रिद्धांश की जलती नज़रे श्रुति पर

जय श्री कृष्णा जी

जहां रिद्धांश ये सोचकर पानी मिलने की उम्मीद छोड़ते हुए जैसे ही गाड़ी का दरवाजा खोलता की उसे पीछे श्रुति जहां बैठी वहां सीट पर कुछ समान मिलता । जहां श्रुति का ज़रूरी समान होगा ये सोचकर रिद्धांश गाड़ी से बहार आता हुआ पीछे गाड़ी का दरवाजा खोल जैसे ही उस सामान को अपने एक हाथ में पकड़ता की

रिद्धांश के होठों पर बहुत हल्की सी प्यारी सी मुस्कुराहट आ जाती । क्योंकि वो पानी की बोतल होती और श्रुति का यूं उसके लिए पानी छोड़कर जाना ये देखकर रिद्धांश के दिल में अजीब सी हलचल पैदा कर देता । पर इस हलचल को वहीं रोकते हुए रिद्धांश बोतल से जैसे ही पानी पीने को होता कि कुछ सोचकर रिद्धांश बोतल पर होठों को लगाते हुए पानी पी लेता ।

वहीं दूसरी तरफ

" आप बताएंगे हमें .... कि आप अब क्या करेंगे । हमारा दम घुट रहा उस घटिया लड़के को अपने घर में अपनी आंखों के सामने देखकर " देविका जी लाइब्रेरी कमरे में आती हुई कुर्सी पर बैठे दादा जी से बोलती

जहां अपनी बहु के गुस्से को देखकर दादा जी कुछ ना बोलते किसी को फोन पर मैसेज करने लगता

" कहीं ऐसा तो नहीं कि अब आपको भी मेरे पति की तरह पोते का मोह हो गया.... " वहीं देविका जी गुस्से से दादा जी से बोलती हुई आगे बोलती कि

" वो हमारा पोता नहीं हैं । उसे..... बंद कीजिए मेरा पोता बोलना । हमारी सिर्फ... एक पोती हैं और वो हैं श्रुति । उसके अलावा मेरा कोई भी नहीं हैं " तभी दादा जी बहुत गुस्से से देविका जी को घूरते हुए बोलते

जहां दादा जी इस गुस्से भरी बात को सुनकर देविका जी हल्का सा सहम जाती । पर दूसरे पल अब वो कुछ ना बोलती हुई खामोश खड़ी रहती

" फिक्र मत कीजिए जब तक धनुष एक हफ्ते की मीटिंग से आएगा । वो लड़का इस घर बहुत दूर चला जाएगा । पर.... पर अगर नहीं गया तो हम उसे इस दुनिया से ही बहुत दूर भेज देंगे । आप आज रात के लिए पार्टी का इंतजाम करे । याद रखे हर कोई आना चाहिए । अब उसे ये हर्षवर ओबेरॉय उसे उसकी औकात बताएगा " वहीं आंखों में रिद्धांश के लिए बेहद नफरत लिए दादा जी जबड़ा भींचते हुए अपनी बहु को ऑर्डर देते हुए बोलते

जहां दादा जी की बात पर देविका जी के दिल में तसली हो जाती । ये सोचकर कि सिर्फ एक हफ्ता उसे बस रिद्धांश को झेलने हैं बस । क्योंकि फिर उस लड़के की शक्ल तक उसे दुनिया में भी नहीं देखने को मिलेगी

शाम के वक्त घर में हॉल पूरा मेहमानों से भर चुका था । जहां बूढ़े से जवान हॉट लड़कों के साथ औरते और खूबसूरत लड़कियां भी होती । जहां दादा जी बड़े बड़े बिजनेस मैन से बात कर रहे

तो वहीं देविका जी हर आए मेहमान को देख रही थी । पर श्रुति घर के सबसे कोने हिस्से वाले आइसक्रीम के काउंटर के पास छोटे से स्टूल पर बैठी अपनी आइस क्रीम खाने में मस्त थी

" तू यहां क्या कर रही ? वहां चल देख तो क्या जानलेवा परियां आई हैं " वहीं बोलते हुए रोहन परी के कंधे पर हाथ रखते हुए हॉल में खड़ी खूबसूरत लड़कियों को ऊपर से नीचे तक देखता हुआ बोलता

" तो तू जा मैं नहीं जा रही " वहीं श्रुति होठ के कोने टेढ़े कर मुंह बनाती हुई बोलती हुई नज़रे नीचे आइस क्रीम पर रख आइस क्रीम खाती रहती

" अगर तू नहीं जाएगी .... तो मैं ही कैसे जा सकता हूं ? " वहीं श्रुति के चेहरे पर प्यार से अपनी नज़रों को रखे रोहन बोलता

जहां श्रुति का ध्यान सिर्फ आइस क्रीम खाने में था । उसे पता ही नहीं था कि आंखों में एक अलग सी कशिश लिए रोहन बड़े प्यार से उसे देख रहा । पर साथ ही किसी की घूरती हुई नज़रे भी श्रुति के कंधे पर थी । जहां रोहन ने अपना हाथ रखा हुआ था

" ये क्या सौतेले भाई .... को तूने तो नौकर ही बना दिया " तभी रोहन हल्की सी हंसती हुई आवाज आती

जहां इस आवाज को सुनती हुई श्रुति ना समझती हुई जैसे ही नज़रे ऊपर उठाती । तो उसकी नज़रे अपने से कुछ दूर हाथों में ड्रिंक के ग्लास से भरी ट्रे लिए वेटर जैसी सफेद शर्ट और नीचे काली पेंट पहने रिद्धांश पर जाती

जहां बेशक रिद्धांश ने नौकर जैसे चमकीले कपड़े पहने थे । पर रिद्धांश का सख्त , कठोर शरीर अलग ही चारम दे रहा था उसे और तभी श्रुति की नज़रे रिद्धांश की आंखों पर जाती । जहां रिद्धांश की भयंकर जलती निगाहों को खुद पर देखकर श्रुति घबरा सी जाती और उसी घबराहट से वो उस पल कुर्सी से उठती हुई दूसरी तरफ चली जाती

इस पल श्रुति का दिल जोरो से धड़क रहा था । क्योंकि पहली बार है जब किसी की ऐसी डरावनी आँखें उसने खुद पर देखी । एक पल तो उसे ऐसा लगा मानो रिद्धांश कहीं अपनी नज़रों से उसे जला ना दे

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