वह कोई और नहीं बल्कि आदर्श अग्रवाल था—विक्रम का पिता।
प्रिंसिपल रंजीत ने चौकते हुए पूछा, "आदर्श, तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
आदर्श अग्रवाल ने तीखी नजरों से उन्हें देखा और कहा, "अच्छा तो अब तुम अनजान बनने का नाटक कर रहे हो? तुम्हें सब कुछ पता है कि यहां क्या हुआ है। मेरा बेटा अस्पताल में है, और तुम मुझसे उम्मीद कर रहे हो कि मैं उसे छोड़ दूं, जिसने मेरे बेटे का यह हाल किया?"
प्रिंसिपल रंजीत गंभीर स्वर में बोले, "तुम्हारी आवाज़ पहले से बदल गई है, आदर्श। क्या तुम भूल गए हो कि तुम्हें अपने बेटे का एडमिशन यहां करवाने में कितने साल लग गए थे?"
आदर्श हंसते हुए बोला, "वह बीते समय की बात है, बेवकूफ! अब मैं इस शहर का सबसे बड़ा डॉन हूँ। मेरे सामने तुम्हारी कोई औकात नहीं बची है।"
इतना कहकर आदर्श अग्रवाल ने अपनी जेब से एक डिवाइस निकाली। अचानक, उसके सीने से एक लाल रोशनी निकलकर ज़मीन पर गिरने लगी और कुछ ही पलों में वह एक विशालकाय, मोटी चोंच वाली चिड़िया के रूप में बदल गई। यह उड़ने वाला बीस्ट था, लेकिन उड़ने के लिए नहीं बल्कि अपने शिकार को बेरहमी से मारने के लिए जाना जाता था। उसकी चोंच किसी भी इंसान को कुछ ही सेकंड में टुकड़ों में तब्दील कर सकती थी।
हालांकि, वहां मौजूद लोग इस दृश्य से अधिक हैरान नहीं हुए। उन्हें पता था कि यह बीस्ट सिर्फ उड़ने के लिए नहीं बल्कि किसी को भी तड़पा-तड़पा कर मारने के लिए प्रसिद्ध था।
आदर्श ने आगे बढ़कर कहा, "मुझे नहीं लगता कि तुम्हें मुझसे लड़ना चाहिए, प्रिंसिपल रंजीत। यही बेहतर होगा कि तुम मेरे रास्ते से हट जाओ। जिसने भी मेरे बेटे पर हाथ उठाया है, वह आज जिंदा नहीं बचेगा।"
आदर्श अग्रवाल, तुम अपनी लिमिट क्रॉस कर रहे हो। तुम्हें अच्छी तरह पता है कि एक बीस्ट टेमर को मारना कितना बड़ा अपराध होता है। अगर तुमने यहां किसी भी बी-टेमर को चोट पहुँचाने की कोशिश की... तो तुम सोच भी नहीं सकते तुम्हारे साथ क्या होगा। लोग भूल जाएंगे कि तुम कभी किसी डॉन हुआ करते थे।"
प्रिंसिपल रंजीत आदर्श को कड़ी नजरों से घूरते हुए बोले।
आदर्श हल्की हँसी के साथ बोला,
"अरे प्रिंसिपल साहब, मैं अगर किसी बी-टेमर को मारूं तो बात समझ भी आती। लेकिन ये लड़का... इस वक्त न तो बी-टेमर है, न ही किसी टेम की क्लास में। बस एक जूनियर स्टूडेंट है जिसने गलती से न्यूरो कोर जनरेट कर लिया है। अब तक इसने न किसी बीस्ट को टेम किया है, न कोई मिशन पूरा किया है। इस हिसाब से तो यह धरती पर एक बोझ है, और कुछ नहीं।"
तभी एक अजीब-सा पक्षी जिसकी चोंच खंजर जैसी थी, शौर्य की ओर तेजी से बढ़ने लगा।
शौर्य ने मन ही मन कहा, "रुको... मत आओ।"
पर पक्षी ठिठक गया, जैसे उसकी बात सुन रहा हो।
फिर एक कर्कश आवाज गूंजी,
"क्या... क्या तुम मेरी आवाज़ सुन सकते हो?"
