Chapter 4: “नई सुबह, नई दोस्ती, पुराना चेहरा”

अगले दिन सुबह की चाय कुछ और ही स्वाद लेकर आई थी।

आरव की मां, अपने पुराने कपड़े में, बालों में गजरा लगाए, किचन में कुछ गुनगुना रही थीं —

“चलो बेटा, उठ जा… कॉलेज का टाइम हो रहा है। और हाँ, आज तेरा टिफिन में आलू के पराठे रखे हैं!”

आरव मुस्कुराया,

“Thanks मां... तू दुनिया की सबसे खूबसूरत मां है।”

“अब फिर से झूठी तारीफ़ों से उल्लू बनाने की कोशिश मत कर, उठ जा वरना तेरा बस स्टॉप निकल जाएगा।”

आरव ने बिस्तर से उठते हुए सोचा,

“काश मैं उस दिन तेरी बातों को ज़्यादा सुना होता मां... लेकिन इस बार सब ठीक करूँगा।”

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कॉलेज का माहौल आज कुछ हल्का था।

पेड़ों पर धूप की चादरें बिछी थीं और कैंपस में स्टूडेंट्स की चहलकदमी वैसी ही थी जैसी पहले हुआ करती थी।

लेकिन एक चीज़ बदल गई थी — आरव का नज़रिया।

वो क्लास में जैसे ही घुसा, पीछे की सीट पर बैठने ही वाला था कि एक आवाज़ आई —

“Excuse me Mr. टाइम ट्रैवलर, यहाँ आकर बैठो।”

वो मुड़ा — प्रिया।

“टाइम ट्रैवलर?” आरव ने eyebrow उठाते हुए पूछा।

“हाँ... तुम कोई अलग ही zone में रहते हो। बात करते वक्त ऐसा लगता है जैसे तुम future देख चुके हो।”

आरव हँस पड़ा,

“अरे नहीं, बस थोड़ा philosophical हो गया हूँ। और वैसे भी... future की knowledge भी एक burden होती है।”

प्रिया ने उसे मज़ाक में धक्का दिया,

“ओह तो आप burden उठाने वाले महान आत्मा हैं? फिर तो आपको Nobel Prize मिलना चाहिए!”

दोनों खिलखिला कर हँस पड़े।

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Lunch break — कैंटीन का कोना।

आरव और प्रिया एक ही टेबल पर थे।

प्रिया के पास उसका lunchbox था — पनीर पराठा और achar।

आरव के पास मां के बनाए हुए आलू के पराठे।

“चलो, आज lunch exchange करते हैं,” प्रिया बोली।

“सुनो, मैं किसी भी चीज़ से समझौता कर सकता हूँ, पर मां के आलू पराठों से नहीं,” आरव ने मजाकिया अंदाज़ में कहा।

“ओह हेलो! मेरे पनीर पराठे insult सहन नहीं कर सकते!”

“तो फिर चलो, थोड़ा-थोड़ा एक्सचेंज करते हैं... mutual understanding,” आरव ने मुस्कुराते हुए एक टुकड़ा बढ़ाया।

प्रिया ने भी paratha forward किया।

और इसी तरह छोटे-छोटे moments ने उनकी दोस्ती को एक comfort zone दे दिया।

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क्लास के बाद — लाइब्रेरी।

आरव लाइब्रेरी के एक कोने में बैठा था, stock market की कुछ पुरानी किताबें पढ़ते हुए।

“Investing during inflation” — ये उसका आज का subject था।

तभी प्रिया आकर बैठ गई।

“ओहो, serious investor बन रहे हो क्या?”

आरव ने किताब से नजर हटाई —

“Actually हाँ। Future में एक बड़ी crisis आने वाली है। मैं चाहता हूँ कि इस बार ready रहूं।”

प्रिया ने थोड़ी चौंक के पूछा,

“तुम्हें कैसे पता future में क्या होगा?”

आरव थोड़ा रुका... फिर बोला,

“बस एक instinct है। पिछले सालों में काफी कुछ देख लिया। अब बिना preparation के जिंदगी में उतरना बेवकूफी है।”

प्रिया थोड़ी देर चुप रही।

फिर बोली —

“तुम ना... काफी different हो। बाकियों जैसे नहीं।”

आरव ने हल्की मुस्कान दी,

“कभी-कभी ज़िंदगी तुम्हें ऐसे मोड़ पर ले आती है जहाँ से वापस जाना मुमकिन नहीं होता... बस तब तुम बदल जाते हो।”

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अगले दिन — कैंपस में एंट्री

जैसे ही आरव क्लास के बाहर पहुँचा, सामने से तीन लड़कियाँ आ रहीं थीं — हँसती, खिलखिलाती हुईं।

और उन्हीं में से एक लड़की थी — साक्षी।

साक्षी — वही लड़की जिसने आरव का दिल तोड़ा था।

आरव एक पल के लिए रुक गया।

साक्षी की आंखें उसके ऊपर पड़ीं, लेकिन उसने कोई response नहीं दिया।

साक्षी मुस्कुराई,

“Hi Aarav…”

आरव ने सिर हिलाया, लेकिन बिना रुकें सीधे क्लास में चला गया।

पहली बार... वो उसके लिए रुका नहीं।

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ब्रेक में — प्रिया ने नोटिस किया।

“तुम उस लड़की को जानते हो?”

आरव ने आंखें झुकाई,

“कभी जानता था... अब नहीं।”

“ओह... कुछ था क्या?”

आरव ने हल्की हँसी में बात को टाल दिया,

“कुछ ऐसा ही... लेकिन अब नहीं चाहता कि पुरानी चीज़ें दोबारा repeat हों। इस बार मैं थोड़ा selfish बनूंगा — अपनी मां के लिए, अपने लिए।”

प्रिया ने आरव की आंखों में देखा —

“और थोड़ी सी selfishness मेरे लिए भी बचा लेना।”

आरव चौंका,

“क्या?”

प्रिया ने हँसते हुए कहा —

“मतलब... अच्छे दोस्त selfishly चाहिए। I don’t share my friends easily!”

दोनों फिर हँस पड़े।

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रात — गांव में, मां के साथ खाना।

मां: “आजकल तुम बड़े शांत हो गए हो बेटा... पहले तो तू इतना शरारती था!”

आरव: “शरारतें अब प्रिया करती है... मैं तो उसका शिकार हो जाता हूँ।”

मां मुस्कुराईं —

“ओह... प्रिया...?”

आरव थोड़ा शरमा गया।

“नहीं मां... अभी कुछ नहीं। बस एक अच्छी दोस्त है।”

मां ने आरव के सिर पर हाथ रखा —

“अच्छी दोस्तियाँ कभी-कभी सबसे मजबूत रिश्ता बन जाती हैं।”

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रात — बिस्तर पर अकेला आरव।

"सब कुछ वैसा ही हो रहा है... लेकिन मैं वैसा नहीं होने दूंगा जैसा पहले हुआ था।

इस बार मैं साक्षी के जाल में नहीं फंसूंगा...

इस बार मैं मां को नहीं खोऊंगा...

और इस बार... अगर किसी ने दिल से चाहा, तो उसे कभी नहीं छोड़ूंगा।"

कहानी अब रफ्तार पकड़ रही थी।

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