Chapter 13: एहसासों की उलझनें

क्लासरूम के माहौल में प्रेजेंटेशन के बाद कुछ देर तक तो तालियों की गूंज रही, फिर सब धीरे-धीरे अपने अपने ग्रुप्स में बातें करने लगे। लेकिन आरव, भव्या, मीरा और मेघा—चारों एक कोने में खामोशी से खड़े थे।

"बहुत अच्छा किया तुम सबने," संजना मैम ने मुस्कुराते हुए कहा, "आरव, तुमने जिस तरह से टीम को लीड किया, वो काबिले तारीफ है।"

आरव ने विनम्रता से सिर झुकाकर धन्यवाद कहा। लड़कियों के चेहरे पर भी आत्मविश्वास की चमक थी। वो तीनों साड़ी में बेहद खूबसूरत लग रही थीं, और अब उनका आत्मविश्वास उस सुंदरता को और भी उभार रहा था।

प्रिया दूर से सब देख रही थी। उसके ग्रुप का प्रेजेंटेशन अच्छा था, लेकिन जितनी तारीफ आरव के ग्रुप को मिल रही थी, वो देख कर उसके मन में हल्का-सा खलिश जरूर हुआ।

"तुम्हारा प्रेजेंटेशन भी अच्छा था प्रिया," मीरा ने मुस्कुराकर कहा जब वो पास आयी।

"थैंक्स," प्रिया ने जबरन मुस्कान बनाते हुए जवाब दिया। लेकिन उसकी नजरें आरव की ओर ही टिक गई थीं, जो उस वक्त मेघा से कुछ डिस्कस कर रहा था।

आरव ने प्रिया की ओर देखा और हल्की-सी मुस्कान दी। प्रिया का दिल कुछ पल को तेज़ धड़कने लगा। वो मुस्कान एक दोस्त की थी, लेकिन उस मुस्कान के पीछे जो अतीत था, उसे भुलाना उसके लिए आसान नहीं था।

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अगले दिन कॉलेज में माहौल हल्का था। प्रेजेंटेशन खत्म हो चुके थे और अब क्लास में ज़्यादा पढ़ाई की बजाय डिस्कशन चल रहे थे। भव्या ने आरव को अपने बगल वाली सीट पर बैठने के लिए कहा।

"आरव, तुम्हें बिजनेस की समझ अच्छी है। तुमने कभी अपने पापा के बिजनेस में काम किया है क्या?" भव्या ने पूछा।

"नहीं, मैंने तो बस किताबों से सीखा है और थोड़ा इंटरनेट से," आरव ने ईमानदारी से जवाब दिया।

"पर तुम्हारा आईडिया बहुत रियल था। एक्चुअली मैं सोच रही थी, क्या हम इसे आगे रियल में काम में ला सकते हैं?" मेघा ने जोड़ा।

"अगर सही टीम मिले तो क्यों नहीं," आरव ने कहा और फिर हँसते हुए जोड़ा, "लेकिन पहले ग्रेजुएशन तो कर लें।"

तीनों लड़कियाँ उसकी बात पर हँस पड़ीं। प्रिया दूर से ये सब देख रही थी, उसकी आँखों में हल्की बेचैनी थी जिसे वो छिपा रही थी।

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क्लास के बाद जब आरव लाइब्रेरी की तरफ बढ़ा, तो प्रिया ने उसका रास्ता रोक लिया।

"आरव, थोड़ी देर बात कर सकते हो?" उसने पूछा।

आरव ने उसकी आँखों में देखा, उनमें कुछ सवाल थे, कुछ पुराने पलों की झलक।

"हाँ, चलो बाहर चलते हैं," आरव ने कहा।

कॉलेज के बग़ीचे में दोनों साथ बैठे। हवा में हल्की ठंडक थी और आसपास फूल खिले हुए थे।

"तुम बहुत बदल गए हो," प्रिया ने कहा।

आरव मुस्कुराया, "शायद वक़्त सबको बदल देता है।"

"या शायद... कुछ टूटने के बाद हम खुद को जोड़ने की कोशिश करते हैं," प्रिया ने धीमे से कहा।

कुछ देर दोनों खामोश रहे। उस खामोशी में बहुत कुछ कहा गया, बहुत कुछ सुना गया।

"ख्याल रखना प्रिया," आरव ने उठते हुए कहा।

प्रिया ने बस सिर हिला दिया।

आरव चला गया, और प्रिया की आँखों में हल्की नमी सी थी।

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