शौर्य को एक रहस्यमय अवसर मिला था ताकतवर बनने का। यह सब कुछ अब उसके ऊपर था कि वह इसे स्वीकार करता है या नहीं।
अचानक, हमें एक दिव्य पत्थर दिखाया जाता है, जो अब हूबहू शौर्य जैसा दिखने लगा था। दूसरी ओर, शौर्य बहुत तेजी से कई रोशनी के आर-पार जा रहा था। उसे कुछ भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था, बस रोशनी की चमक थी। तभी, उसे अपने ठीक सामने एक विशाल सफेद रोशनी नजर आई।
"क्या मैं घर पहुंच गया?" शौर्य ने मन ही मन सोचा और उस सफेद रोशनी में प्रवेश कर गया। लेकिन जैसे ही उसकी आंखें खुलीं, वह एक अंधेरे से भरे जंगल में खड़ा था। चारों ओर घना अंधेरा था, बस हल्की-सी चांदनी थी, जो उसे अपने ग्रह की चांदनी जैसी लगी।
"क्या मैं घर पहुंच गया हूं? या फिर कहीं और टेलीपोर्ट हो गया हूं?" शौर्य मन ही मन सोचने लगा। लेकिन चांद देखकर उसे लगा कि वह धरती पर ही है, बस अपने घर से दूर किसी जंगल में।
"यहां म्यूटेंट मॉन्स्टर्स भी हो सकते हैं, मुझे कहीं छिपना होगा।" जैसे ही शौर्य ने यह सोचा, उसे अपने पीछे एक अजीब आवाज सुनाई दी। एक ठंडी हवा उसके शरीर को छूकर गुजरी।
शौर्य तेजी से पीछे मुड़ा और उसने एक विशाल नाक देखी, जो गहरी सांस ले रही थी। वह सांस सीधे शौर्य के ऊपर पड़ रही थी। घबराहट में वह थोड़ा पीछे हटा, लेकिन तभी उसके पैर पत्तों पर पड़े, जिससे हल्की आवाज हुई। इस आवाज से वह विशाल प्राणी जाग गया। उसकी चमकती आंखें अब सीधे शौर्य को घूर रही थीं।
"ये म्यूटेंट मॉन्स्टर ही है, लेकिन इतना बड़ा क्यों है?" शौर्य ने सोचा और तेजी से भागने लगा।
पीछे मुड़कर देखने पर, उसने पाया कि वह प्राणी किसी डायनासोर जैसा दिख रहा था।
"हे भगवान! यह तो डायनासोर है!"
शौर्य तेजी से भागने लगा, लेकिन डायनासोर की गति उससे कहीं ज्यादा थी। वह तेजी से शौर्य के पीछे दौड़ पड़ा और जल्द ही उसके बहुत करीब आ गया। जब वह शौर्य को खाने ही वाला था, तभी शौर्य का पैर फिसल गया और वह गिर पड़ा।
डायनासोर अपने बड़े आकार की वजह से खुद को संभाल नहीं पाया और आगे की ओर लुढ़क गया। शौर्य ने इस मौके का फायदा उठाया और दूसरी दिशा में भाग निकला।
तभी, डायनासोर की नजर एक अजीब कीड़े पर पड़ी, जो जमीन से बाहर आ रहा था। इस दृश्य को देखकर डायनासोर की आंखों में डर साफ झलक रहा था। अगले ही पल, डायनासोर ने देखा कि जिस चीज़ पर वह गिरा था, वह कोई साधारण चीज़ नहीं थी। उसे पहचानते ही डायनासोर की दर्दनाक चीख पूरे जंगल में गूंज उठी।
शौर्य को यह चीख सुनाई दे रही थी, लेकिन वह समझ नहीं पाया कि यह गुस्से की थी या दर्द की। तभी, आसमान से एक विशाल कीड़ा उड़ता हुआ नीचे गिरा और शौर्य के ठीक सामने आकर गिरा।
शौर्य एक पेड़ के पीछे छिपा हुआ था और अब डायनासोर की चीखें दूर जाती महसूस हो रही थीं।
शौर्य ने घायल कीड़े को देखा, जिसका शरीर पत्थर जैसे किसी कठोर पदार्थ से ढका हुआ था। उसने हल्के से उसकी खोल को छूकर उसकी कठोरता का अंदाजा लगाया।
"ये कीड़ा कितना मजबूत है!"
