श्रुति की नज़रे का रिद्धांश पर टिकना

जय श्री कृष्णा जी

जहां अपने ससुर के गुस्से को देखकर देविका जी के जख्मी दिल को ठंडक सी मिलती । क्योंकि वो जानती हैं कि अब जरूर उनके ससुर कुछ ऐसा करेंगे कि रिद्धांश पछता जायेगा कि क्यों आया वो उनके घर ?

वहीं श्रुति की नज़रे टुकुर टुकुर अपने दादा के चेहरे पर टिकती हुई वो समझने लगती दादा जी के गुस्से के चेहरे को देखकर की आखिर क्या करेंगे उसके दादा ?

शाम का वक्त इस वक्त डाइनिंग टेबल पर हेड कुर्सी पर दादा जी बैठे थे उनके सीधे हाथ पर देविका जी और उनके पास श्रुति बैठी थी । तो वहीं देविका जी के सामने धनुष जी और श्रुति के सामने रिद्धांश बैठा था

" कल सुबह मुझे बहार मीटिंग के लिए जाना हैं । एक हफ्ते में आ जाऊंगा । तब मैं तुम्हे साथ ऑफिस ले जाऊंगा । तब तक तुम घर में रहो थोड़ा आराम करो... और मैं आशा करूंगा कि सब शांत रहेंगे तब तक " वहीं पास बैठे रिद्धांश से बोलते हुए धनुष जी अपनी सख्त निगाहे दादा जी और अपनी पत्नी पर करते हुए बोलते

जहां धनुष जी की इस बात को सुनकर दादा जी और देविका दोनों नजर अंदाज़ कर देते । पर श्रुति प्लेट में रखे चावल को चम्मच से खाती हुई अपनी नज़रों को सामने रिद्धांश के सीने पर टिकाए थी

जहां रिद्धांश ने इस वक्त लाल रंग की टी–शर्ट पहनी और वो टी–शर्ट इस तरह कसी हुई थी रिद्धांश के सीने से कि रिद्धांश का सीना कितना ज्यादा कठोर है ये सोचकर ही अपने भारी होते सीने को महसूस कर श्रुति की सांसे हल्की सी तेज हो रही थी

और तभी रिद्धांश अपनी नज़रे खाने से हटाते हुए सामने करता । जहां अपनी नज़रों को रिद्धांश की नजरों से मिलते ही श्रुति हड़बड़ा जाती । जहां इस तरह हड़बड़ाहट में ही श्रुति को खाते खाते अचानक धंसका लग जाता

जहां श्रुति को धंसका लगते देखकर देविका जी जल्दी से श्रुति को पानी पिलाने लगती

" आराम से.... आराम से .... ये खाना तुम्हे छोड़कर नहीं जा रहा " तभी रोहन श्रुति की पीट को दबाव से सहलाते हुए बोलता

जहां रोहन की आवाज पर रिद्धांश की नज़रे ना समझी में उसे देखने लगती । क्योंकि वो जब से घर आया उसने रोहन की बस उस वक्त एक झलक देखी थी । पर फिर रोहन कभी नहीं दिखा पूरे दिन

" ये हमारे घर के पास के घर में रहता हैं । मेरे जिगरी दोस्त का बेटा . .. " वहीं रिद्धांश को रोहन से मिलाते हुए धनुष जी बोलते हुए रुकते की

" और श्रुति का बचपन का बहुत गहरा वाला दोस्त " वहीं बोलते हुए रोहन श्रुति की झूठी चम्मच से उसके प्लेट के झूठे चावल को खाने लगता

जहां इस तरह अपने सामने श्रुति का झूठा रोहन को खाते देखकर रिद्धांश की गुस्से से एक मुट्ठी भींचती हुई उसकी सख्त नज़रे रोहन के चेहरे पर चली जाती । जहां ये सोचकर कि श्रुति की जीभ से लीक हुई चम्मच रोहन ने अपने जीभ से लीक करी । ये सोचकर ही रिद्धांश के सीने में आग सी लगने लग रही थी

" नहीं .... ये गलत हैं । मैं क्यों गुस्सा हो रहा हूं । वो मेरी सौतेली बहन हैं । मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए " वहीं अपने गुस्से पर मन में सवाल करते हुए रिद्धांश कुछ गहरी सांस लेते हुए खुद को शांत करने लगता

रात का वक्त रिद्धांश इस वक्त अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा आंखों को ऊपर छत की तरफ करे था । इस वक्त रिद्धांश के चेहरे पर कोई भाव नहीं था और ना ही मन में कोई एहसास

और हो क्यों जहां अभी तक वो अनाथ आश्रम में रहता था कि अचानक उसके बाप को उसकी याद आई और उसे अपने घर बुला लिया । पर शायद जैसा उसने सोचा यहीं हुआ क्योंकि किसी को भी उसका यहां आना पसंद नहीं आया

" ए उठ ... जा ऊपर छत पर और ये चादर , तकिए बेबी जी को देकर आ " तभी कुछ गुस्से से भरी आवाज रिद्धांश को सुनाई देती

जहां इस आवाज को सुनकर रिद्धांश बिस्तर पर बैठकर अपनी नज़रे दरवाजे पर कर लेता । जहां एक नौकर काफी गुस्से में बहुत घिन भरी नजरों से उसे ही देख रहा था

" यहां से दाएं सीढ़ियों से ऊपर चला जा और बेबी जी को देकर आज ये सब ... वैसे ही काम बहुत कम थे । जो एक और हराम का खाने को बुला लिया " वहीं वो नौकर बहुत बेरुखी से रिद्धांश से बोलते हुए तकिए , चादर को कमरे के अंदर सोफे पर रखकर गुस्से से बड़बड़ाता कमरे कमरे से चला जाता

जहां नौकर का हर शब्द रिद्धांश ने सुना । पर वो कोई जवाब न देते हुए बस खामोश ही रहता । तभी उसकी नज़रे सोफे पर रखे तकिए , चादर पर जाती । जहां वो तकिए , चादर देखकर रिद्धांश को याद आता की छत पर बेबी जी हैं पर सवाल उसके मन में कौन बेबी जी .....

(( क्या रोक पाएगा रिद्धांश अपने अंदर के बढ़ते एहसास को श्रुति के लिए ? क्या होगा इस रात जब छत पर अकेले रिद्धांश और श्रुति होंगे ? ))

समीक्षा और रेटिंग जरूर कीजिए मुझे आप सब ....