शाम के पांच बजे थे। कॉलेज का माहौल धीरे-धीरे शांत हो रहा था। अधिकतर छात्र जा चुके थे, लेकिन आरव लाइब्रेरी में बैठा था — उस नीले फोल्डर को सामने रखे, उसकी एक-एक पंक्ति को पढ़ता हुआ।
फोल्डर में लिखा था:
"Equity is not just ownership, it's a responsibility."
आरव के लिए ये लाइन बहुत भारी थी। अब तक जो उसने स्टॉक्स के बारे में जाना था वो बस YouTube वीडियोज़ और छोटी मोटी Insta reels तक सीमित था। लेकिन इस फोल्डर ने उसकी सोच की गहराई बदल दी थी।
"Index funds, diversification, portfolio rebalance, risk-adjusted return..."
ये सब शब्द जैसे उसकी आंखों के सामने तैरने लगे। वो समझ रहा था, ये सब सिर्फ पैसे लगाने का खेल नहीं है — ये दिमाग़ और धैर्य की लड़ाई है।
आरव (अपने आप से सोचते हुए):
"मुझे ये सिर्फ शौक या टाइम पास की तरह नहीं लेना है। मुझे इसे अपने फ्यूचर की नींव बनाना है... और सबसे पहले — मुझे खुद को मजबूत करना है।"
वो अपनी जेब से मोबाइल निकालता है। Groww ऐप खोलता है। कुछ दिन पहले ही उसने डेमैट अकाउंट खुलवाया था। अब वो सच में ready था।
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अगले दिन – क्लासरूम में
अकाउंट्स की क्लास चल रही थी, लेकिन आरव का ध्यान आज कुछ ज़्यादा ही तेज़ था। Sir कुछ-कुछ चीज़ें बता रहे थे जो स्टॉक्स के फंडामेंटल से मेल खा रही थीं — Price to Earnings Ratio, Book Value, ROCE…
आरव ने डायरी खोली और हर एक पॉइंट को अलग रंग से नोट किया। आज वो सिर्फ एक स्टूडेंट नहीं था — वो एक Learner बन चुका था।
ब्रेक के समय, प्रिया उसके पास आई।
उसके हाथ में दो कॉफी के कप थे।
प्रिया (मुस्कुराते हुए):
"आजकल तुम बहुत focused दिखते हो। लाइब्रेरी में भी देखा, क्लास में भी... क्या चल रहा है?"
आरव (कॉफी लेते हुए):
"चल रहा है Self-upgrade mode। तुम्हारा फोल्डर ही तो ट्रिगर था। अब तो seriously लेना ही पड़ेगा।"
प्रिया:
"Good. वैसे तुम्हें एक बात बताऊँ... पापा चाहते हैं कि मैं भी उनके ऑफिस में internship करूं, next vacation में।"
आरव:
"That’s amazing! फिर तो तुम्हारे साथ-साथ मैं भी सीख लूंगा। Indirect internship!"
प्रिया (हँसते हुए):
"हां, पर तुम्हें भी internship ढूंढनी चाहिए। Experience बहुत ज़रूरी होता है।"
आरव ने थोड़ी देर के लिए आंखें मूंद लीं। फिर बोला:
आरव:
"हाँ… मैं सोच रहा हूँ एक mini research project करने का — छत्तीसगढ़ के 10 Small Cap businesses जिनके shares undervalued हैं और 5 साल में उछाल मार सकते हैं।"
प्रिया (आश्चर्य से):
"Whoa… ये तुमने सोच कैसे लिया?"
आरव (धीरे से मुस्कुराकर):
"क्योंकि मैं अब सिर्फ स्टूडेंट नहीं हूं… मैं एक इन्वेस्टर बनना चाहता हूं…"
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शाम – कॉलेज के पार्किंग एरिया में
आरव स्कूटी स्टार्ट कर ही रहा था कि सामने से कनिका पांडेय आती दिखी। उसकी चाल में आत्मविश्वास था, पर नज़रों में कुछ और — जैसे वो अब आरव को नज़रअंदाज़ नहीं कर रही थी।
कनिका:
"Hey Aarav, एक मिनट।"
आरव (थोड़ा चौंक कर):
"हाँ बोलो कनिका।"
कनिका (हथेली में एक डायरी दिखाते हुए):
"तुम्हारे स्टॉक्स और mutual fund वाले points… मैं सुन रही थी कल लाइब्रेरी में। तुम इंटरेस्टेड हो ऐसे प्रोजेक्ट्स में?"
आरव:
"हाँ… क्यों?"
कनिका:
"Art & Culture Fest के बाद एक Economics Fest भी होने वाला है — उसमें Finance Simulation Round होता है। मैंने उसमें पार्ट लेने का सोच रखा है। एक टीम चाहिए… Interested?"
