जय माता दी
क्योंकि अभिजीत के लिए ये शादी ही नहीं थी । उसे तो सिर्फ अपनी बच्ची के लिए नौकरानी मिल रही थी । बिल्कुल वैसी नौकरानी जिसकी जिंदगी का हर मिनिट उसकी बेटी के हिसाब से चलेगा
" बहुत वक्त से जानना चाहते हैं नंदिनी । पर बस हिम्मत ही नहीं कर पाते थे । ले... लेकिन हम आज जानना चाहते हैं । आप उस है...हैदर को कैसे जानती है । काकी उसे शैतानी भगवान की तरह पूजती हैं । आप नहीं जानती वो है... हैदर बहुत खतरनाक हैं.... " वहीं मीनाक्षी कुछ सोचती हुई एक सांस छोड़ती हुई बोलती हुई हैदर का नाम डर से लड़खड़ाती जबान से बोलती हुई रुकती की
" चौदह साल के थे । जब हमारे मां बाप ने खुद हमारी शादी उस हैदर से कर दी थी । उन्होंने खुद अपनी बेटी को उस शैतान को सौंप दिया । सब जानते हुए भी कि अगर एक बार उनकी बेटी हैदर के घर चली गई । तो वो उसके साथ... " वहीं मीनाक्षी के बोलते रुकते ही नंदिनी बीते एक दर्द में खोई बोलती हुई आगे बोलने से पहले ही नंदिनी की डर से आवाज उसके गले में ही रुक जाती
जहां आगे की सोचकर ही नंदिनी की आंखों में आंसू भरते हुए उसका बदन कांप उठता । जहां नंदिनी की कांपती हथेली में भींचे अपने सूट को देखकर मीनाक्षी नम आंखों से नंदिनी की पीट पर हाथ फेरती हुई शांत करने लगती
एक पल मीनाक्षी हैरान हो गई थी ये सुनकर की हैदर पति है नंदिनी का । इन दो सालों में नंदिनी के साथ जो कुछ दर्दनाक हुआ वो जानती थी । उसने सब कुछ देखा था । पर कभी कभी वो खुद सोचती थी कि इतनी लड़की वहां हैं इतना बुरा कभी किसी के साथ नहीं होता था । जितना एक मासूम सी नंदिनी के साथ होता था हर दिन
बुखार तक में नंदिनी के जिस्म को नोचा जाता । नंदिनी चाहे कितनी भी बत्तर हालात में होती लेकिन कभी भी उस पर रहम नहीं होता था । जहां मीनाक्षी कभी नहीं समझ पाती थी कि क्यों हो रहा नंदिनी के साथ इतनी बुरा । पर आज मीनाक्षी जान गई । वो जान गई कि नंदिनी के साथ इतना दर्दनाक करने वाला सिर्फ हैदर हैं
जहां हैदर के खियाल से ही मीनाक्षी का दिल सहम जाता । हैदर एक शैतानी भगवान है उनके चॉल का । जहां कर कोई उसे पूजता हैं । जहां वो मालिक हैं उन सब का । वो मालिक जिसके इशारों पर हर कोई नाचता हैं काकी तक भी
तभी दरवाजा नॉक होता हुआ चार लड़कियां कमरे के अंदर आती । साथ ही उन लड़कियों से तीन कदम पीछे एक बॉडीगार्ड
" ये आपको तैयार करने के लिए आई हैं ..... आप इतने बहार इंतेज़ार करे " वो बॉडीगार्ड दरवाजे पर खड़ा बोलते हुए मीनाक्षी को देखकर बोलता
जहां बॉडीगार्ड की बात सुनकर नंदिनी अपनी जगह से खड़ी हो जाती । तो वहीं मीनाक्षी भी बिस्तर से खड़ी होती हुई नंदिनी को देखकर पीछे पलटती हुई आगे बढ़ जाती
पर दरवाजे पर आते ही मीनाक्षी अपने कदमों को रोकती हुई पीछे मुड़कर नंदिनी को देखने लगती । जहां अब तक नंदिनी को एक कांच के बड़े से आईने के सामने कुर्सी पर बिठा दिया गया
जहां मीनाक्षी के कदम रुक थे नंदिनी से ये बोलने के लिए कि हो चुकी है उसकी शादी । नहीं हैं इस दूसरी शादी का कोई भी मोल । पर नहीं बोल पाती मीनाक्षी कुछ भी । क्योंकि सिर्फ एक खयाल मीनाक्षी को खामोश कर देता
ख्याल की अगर नंदिनी फिर वापस चॉल में आ गई । तो हैदर की दरिंदगी बढ़ती ही जाएगी । पर यहां रहकर क्या पता नंदिनी मरने का सुख ही ले ले ? क्या पता खुद को खत्म कर नंदिनी सबसे आजाद हो सके ? क्योंकि वहां उस चॉल में कभी भी नंदिनी को मौत नसीब नहीं होगी
रात हो गई
