रिद्धांश का खुद को श्रुति के करीब जाने से रोकना

जय श्री कृष्णा जी

पर लगातार मुंह खोलने से श्रुति को अपने गालों में दर्द होने लगता और श्रुति जैसे ही अपना मुंह बंद करने को होती की तभी रिद्धांश अपनी जीभ श्रुति के होठों के बीच डालते हुए श्रुति के दांतों पर लगे सलाइवे को अपनी जीभ से लीक करने लगता

जहां इस नरम स्लाइवा को जीभ पर महसूस कर रिद्धांश की मदहोशी से आंखे बंद हो जाती और वो बस श्रुति के मुंह के अंदर के हर कोने में अपनी जीभ से लीक करते जाता । तो वहीं श्रुति नींद में सोई रिद्धांश के निचले होठ को लॉली पॉप सोचती हुई जैसे ही रिद्धांश के होठ पर अपनी पतली जी जीभ से लीक करती की

तभी घबराकर रिद्धांश सीधा खड़ा होते हुए घबराकर दो कदम पीछे हो जाता । इस पल रिद्धांश की सांसे बेहद तेज हो चुकी थी । पर अब उसे गुस्सा आने लगता कि वो अभी क्या कर रहा था ? और बस इसी गुस्से से भरा रिद्धांश एक निगाह भी श्रुति पर ना डाले उसी पल छत से नीचे चला जाता

वहीं श्रुति मायूसी से नाक सिकोड़ती हुई नींद में करवट लिए लेट जाती । जहां श्रुति के चेहरे की मायूसी उसे नींद में सपने में ये दिखा रही थी कि किसी ने उसके मुंह में आती लॉली पॉप छीन ली

सुबह का वक्त श्रुति स्कूल के लिए तैयार होती हुई बैग कंधे पर टांगते हुए सीढ़ियों से नीचे उतरते हुई हॉल में आती हुई किसी नौकर को ढूंढती हुई नज़रे इधर उधर घुमाने लगती

" काका.... ड्राइवर को बोलो गाड़ी तैयार करे । हमें स्कूल जाना हैं " वहीं श्रुति एक 50 उम्र के बूढ़े काका से बोलती

" जी ..... बेबी जी " वहीं काका हां में सिर हिलाकर इतना बोलते हुए जैसे ही घर से बहार जाने को होते की

" जाकर उसे बोलो .... वो ले जाएगा श्रुति को स्कूल और कह देना उसे... जब तक श्रुति स्कूल रहेगी । तब तक वो भी वहीं रहकर... मेरी बेटी का स्कूल के बहार इंतेज़ार करेगा " तभी सीढ़ियों से नीचे हॉल में आती देविका जी सर्द आवाज में काका को बहार जाने से टोकती हुई बोलती

जहां देविका जी की बात सुनकर काका सब समझते हुए घर से बहार चले जाते । पर श्रुति उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि उसकी मां ने किसकी कहीं और क्यों कोई उसका इंतेज़ार करेगा ?

पर श्रुति ज्यादा ना सोचती हुई घर से बहार निकलती हुई एक गाड़ी में जाती हुई पीछे बैठ जाती । जहां गाड़ी में पीछे बैठते ही श्रुति की नज़रे खुली खिड़की से बहार जाती हुई गार्डन में अंदर की तरफ खड़े रिद्धांश पर चली जाती

जहां रिद्धांश इस वक्त नीचे एक नीले रंग की लोवर पहने सामने खड़े काका की बात को बेहद खामोशी से सुनकर हां में सिर हिलाने लग रहा था । तो वहीं श्रुति की नज़रे रिद्धांश के सीने से उसके पेट पर टिक चुकी थी । जहां पसीने में घुली मिट्टी उसके सीने और पेट पर लगी थी

जहां रिद्धांश के दोनों हाथ और पैर मिट्टी में गंदे हुए पड़े थे । जो बता रहे थे कि धनुष जी के जाते ही रिद्धांश को नौकरों की तरह गार्डन की सफाई में लगवा दिया और रिद्धांश भी खामोशी से सब काम कर रहा था

तो वहीं काका की बात खत्म होते रिद्धांश नीचे पड़ी अपनी टी शर्ट में लगी मिट्टी को झटकते हुए उसे अपने मिट्टी और पसीने से सने बदन पर ही पहनता हुआ गाड़ी की तरफ बढ़ जाता

वहीं गाड़ी के पास आते हुए रिद्धांश एक बार भी पीछे बैठी श्रुति को ना देखते हुए आगे गाड़ी में बैठते हुए गाड़ी को घर से बहार निकाल देता और रिद्धांश को देखकर अब श्रुति को समझ आ जाती कि उसकी मां किसकी तब बोल रही थी

वहीं दो मिनट बाद ही रिद्धांश को बहुत प्यास सी लगने लगती जिससे वो गला खंकारने लगता । इस वक्त रिद्धांश को बहुत प्यास लगी थी । उसने काका से पानी मांगा था । पर काका के ताने सुनकर रिद्धांश कुछ ना बोलते हुए गाड़ी के पास आ जाता

लेकिन अब रिद्धांश को अपना गला बहुत ज्यादा सूखा हुआ महसूस सा होने लगता । जिससे लगातार उसे अपने गले में खराश सी महसूस होने लगती । जहां रिद्धांश के इस खांकारने की आवाज को सुनती हुई श्रुति की नज़रे ऊपर होती हुई रिव्यू मिरर से रिद्धांश की आंखों पर चली जाती

और तभी रिद्धांश अपनी नज़रे रिव्यू मिरर पर करता । जहां अपनी आंखों के रिद्धांश की आंखों से मिलते ही श्रुति घबराकर अपनी आँखें उसी पल खिड़की से बहार कर लेती

वहीं दस मिनिट बाद रिद्धांश स्कूल के सामने गाड़ी रोकता । जहां सामने स्कूल देखकर श्रुति अपना बैग अपने दोनों हाथों में पकड़ते हुई दरवाजा खोलती हुए स्कूल की तरफ बढ़ जाती

तो वहीं रिद्धांश श्रुति को पूरी तरह स्कूल में अच्छे से जाते देखकर । कुछ सोचते हुए आस पास निगाह घुमाते हुए पानी ढूंढने लगता । पर दूर दूर कहीं ना पानी देखकर रिद्धांश समझ जाता कि अब 8 घंटे श्रुति को स्कूल की छूटी होते उसे घर जाकर ही पानी पीने को मिलेगा

जहां रिद्धांश ये सोचकर पानी मिलने की उम्मीद छोड़ते हुए जैसे ही गाड़ी का दरवाजा खोलता की उसे पीछे श्रुति जहां बैठी वहां सीट पर कुछ समान मिलता । जहां श्रुति का ज़रूरी समान होगा ये सोचकर रिद्धांश गाड़ी से बहार आता हुआ पीछे गाड़ी का दरवाजा खोल जैसे ही उस सामान को अपने एक हाथ में पकड़ता की

रिद्धांश के होठों पर बहुत हल्की सी प्यारी सी मुस्कुराहट आ जाती । क्योंकि वो पानी की बोतल होती और श्रुति का यूं उसके लिए पानी छोड़कर जाना ये देखकर रिद्धांश के दिल में अजीब सी हलचल पैदा कर देता । पर इस हलचल को वहीं रोकते हुए रिद्धांश बोतल से जैसे ही पानी पीने को होता कि कुछ सोचकर रिद्धांश बोतल पर होठों को लगाते हुए पानी पी लेता

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