जय श्री कृष्णा जी
" यहां से दाएं सीढ़ियों से ऊपर चला जा और बेबी जी को देकर आजा ये सब ... वैसे ही काम बहुत कम थे । जो एक ओर हराम का खाने को बुला लिया " वहीं वो नौकर बहुत बेरुखी से रिद्धांश से बोलते हुए तकिए , चादर को कमरे के अंदर सोफे पर रखकर गुस्से से बड़बड़ाते हुए कमरे से चला जाता
जहां नौकर का हर शब्द रिद्धांश ने सुना । पर वो कोई जवाब न देते हुए बस खामोश ही रहता । तभी उसकी नज़रे सोफे पर रखे तकिए , चादर पर जाती । जहां वो तकिए , चादर देखकर रिद्धांश को याद आता की छत पर बेबी जी हैं
जहां बेबी जी सोचकर रिद्धांश के मन में ख्याल आता की क्या कोई बच्चा भी हैं इस घर में ? पर दूसरा ख्याल ये आता कि अगर बच्चा हैं तो कहां से आया । क्योंकि जितना वो जानता श्रुति के अलावा यहां कोई नहीं
पर फिर अपने ख्यालों को झटकते हुए रिद्धांश बिस्तर से उठते हुए सोफे पर रखे चादर और तकिए को लिए कमरे से निकलते हुए दाएं मुड़कर सीढ़ियों से ऊपर चढ़ जाता
वहीं छत पर आते ही रिद्धांश की नज़रे पूरी छत पर किसी को ढूंढने लगती । लेकिन छत खाली देख कुछ सोचते हुए रिद्धांश दूसरी तरफ अपने कदम मोड़ लेता और दूसरी तरफ मुड़कर पांच कदम आगे बढ़ते ही रिद्धांश के आगे बढ़ते कदम वहीं रुक जाते
रिद्धांश की नज़रे इस वक्त अपने से पांच कदम दूर एक बड़े से सोफे पर करवट लिए सिकुड़कर सो रही श्रुति पर चली जाती । जहां शाम में मौसम बहुत ठंडा हो रहा था । ठंडी हवाएं चल रही थी जिससे श्रुति को नींद में काफी ठंड सी लग रही थी
जहां लगातार हवा चलने से श्रुति ने जो क्रॉप टॉप पहना था । वो भी हवा में लहराते हुए ऊपर उठता हुआ श्रुति के सीने तक रुकता जा रहा था
जहां छत पर सिर्फ श्रुति को देखकर रिद्धांश समझ जाता कि नौकर जो बेबी जी बोला । वो श्रुति को ही बोला था । जहां बेबी जी नाम याद कर श्रुति को देखते हुए रिद्धांश के होठों पर हल्की सी मुस्कुराहट आ जाती
वहीं रिद्धांश आगे बढ़ते हुए हाथ में पकड़ी चादर को श्रुति के ऊपर डालते हुए उस चादर को श्रुति के पेरो से गले तक रख देता । वहीं हाथ में पकड़े तकिया को देखते हुए रिद्धांश श्रुति के चेहरे के पास झुकते हुए श्रुति के सिर को पकड़कर हल्का सा श्रुति का सिर ऊपर उठाते हुए उस तकिए को जैसे ही श्रुति के सिर के नीचे से लगाकर हटता की
" आह..... " तभी नींद भरी आंखों को खोलती हुई हल्के से होठों को खोल अपनी आधी जीभ बहार करती हुई श्रुति दर्द से कराह जाती
" क्या हुआ आपको ? " वहीं श्रुति को अचानक कराहते देखकर रिद्धांश कुछ बेचैन होता हुआ श्रुति से पूछता
" मेरी जीभ.... श..... दर्द हो रही " वहीं श्रुति सीधी लेटती हुई अपनी जीभ उंगलियों से छूती हुई दर्द से कराहती हुई बोलती
जहां रिद्धांश के श्रुति का सिर उठाने से श्रुति नींद में अपनी जीभ दांतों से कसकर भींच देती । जिससे श्रुति दर्द से कराह जाती । पर रिद्धांश उसे तो समझ ही नहीं आता श्रुति कहना क्या चाहती और क्यों वो अपनी जीब छू रही थी ?
" दिखाए .... क्या हुआ ? " वहीं कुछ घबराया सा बोलते हुए रिद्धांश श्रुति के चेहरे के ओर पास झुकते हुए अपनी एक उंगली श्रुति की जीभ पर फिराते हुए हल्के हल्के से श्रुति की जीभ पर फंक मारने लगता
जहां रिद्धांश की इस हरकत से श्रुति अपनी नींद भरी आँखें बंद कर अपना मुंह ओर खोल लेती । जहां श्रुति के यूं मुंह खोलते श्रुति के दांतों में लगे सलाइवे को देखकर रिद्धांश की सांसों में गर्महान ओर बढ़ सी जाती
पर लगातार मुंह खोलने से श्रुति को अपने गालों में दर्द होने लगता और श्रुति जैसे ही अपना मुंह बंद करने को होती की तभी रिद्धांश अपनी जीभ श्रुति के होठों के बीच डालते हुए श्रुति के दांतों पर लगे सलाइवे को अपनी जीभ से लीक करने लगता
जहां इस नरम स्लाइवा को जीभ पर महसूस कर रिद्धांश की मदहोशी से आंखे बंद हो जाती और वो बस श्रुति के मुंह के अंदर के हर कोने को अपनी जीभ से लीक करते जाता । तो वहीं श्रुति नींद में सोई रिद्धांश के निचले होठ को लॉली पॉप सोचती हुई जैसे ही रिद्धांश के होठ पर अपनी पतली जी जीभ से लीक करती की
(( आ चुके रिशंश और श्रुति नजदीक पर क्या होगा इनकी इन नजदीकियों का असर उन पर और उनके परिवार पर ? ))
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