अभिजीत इस वक्त सफेद रंग की शेरवानी पहने नन्ही सी परी को गोद में लिए गार्डन में घूम रहा था । तो वहीं रेखा जी अभिजीत के पास खड़ी बेहद खुश नजर आ रही थी और आए कैसे नहीं ना जाने कितने वक्त से वो अभिजीत की शादी के लिए चिंता में थी
" नंदिनी आ गई " तभी दरवाजे से मंडप की ओर आती हुई नंदिनी को देखकर रेखा जी मुस्कुराकर बोलती
जहां नंदिनी सुनकर भी अभिजीत एक बार भी अपनी नज़रे नंदिनी पर नहीं करता । अभिजीत की नज़रे तो इस वक्त सिर्फ अपनी गोद में थामी परी पर होती
" सच में.... गुड़िया जैसी लग रही हैं " जहां लाल जोड़े में नंदिनी को दुल्हन की तरह सजी देखकर रेखा जी मुस्कुराकर बोलती
पर अब भी अभिजीत अपनी नज़रे परी से नहीं हटाता । वहीं इतना भारी लहंगा और इतनी सारी ज्वैलरी पहनकर नंदिनी को अपने शरीर पर आए हर गहरे जख्म में बहुत दर्द सा होने लग रहा था । क्योंकि ये कपड़े और ज्वैलरी पल पल उसके बदन के जख्मों को कुरेदने लग रहे थे । जिस दर्द से नंदिनी का पूरा चेहरा तकलीफ से भर चुका था
" रोना मत बच्चा । पापा बस अभी काम खत्म करके आए " वहीं अभिजीत प्यार से परी का माथा चूमकर बोलते हुए परी को रेखा जी गोद में दे देता
जहां शादी को एक काम सुनकर रेखा जी के चेहरे पर नाराजगी आ जाती । पर वो कुछ ना बोलती हुई परी को अपनी गोद में ले लेती और वहीं अभिजीत हल्का सा टेढ़ा होता हुआ अपने कदमों को मंडप की तरफ बढ़ा देता
" आह.... " तभी नंदिनी की डरी हुई सी तेज चीख अभिजीत के कानो में पड़ती
जहां इस आवाज को सुनते ही अभिजीत के कदम मंडप की तरफ बढ़ते हुए रुक जाते और अभिजीत उसी पल हल्का सा चेहरा टेढ़ा कर अपने से सात – आठ कदम दूर खड़ी नंदिनी को देखने लगता
जहां नंदिनी घबराई सी तेज सांसे लेती हुई हल्का सा पीछे मुड़ती हुई नजरों को पीछे रखे थी । जहां चलते चलते अचानक नंदिनी के पेरो में तार आ जाता और तारो में लहंगे के उलझते ही नंदिनी दो कदम आगे लड़खड़ाती हुई गिरने को होती कि उसी पल नंदिनी खुद को संभाल लेती
पर उन तारो में उलझने से वो तार खींच जाते और उन तारो के खींचते ही नंदिनी के कुछ दूर पीछे लगे बड़े बड़े फूलों जैसे बल्ब धम से नीचे गिरते हुए फूट जाते
जहां दो बड़े फूलों जैसे बल्ब नीचे गिरते ही हल्के से टूट जाते और उन्हें टूटते देखकर नंदिनी बहुत बुरी तरह घबरा सी जाती । जहां इस घबराहट के साथ नंदिनी चेहरा सीधा कर घबराई सी कुछ समझ भी पाती कि
तभी अपनी ओर आते हुए अभिजीत को देखकर नंदिनी डर से बहुत बुरी तरह रोने लगती । जहां अभिजीत के बढ़ते कदमों को अपनी ओर आते देख नंदिनी की सिसकियां हर पल ओर बढ़ती ही जाती
" हम.... हमने कुछ नहीं किया । वो.... वो गलती से .... हमें मा...फ कर दो । ह....म फिर से गल....लती न....हीं करेंगे " वहीं अभिजीत को अपने से दो कदम दूर देखते ही नंदिनी रोती हुई उसी पल अपने घुटनों पर बैठती हुई डरी हुई सी सिसकती हुई अपनी हथेली को अभिजीत की तरफ बढ़ा देती
जहां दूर खड़ी मीनाक्षी नंदिनी को इस तरह रोते हुए अपनी हथेली अभिजीत की तरफ करे देखकर उसकी आँखें भी नम हो जाती । क्योंकि ऐसे ही तो होता था इस मासूम के साथ उस चॉल में छोटी सी गलती पर ही बहुत बुरी तरह मारा जाता नंदिनी को । उसे यूं ही घुटनों पर बिठाकर उसकी मुलायम सी नाजुक हथेली पर गर्म गर्म सरिया से मारा जाता
(( शादी कहे या सिर्फ परी के लिए जुड़ा अभिजीत और नंदिनी का ये बंधन ..... जो भी कहे अब ये बंधन खोखला होगा या फिर उसमें सिर्फ हैदर का खेल होगा । ये वक्त बताएगा .... एक शब्द का करेंट करते जाइए ..... ))