जय श्री कृष्णा जी
" कहां.... ना.... बच्ची.... हैं... वो... " तभी रिद्धांश उस आदमी के गन पकड़े हाथ को कसकर पकड़ते हुए उसी पल श्रुति को अपने पीछे कर सख्त आवाज में बोलता
जहां किसी को खुद का हाथ पकड़ते देखकर वो शक्श गुस्से से भरी आंखों को जैसे ही सामने खड़े रिद्धांश के चेहरे पर करता की घबराहट से उसकी सांसे तेज होती हुई । उसका हाथ इस तरह कांपने लगता कि हाथ में पकड़ी गन भी उसी पल गिर जाती
" मैं... मैं सब... सब समझ गया " वहीं बेहद घबराया सा अटकता हुआ वो आदमी बोलता हुआ डर से रिद्धांश से हाथ झटकता हुआ उसी पल घर से बहार की तरफ भाग जाता
जहां अपना एक आदमी यूं भागते देखकर वो तीनों कुछ नहीं समझ पाते । वो तीनों तो मजे से कुर्सी पर बैठे आगे होने के मस्त ड्रामे को देखने के लिए बेकरार थे । पर अपना ही साथी भागते देखकर वो तीनों जैसे ही रिद्धांश पर नज़रे करते की डर से उन तीनों की भी सांसे भारी होती हुई । वो भी उसी पल कुर्सी से जल्दबाजी में उठते हुए डरे से घर से बहार की तरफ भाग जाते
तो वहीं उन चारों को ऐसे भागते देखकर रुद्राक्ष की भौहें हल्की सी ना समझी में सिकुड़ जाती । उसे समझ ही नहीं आता कि वो ऐसे क्यों भागे ?
तभी उसे श्रुति का ख्याल आता । जहां श्रुति की सोचते हुए रिद्धांश पीछे पलटता तो श्रुति अपने में मस्त एक हाथ में आइस क्रीम की कटोरी को पकड़े कटोरी से ही आइस क्रीम को जीभ से लीक करती हुई खा रही थी
जहां श्रुति को ऐसे आइस क्रीम खाते देखकर रिद्धांश समझ नहीं पाता कि कटोरी में चम्मच होकर भी श्रुति जीभ से लिक करती हुई क्यों ऐसे खा रही ? तभी उसकी नज़रे अपने हाथ में पकड़ी श्रुति की कलाई पर जाती
और ये देखते ही रिद्धांश तभी श्रुति का हाथ छोड़ देता और रिद्धांश के हाथ से अपनी कलाई छूटते ही श्रुति चम्मच से आइस क्रीम खाती हुई वहीं एक कुर्सी पर बैठ जाती
तभी रिद्धांश का फोन बजता । जहां फोन की आवाज सुनते रिद्धांश पेंट की जेब से फोन निकालते हुए देखता । तो फोन पर अनाथ आश्रम लिखा देखकर रिद्धांश कॉल उठाते हुए थोड़ा श्रुति से दूर होकर बात करने लगता
वहीं पांच मिनट बात कर रिद्धांश फोन जेब में डाले श्रुति के पास आता । तो श्रुति को इस तरह बेचैन होकर कुर्सी पर बैठे अपने सीने और गर्दन को मसलते देखकर रिद्धांश चिंता में हो जाता
" हमारा.... गला.... गला... जल रहा " वहीं श्रुति गले को मालती हुई खांसती हुई बोलती
जहां श्रुति की इस बात को सुनते रिद्धांश फिक्र से श्रुति से कुछ पूछने को होता कि तभी रिद्धांश की नजर टेबल पर रखे खाली चार ग्लास पर जाती । जहां पहले चारों ग्लास शैंपियन से आधे से कम कम भरे थे और वो चारो ग्लास उन चारों ही आदमी के थे । जहां उन चारों आदमी का झूठा श्रुति ने पी लिया । ये सोचते ही गुस्से से रिद्धांश का खून खोल उठ जाता
" अपनी इस झूठन की आदत को सुधार लीजिए वरना .... " वहीं गुस्से से रिद्धांश श्रुति का मुंह पकड़कर भींचते हुए बोलते हुए आगे भी बोलता की
" वरना...." तभी श्रुति बहुत मासूमियत से नशे से भरी आंखों से रिद्धांश को देखती हुई पूछती
जहां श्रुति का जवाब ऐसा था मानो रिद्धांश के गुस्से की आग में घी डालना और बस उसी वक्त रिद्धांश श्रुति के चेहरे पर झुकते हुए अपने दांतों के बीच श्रुति के होठों को बेदर्दी से मसलने लगता
" आह... श.... दर्द हो... रहा.... " वहीं अपने होठों को यूं बेदर्दी से मसलने पर श्रुति आंखों को मिचती हुई करहाते हुए बोलती
वहीं रिद्धांश श्रुति के सामने की टेबल पर बैठते हुए दोनों हाथों को श्रुति की कमर में लपेटते हुए श्रुति को अपनी गोद में बिठा लेता । जहां रिद्धांश की गोद में आते ही श्रुति अपने दोनों पेरो को रिद्धांश की कमर में लपेट लेती
पर अब अपने नीचे के हार्ड को श्रुति के शरीर में चिपकता महसूस पर रिद्धांश गर्म सा होने लगता और इस गर्माहट में रिद्धांश अपने एक हाथों से श्रुति की पीट से कमर तक दबाव के साथ मसलते हुए इस बार बहुत प्यार से श्रुति के होठों पर किस करने लगता
वहीं श्रुति जिसे किस करनी नहीं आ रही थी और ना ही वो समझ पा रही की कैसे अपने होठों को हिलाना । वो तो बस रिद्धांश जैसे जैसे उसके होठों को सिकोड़कर अपने मुंह में ले रहा । बस वैसे ही उसका साथ देने लग रही
वहीं इस लगातार किस में खोई श्रुति अपना एक हाथ रिद्धांश के सीने से नीचे सरकाती हुई उसके पेट पर से नीचे सरकाती हुई अपना हाथ रिद्धांश की पेंट के बटन पर रख जैसे ही उस बटन को खोलने की कोशिश करती की
कृपया समीक्षा और रेटिंग जरूर दीजिए मुझे ...