शौर्य ने बिना बोले जवाब दिया,
"हाँ, मैं तुमसे बात कर सकता हूँ... लेकिन अगर तुम मुझे मार दोगे तो—"
"बहुत अच्छा... पहली बार कोई मुझसे बात करता हुआ मरेगा।"
इतना कहकर वो पक्षी शौर्य की ओर झपट पड़ा।
लेकिन अगले ही पल, शौर्य के पीछे से एक तेज़ हरी रोशनी चमकी और पलक झपकते ही वह रोशनी उस पक्षी से लिपट गई।
हर कोई स्तब्ध रह गया।
वो रोशनी... अब एक विषैले कांटेदार स्नेक की शक्ल में थी। वो पक्षी अब फंसा हुआ था, साँस लेने की कोशिश में तड़प रहा था।
भीड़ से एक हैरान आवाज़ आई—
"ये... ये तो हाइब्रिड है! लेकिन... हाइब्रिड मॉन्स्टर्स तो सिर्फ़ हाई-रैंक डॉक्टर बना सकते हैं!"
आदर्श अग्रवाल चौकन्ने हो गए। उनकी नजरें शौर्य के पीछे जा टिकीं—
डॉक्टर अनिकेत और डॉक्टर अनन्या।
"आप दोनों... यहाँ?" आदर्श ने पूछा।
डॉक्टर अनिकेत मुस्कुराए,
"हमारा कोई खास यहां मौजूद है... उसी के लिए आए हैं।"
"तो फिर उसके पास जाइए। मेरे काम में दखल मत दीजिए, डॉक्टर।"
आदर्श की आवाज़ अब कड़कने लगी थी।
डॉक्टर अनन्या एक कदम आगे आईं।
"हम जिस 'खास' की बात कर रहे हैं... वो है शौर्य।"
सन्नाटा छा गया।
हर कोई हैरान था—शौर्य? अनाथ शौर्य? इन हाई रैंक डॉक्टरों का 'अपना'?
डॉक्टर अनन्या ने गुस्से से आदर्श की ओर देखा।
"अगली बार मेरे भाई पर हाथ उठाने से पहले सौ बार सोचना।"
शौर्य हतप्रभ खड़ा था। लोग फुसफुसाने लगे—
"ये कैसे हो सकता है? ये तो हमेशा कहता था कि अनाथ है... और अब इसकी बहन... टू स्टार डॉक्टर निकली?"
आदर्श हँसा,
"तुम मजाक कर रही हो। मैंने इसकी पूरी हिस्ट्री खुद देखी है। ये अनाथ है!"
"मुझे फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्या मानते हो, आदर्श। मैं इसकी बहन हूँ। और मैं एक टू स्टार डॉक्टर होते हुए भी इसके लिए यहां हूं। सोच लो… इसका क्या मतलब है।"
डॉक्टर अनन्या की आवाज़ में लहज़ा ठोस था।
आदर्श की आँखें सिकुड़ गईं।
"अब समझ आया… इस लड़के ने इतनी कम उम्र में न्यूरो कोर क्यों जेनरेट किया। टैलेंट है इसमें, मानता हूँ। लेकिन तुमने मेरे बेटे को घायल किया, हॉस्पिटल तक पहुंचा दिया… इसका अंजाम तुम सोच भी नहीं सकते।"
आदर्श पीछे हटता है। उसके बॉडीगार्ड्स गन निकालते हैं, लोड करते हैं, और...
गनें अब शौर्य, डॉक्टर अनन्या, डॉक्टर अनिकेत और प्रिंसिपल रंजीत की ओर तनी हुई हैं। कुछ गनें छात्रों की भी ओर।
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"मुझे यकीन नहीं हो रहा... इस आदर्श अग्रवाल ने सारी हदें पार कर दी हैं..."
प्रिंसिपल रंजीत मन ही मन बड़बड़ाए, उनकी आँखों में गुस्से और हैरानी की चिंगारियाँ चमक रही थीं।
उधर, आदर्श अग्रवाल अपने भारी-भरकम बॉडीगार्ड्स के बीच जाकर खड़ा हो गया।
डॉ. अनन्या और डॉ. अनिकेत, दोनों ही तजुर्बेकार डॉक्टर थे, लेकिन प्रोफेशनल बीस्ट टेमर नहीं। उन्होंने अपनी ज़िंदगी इंसानी शरीर को समझने और बचाने में लगा दी थी, बीस्ट्स की ट्रेनिंग में नहीं। उनके पास जो कुछ बीस्ट्स थे, वे लैब में बनाए गए हाइब्रिड क्रिएशन्स थे — अनोखे ज़रूर, लेकिन जंग के मैदान में कमजोर।
प्रिंसिपल रंजीत जरूर बीस्ट टेमर थे, लेकिन लोअर रैंक के। उनके पास मौजूद बीस्ट्स इतने दुर्बल थे कि उन्हें सिर्फ जूनियर सेक्शन की जिम्मेदारी दी गई थी।
"तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो, आदर्श अग्रवाल..."