शौर्य ने सोचा और महसूस किया कि कीड़ा उसे डरी हुई नजरों से देख रहा था। वह शौर्य को समझ नहीं पा रहा था कि वह उसका दोस्त है या दुश्मन। कुछ ही क्षणों में, वह कीड़ा बेहोश हो गया। शौर्य उसे सहलाने लगा कि कहीं वह मर तो नहीं गया।
शौर्य को इतने बड़े कीड़े देखकर हैरानी हो रही थी, क्योंकि जहां वह रहता था, वहां म्यूटेंट कीड़े छोटे होते थे। पर यह कीड़ा उन सबसे बड़ा और ज्यादा शक्तिशाली लग रहा था।
धीरे-धीरे रात बीत गई और सूरज उगने लगा।
"ओह नहीं! सूरज की रोशनी में डायनासोर मुझे देख लेंगे!" शौर्य चिंतित हो उठा।
तभी, घायल कीड़ा होश में आ गया और शौर्य को देखने लगा।
"कोई बात नहीं दोस्त, अब तुम ठीक हो। जाओ, अपनी जान बचाओ," शौर्य ने कहा।
पर कीड़ा शौर्य के हाथों को कसकर पकड़ने लगा।
"क्या हुआ? जाना नहीं चाहता? देखो, मैं खुद यहां मरने वाला हूं, तुम कम से कम बच जाओ," शौर्य ने कहा।
अचानक, कीड़े से सफेद रोशनी निकली और वह शौर्य के हाथ में समा गया।
"ये क्या था? यह मेरे हाथ में कैसे चला गया?"
शौर्य चौंक गया और अपने आसपास देखने लगा। तभी, सूरज की रोशनी उस पर पड़ी और उसकी आंखें खुल गईं।
शौर्य ने देखा कि वह एक बड़ी बिल्डिंग के सामने था।
"क्या? मैं वापस आ गया? थैंक गॉड, यह सब सपना था!"
शौर्य ने राहत की सांस ली और अपने बैग की जांच की। उसका प्रोजेक्ट अभी भी सुरक्षित था।
"चलो, अब स्कूल जाने का वक्त हो गया," उसने खुद से कहा और स्कूल के लिए निकल पड़ा।
दूसरी ओर, अनन्या की लैब में डॉक्टरों की भीड़ थी। वहां डॉक्टर संजीव और डॉक्टर अनिकेत मौजूद थे।
"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि वह दिव्य पत्थर इतना चालाक कैसे हो सकता है! और यह दूसरों का भेस भी ले सकता है!" डॉक्टर संजीव बोले।
"डॉक्टर अनिकेत, जब आपने आखिरी बार उसे देखा था, तब वह किस स्थिति में था?"
डॉक्टर अनिकेत ने उन्हें विस्तार से बताया कि कैसे उन्होंने दिव्य पत्थर को वहां सुरक्षित रखा था। लेकिन अब वह पत्थर वहां नहीं था।
डॉक्टर अनिकेत और डॉक्टर संजीव दिव्य पत्थर को लेकर चर्चा कर रहे थे। उन्हें उम्मीद थी कि यह पत्थर अपने मूल रूप में आकर वहां से निकल सकता है, लेकिन उसमें पर्याप्त ऊर्जा नहीं बची थी। अगर वह अपने पत्थर वाले रूप में लौटता, तो बस एक साधारण पत्थर बनकर रह जाता, जिससे उसकी बोलने की क्षमता भी खत्म हो जाती। इसी कारण उन्होंने उसे वहीं छोड़ने का फैसला किया। लेकिन यह पत्थर उनकी उम्मीद से कहीं ज्यादा चालाक निकला।
"वैसे अनन्या कहां है?" डॉक्टर संजीव ने पूछा।
"असल में, उसका भाई दो दिन से लापता है," अनिकेत ने गंभीर स्वर में जवाब दिया। "वह स्कूल गई थी, लेकिन वहाँ पता चला कि वह भी दो दिन से नहीं आया है।"
"मतलब?" संजीव ने चौंककर पूछा।
"उसने अपने भाई के लिए जो प्रोजेक्ट तैयार किया था, वह भी गायब है। हालांकि, यह कोई बड़ी बात नहीं लगती, क्योंकि जब हम यहाँ आए थे, तो सब कुछ टूटा-फूटा था। बहुत सारी चीजें खिड़की से बाहर गिरी हुई थीं। हो सकता है, वह प्रोजेक्ट भी कहीं खो गया हो।"