या इसे एक दिन की और छूट नहीं मिलनी चाहिए?"
साक्षी मैम ने पहले तो थोड़ा सोचा, फिर बोलीं, "ठीक है, ले लो एक और दिन।" फिर वह शौर्य की ओर घूरते हुए बोलीं, "मैं जानती हूँ, तुम उठ चुके हो। नाटक करने की जरूरत नहीं है!"
शौर्य ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं और साक्षी मैम और डॉक्टर प्रीति को देखने लगा। "सॉरी, मैम..." उसने धीरे से कहा, लेकिन इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी करता, साक्षी मैम ने उसे हाथ से चुप रहने का इशारा किया।
"चुपचाप रहो! समझे?" वह सख्ती से बोलीं। "तुम जैसे बच्चों की वजह से मुझे प्रिंसिपल को सफाई देनी पड़ती है! और यह लड़ाई इतनी ज्यादा कैसे बढ़ गई कि तुम्हें इतनी गहरी चोट आ गई? अगर तुम समय पर डॉक्टर के पास नहीं पहुँचते, तो तुम्हें पता है क्या हो सकता था? तुम्हारी वजह से हमारे स्कूल का नाम खराब हो सकता था!"
फिर वह गहरी सांस लेते हुए बोलीं, "चूँकि अब तुम ठीक हो, तो बेहतर होगा कि जल्दी से घर जाओ और अपना होमवर्क पूरा करके लाओ!"
यह कहकर साक्षी मैम वहाँ से चली गईं, जबकि शौर्य डॉक्टर प्रीति की ओर देखता रह गया।