जय श्री कृष्णा जी
जहां बेशक रिद्धांश ने नौकर जैसे चमकीले कपड़े पहने थे । पर रिद्धांश का सख्त , कठोर शरीर अलग ही चारम दे रहा था उसे और तभी श्रुति की नज़रे रिद्धांश की आंखों पर जाती । जहां रिद्धांश की भयंकर जलती निगाहों को खुद पर देखकर श्रुति घबरा सी जाती और उसी घबराहट से वो उस पल कुर्सी से उठती हुई दूसरी तरफ चली जाती
इस पल श्रुति का दिल जोरो से धड़क रहा था । क्योंकि पहली बार है जब किसी की ऐसी डरावनी आँखें उसने खुद पर देखी । एक पल तो उसे ऐसा लगा मानो रिद्धांश कहीं अपनी नज़रों से उसे जला ना दे
" सब तैयार हैं । ठीक हैं भेज रहा हूं मैं इसे । पर जैसा कहां वैसा ही होना चाहिए सब । उसके अंदर खुद का इतना डर भर दे कि.... वो अभी उल्टे पैर यहां ये भाग जाए " वहीं दादा जी किसी से फोन पर बोलते हुए हॉल में रिद्धांश को ढूंढने लगते
और तभी दादा जी की नज़रे हाथ में ड्रिंक का ग्लास से भरे ट्रे लिए खड़े रिद्धांश पर जाती
" ओ इधर आ.... वहां क्या खड़ा चौकीदारी कर रहा ? " तभी दादा जी काफी गुस्से से रिद्धांश को अपने पास बुलाते
जहां दादा जी की आवाज सुनते हुए रिद्धांश ट्रे लिए ही दादा जी के पास बढ़ जाता
" अब बहार जा और मेरे कुछ मेहमान बहार हैं । वो जो बोले वो कर और जब तक अंदर मत आ जाइयो । जब तक पार्टी खत्म ना हो " वहीं सख्ती से रिद्धांश को ऑर्डर देते हुए दादा जी बोलते
जहां दादा जी के इस ऑर्डर को सुनते हुए रिद्धांश कोई जवाब ना देते हुए पीछे पलटते हुए ट्रे को एक काउंटर पर रख घर से बहार जाने लगता
" कुछ लोग सोचते हैं कि बड़े घर में आकर राजा की तरह रहेंगे । पर भूल जाते अपनी बिखारी जैसी औकात को " वहीं दादा जी गुस्से से जाते हुए रिद्धांश को देखकर बोलते
जहां दादा जी की इस बात को जाता हुआ रिद्धांश सुन लेता । पर वो कुछ ना बोलता हुआ घर से बहार चला जाता । जहां घर के बहार आते हुए वो गार्डन में दादा जी के मेहमान ढूंढने लगता और थोड़ा आगे जाते हुए चार कुर्सी को लगाए उस पर बैठे आदमी पर रिद्धांश की नजर जाती
" जी .... आपको कुछ चाहिए " वहीं बोलता हुआ रिद्धांश उन चारों के पास खड़े हो जाता
" ये ले और नाचकर दिखा दे । बहुत बोर हो रहे हैं हम इस पार्टी में " वहीं एक आदमी बिना रिद्धांश को देखे उसके मुंह पर लड़कियों का बहुत छोटा सा फ्रीक फेंकते हुए बोलता
जहां अपने मुंह पर आते कपड़े को हाथ में लेते हुए रिद्धांश कुछ ना बोलते हुए उस फ्रॉक को साइड में नीचे रख देता
" सोच क्या माल लगेगा ? जब ये ऐसे कपड़े पहनेगा " तभी दूसरा आदमी हंसते हुए बोलता
जहां अपने लिए ऐसे शब्दों को सुनकर रिद्धांश की आँखें बंद हो जाती । पर इस पल तक भी रिद्धांश के चेहरे पर हल्का सा गुस्सा नहीं आया था । वो शांत सा वहीं खड़ा दादा जी का आज्ञा का पालन कर रहा था
" हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी । मेरे घर में इससे ऐसे बात करने की " तभी गुस्से से हाथों में भरी मिट्टी को कुर्सी पर बैठे एक आदमी पर डालती हुई श्रुति गुस्से से बोलती हुई रिद्धांश के आगे खड़ी हो जाती
जहां अपने ऊपर मिट्टी डलते ही वो आदमी खड़े होते हुए अपनी शर्ट झाड़ने लगता । तो वहीं रिद्धांश तो अचानक श्रुति को यहां देखकर बहुत हैरान हो जाता
" तूने मुझ पर मिट्टी कैसे डाली.... " तभी गुस्से से वो आदमी दांत पिस्ते हुए श्रुति से कुछ बोलता की
" भाई ... वो बच्ची हैं । मैं अभी आपके कपड़े साफ कर देता हूं .. " तभी रिद्धांश थोड़ा नरमी से बोलता हुआ श्रुति का हाथ पकड़े उसे अपने पीछे कर आगे भी कुछ बोलता कि
" ऐसे डाली .... " वहीं श्रुति तभी फिर से रिद्धांश के आगे आती हुई दूसरी मुट्ठी में भींची मिट्टी को उस आदमी पर डाल देती
" तेरी तो.. " तभी गुस्से से जबड़ा भींचकर काफी तेज आवाज में बोलते हुए वो आदमी अपनी पेंट की जेब से बंदूक निकालते हुए श्रुति की तरफ उस गन को जैसे ही करने जाता कि
" कहां.... ना.... बच्ची.... हैं... वो... " तभी रिद्धांश उस आदमी के गन पकड़े हाथ को कसकर पकड़ते हुए उसी पल श्रुति को अपने पीछे कर सख्त आवाज में बोलता
जहां किसी को खुद हाथ पकड़ते देखकर वो शक्श गुस्से से भरी आंखों को जैसे ही सामने खड़े रिद्धांश के चेहरे पर करता की घबराहट से उसकी सांसे तेज होती हुई । उसका हाथ इस तरह कांपने लगता कि हाथ में पकड़ी गन भी उसी पल गिर जाती
(( आखिर क्यों डर रहा वो शक्श रिद्धांश से ? ))
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