आरव को कुछ पल लगे। कनिका वही लड़की थी जो कभी प्रिया के साथ आरव की closeness को देखकर दूरी बना रही थी। पर अब वो खुद बातचीत शुरू कर रही थी।
आरव (स्मार्टली मुस्कुरा कर):
"चलो अच्छा है… तुम्हें मेरी value समझ आई। और हाँ, I’m in… Team में तुम हो, तो competition थोड़ा मज़ेदार रहेगा।"
कनिका मुस्कुरा दी — पहली बार genuinely।
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रात 9:00 बजे — घर का आंगन, हल्की हवा और थाली में रखी गर्म दाल की ख़ुशबू
आरव अपने कमरे से बाहर आता है। माँ आंगन में चौकी पर बैठी हैं — नीले बॉर्डर वाली हल्की गुलाबी साड़ी में, जैसे चाँदनी ज़मीन पर उतर आई हो। उनकी आँखों में गहराई है और चेहरे पर एक ऐसी शांत मुस्कान, जो जीवन की हर परीक्षा को पार कर चुकी हो।
आरव (धीरे से पास जाकर):
"माँ… खाना खाया आपने?"
सरस्वती देवी (हल्की मुस्कान के साथ):
"तेरे बिना? खा लेती क्या? थाली तेरे लिए ही सजी थी।"
आरव ज़मीन पर बैठ गया। वो माँ के पैरों के पास था — जैसे वही उसका असली मंदिर हो।
आरव (धीरे से):
"माँ… आज बहुत दिन बाद तुम्हारे साथ ऐसे बैठा हूँ। सब कुछ तेज़ हो गया है… पढ़ाई, इन्वेस्टमेंट, कॉलेज… मैं खुद को भूलने लगा था।"
सरस्वती देवी (हाथ उसके बालों में फेरते हुए):
"तू खुद को भूल नहीं रहा बेटा… तू खुद को ढूंढ रहा है।"
उनकी आवाज़ में ऐसा ठहराव था कि मानो जीवन की हर सच्चाई वहीं ठहर गई हो। आरव उन्हें देख रहा था — माथे पर ना बिंदी थी, ना सिंदूर… फिर भी उनका चेहरा जैसे तपते सूरज के नीचे भी चांदनी की तरह शांत था। बिना मेकअप, बिना दिखावे — एक गरिमामयी सुंदरता, जिसे शब्द नहीं छू सकते।
दोनों हाथों में बस दो साधारण से सोने के कंगन थे, जो हर हरकत के साथ हल्की आवाज़ करते थे — जैसे माँ की हर साँस में श्रद्धा हो, ममता हो।
आरव (धीरे से उनकी गोद में सिर रखते हुए):
"माँ… आप बहुत सुंदर हो। जब भी देखता हूँ, लगता है भगवान ने मुझसे पहले आप पर मेहरबानी की थी।"
सरस्वती देवी (हल्का सा हँसते हुए):
"सुंदरता उस दिल में होती है जो अपनी माँ को ऐसे देख सके। मेरे बेटे की नज़रों में जो श्रद्धा है, वही मुझे सबसे सुंदर बनाती है।"
आरव की आंखें भीगने लगीं।
आरव:
"आपके लिए ही तो कर रहा हूँ ये सब। मैं चाहता हूँ कि आप कभी किसी चीज़ की कमी महसूस ना करें… एक दिन आपको उस मंदिर में भी लेकर जाऊंगा जहां पापा ने आखिरी बार आपको हाथ जोड़कर देखा था।"
सरस्वती देवी (आँखों में नमी के साथ):
"कमी तेरे पापा की है बेटा… पर तुझमें उनका अक्स दिखता है। तू जब मुस्कुराता है, लगता है जैसे समय थोड़ा पीछे लौट आया हो।"
उनकी आवाज़ धीमी हो गई… और आंगन में थोड़ी देर के लिए सिर्फ हवा की आवाज़ थी और कंगनों की खनक।
आरव (धीरे से, मन में वादा करते हुए):
"इस बार नहीं हारूंगा माँ। इस बार आपके सपनों को मैं पूरे करूंगा — और वो भी सिर ऊँचा करके।"
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रात को – घर में
आरव ने अपना पुराना Mirror देखा — जिसमें कुछ हफ्ते पहले उसने पहली बार Time Travel का सच जाना था। आज उसमें खुद को देखा तो लगा जैसे वो लड़का पहले से ज़्यादा mature, ज़्यादा calm और ज़्यादा ambitious हो गया है।
आरव (मन में):
"सपने, सिर्फ देखने के लिए नहीं होते… उन्हें जीना पड़ता है। और अब मैं हर दिन अपने सपनों को जी रहा हूँ।"
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