कॉलेज का गेट उसके सामने खुला था, जैसे कोई पुराना सपना फिर से हकीकत बन गया हो।
गेट के ऊपर बोर्ड था — “श्री शांतिनाथ डिग्री कॉलेज, रायपुर” — वही जगह जहाँ उसने अपना यौवन जिया था, वही गलियां, वही कैंटीन, वही क्रिकेट की चीखें, और वो सब रिश्ते जिनमें दोस्ती से लेकर धोखे तक सब मिला था।
लेकिन इस बार आरव बदल चुका था।
पहले जब वो कॉलेज आया था, तब उसकी आंखों में जिज्ञासा थी, थोड़ी घबराहट और ढेर सारी उम्मीदें थीं।
लेकिन आज... उसकी आंखों में संघर्ष की राख से उठी एक नई आग थी।
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वो क्लासरूम में दाखिल हुआ।
पहली बेंच पर वही दो शरारती लड़के बैठे थे — रोहित और हर्ष।
पीछे वाले कोने में कुछ लड़कियां बैठी थीं, और एक कोने में बैठी थी — प्रिया।
प्रिया के चेहरे पर शांति थी, उसकी आंखों में किताबों की रोशनी और चाल में एक विशेष आत्मविश्वास।
आरव ने उसे देखा और एक हल्की सी मुस्कान उसके होठों पर आई।
"ये वही है... जो आगे चलकर मेरी ज़िंदगी में एक नई रौशनी लेकर आएगी... लेकिन अभी नहीं, अभी नहीं..."
आरव अपनी सीट पर बैठ गया — तीसरी लाइन, खिड़की के पास।
जहां से बाहर नीम का पेड़ दिखता था। वहीं वो अक्सर खो जाता था।
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पहला लेक्चर — इकनॉमिक्स।
सर अंदर आए —
“बच्चों, आज से एक नई यात्रा शुरू हो रही है। आप सब एक नई शुरुआत कर रहे हैं, और आपको समझना होगा कि भविष्य यहीं से बनता है...”
आरव के लिए ये शब्द साधारण नहीं थे।
वो हर लाइन को इस तरह सुन रहा था जैसे भविष्य उसके सामने बैठा हो और कह रहा हो — "ये मौका दोबारा नहीं मिलेगा।"
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ब्रेक टाइम — कैंटीन की गूंज।
आरव कैंटीन की ओर बढ़ा।
वही समोसे की महक, वही कटोरी में छोले, और वही गर्मागर्म चाय की खनकती आवाजें।
वो एक कोने में बैठ गया और अपने बैग से एक पुराना पर्स निकाला — जिसमें सिर्फ 50 रुपये थे।
"इतने में दो समोसे और एक चाय आ ही जाएगी..."
तभी उसके पास एक आवाज आई —
"तुम नए हो क्या?"
वो मुड़ा — प्रिया खड़ी थी।
उसने हल्की मुस्कान दी।
"हां... नया तो हूं, लेकिन जगह जानी-पहचानी सी लग रही है।"
प्रिया थोड़ा हँसी —
"Interesting answer."
वो उसकी टेबल के पास आकर बैठ गई।
"मैं प्रिया। फर्स्ट ईयर, बी.कॉम। तुम?"
"आरव। सेम।"
"कॉलेज अच्छा है, लेकिन पढ़ाई से ज़्यादा लोग यहाँ टाइमपास करने आते हैं। तुम भी वही हो क्या?"
आरव ने उसकी आंखों में देखा —
"नहीं। मैं इस बार सब कुछ सही करने आया हूं।"
प्रिया थोड़ी चौंकी,
"इस बार...? मतलब?"
आरव मुस्कुरा दिया,
"मतलब... कुछ नहीं, बस वैसे ही।"
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प्रिया और आरव की पहली बातचीत छोटी थी, लेकिन असर गहरा।
प्रिया ने उसकी आंखों में कुछ ऐसा देखा था जो बाकी लड़कों में नहीं था — एक गहराई, एक टूटन, और एक फिर से जुड़ने की चाह।
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शाम — गांव लौटना।
आरव अपनी मां के लिए सब्जियां लेकर घर लौटा।
दरवाज़ा खोलते ही मां ने मुस्करा कर पूछा —
"कैसा रहा कॉलेज?"
"अच्छा... बस पुरानी बातें याद आती रहीं।"
"पुरानी बातें...? तू तो आज पहली बार गया है।"
आरव थोड़ा मुस्कुराया,
"हां मां, पहली बार ही तो गया हूं..."
मां ने उसके माथे पर हाथ रखा —
"बुखार तो नहीं है तुझे...? आजकल अजीब-अजीब बातें कर रहा है।"
आरव ने मां को गले लगा लिया।
"नहीं मां, बस तुझसे दूर जाने का डर है।"
"पगला गया है क्या...? मैं कहीं जाने वाली नहीं हूं।"
लेकिन आरव जानता था — अगर उसने कुछ नहीं बदला, तो माँ 25 मई 2020 को उससे छिन जाएगी।
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रात — बिस्तर पर लेटा हुआ आरव।
छत की ओर देखता रहा।
"अब समय है सोचने का नहीं... करने का है।
मुझे सबकुछ बदलना है।
पढ़ाई में टॉप करना है, मां को संभालना है, और सबसे बड़ी बात — फिर से उसी लड़की के जाल में नहीं फँसना है जिसने मेरी जिंदगी तबाह कर दी थी।"
आरव की आंखें धीरे-धीरे बंद हो रही थीं।
लेकिन उसके मन में एक ही आवाज़ गूंज रही थी —
"ये जिंदगी दोबारा मिली है... अब इसे मैं नहीं खोऊँगा..."
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