काफी दिनों तक खोजबीन करने के बाद, पुलिस को रितिका की गाड़ी मिल ही गई। लेकिन गाड़ी को देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि इसमें कोई हादसा हुआ है या कुछ बुरा हुआ है। पुलिस ने गाड़ी को अंदर और बाहर से ध्यान से देखा, लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं मिला। एक पुलिसकर्मी ने कहा, "सर, हमें गाड़ी यहां मिली है, तो हमें उसी रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए।" सभी ने सहमति जताई और चलने लगे।
रास्ते में चलते-चलते साहिल को ऐसा महसूस हुआ कि कोई उनका पीछा कर रहा है। उसने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन कोई भी नहीं था। यह स्थिति कई बार हुई, लेकिन अब साहिल ने सोचना छोड़ दिया था और बिना पीछे देखे चलता रहा। वे काफी दूर चल चुके थे, जब अचानक एक छोटी सी दुकान दिखी। साहिल ने दुकान के मालिक से पूछा, "क्या आपने हाल ही में किसी लड़की को देखा है, जिसका हम खोजबीन कर रहे हैं?"
दुकानदार ने थोड़ा सोचा और फिर उसका चेहरा कुछ जाना-पहचाना सा लगा। उसने बताया, "हां, कुछ दिन पहले एक लड़की दुकान पर आई थी। वह पानी पीने के लिए आई थी और अपना फोन चार्ज करने के लिए जगह ढूंढ रही थी।" साहिल के चेहरे पर एक नई उम्मीद की झलक आई, और उसने उत्सुकता से पूछा, "वह लड़की कितने दिन पहले आई थी?" दुकानदार ने कहा, "चार-पाँच दिन पहले, शायद... अपने सिर के बाल खुजाते हुये कहा ।"
साहिल को अब यकीन हो गया कि वह रितिका के बारे में बात कर रहा था, और उसकी उम्मीदें फिर से जगीं। अब उसे लगने लगा कि शायद वह रितिका के करीब पहुँच चुका है।
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अंधेरे की चादर धीरे-धीरे चारों ओर फैल रही थी। रात की खामोशी, जैसे किसी भूतिया सन्नाटे की गहरी नींद में खोई हुई थी, और उसका हर कोना डर से भरा हुआ था। हवा भी जैसे ठंडी और उदास थी, मानो वह भी रात के इस खौ़फनाक सन्नाटे में कुछ बुरा महसूस कर रही हो। अचानक, उसी गहरे अंधेरे में एक तिकोने, चमकते हुए सितारे ने अपनी रोशनी से आसमान में हल्का सा बदलाव किया, जैसे वह किसी को इस गहरे अंधेरे से बाहर लाने की कोशिश कर रहा हो। लेकिन क्या वह मददगार था, या वह भी किसी बुरी ताकत का हिस्सा था?
वहीं, रीतिका के गायब होने की खबर ने सभी को और ज्यादा घेर लिया था। एक घना डर सबके दिलों में समा गया था, जैसे किसी ने सारा माहौल एक अजीब सी डरावनी ऊर्जा से भर दिया हो। रीतिका की उम्मीद की किरण, उसकी एक छोटी सी आवाज, सबके दिलों में घबराहट और बेचैनी का तूफान ला रही थी। हर किसी का मन सिर्फ यह जानने के लिए तड़प रहा था कि वह कहां है और किस हालत में है।
फिर फोन की घंटी बजी, और उस अजनबी नंबर ने सबको और ज्यादा डरावने ख्यालों में डाल दिया। यह क्या कोई किडनैपर का फोन था? क्या वह रीतिका को सचमुच धमकी दे रहे थे? पुलिस ने तुरंत स्पीकर पर फोन को रखा और रीतिका के पापा की सांसें रुक सी गईं। जब रीतिका ने अपना नाम लिया, तो एक पल के लिए सबका दिल जोर से धड़कने लगा, क्योंकि वह आवाज जान-पहचान की थी, लेकिन उसमें कुछ ऐसा था जो बहुत अजीब और डरावना था।
"हैलो पापा, मैं रीतिका हूं..." उसकी आवाज में एक शांति थी, लेकिन साथ ही किसी गहरे डर का संकेत भी। और फिर वह बोली, "पापा, मैं चर्च में हूं, आप सब घबराओ मत, मैं ठीक हूं, लेकिन..." उसकी आवाज अब घबराहट और दर्द से भरी हुई थी, जैसे वह किसी चीज से डर रही हो, जो आसपास हो। फिर अचानक फोन कट गया।
पूरे घर में खामोशी थी, लेकिन उस खामोशी में हर किसी की धड़कनें सुनाई दे रही थीं। पुलिस और उसके परिवार के लोग सोच रहे थे कि वह चर्च कहां हो सकता है? यह कोई आम चर्च नहीं था, यह किसी अजनबी और भूतिया स्थान की तरह महसूस हो रहा था। क्या वह सचमुच उस चर्च में थी, या कुछ और ही छिपा हुआ था?
कुछ घंटों बाद, पुलिस को रीतिका के फोन की अंतिम लोकेशन का पता चला, और वह लोकेशन कुछ ऐसा था जो किसी को भी डर से कांपने पर मजबूर कर सकता था। वह जगह बिल्कुल सुनसान थी। चारों ओर सन्नाटा, खौ़फनाक हवाएं और अजनबी, डरावनी आवाजें। जैसे उस जगह पर कोई बुरी ताकत अपनी उपस्थिति महसूस करा रही हो। दूर-दूर तक कुछ भी सामान्य नहीं था, सिर्फ अंधेरा था और उस अंधेरे में एक खौ़फनाक भावना जो हर पल बढ़ रही थी।
यह लोकेशन किसी निर्जन स्थान की थी, जो पूरी तरह से सुनसान था और कोई भी वहां नहीं आता था। जैसे रात की सियाही ने उस स्थान को निगल लिया हो, और वहां से निकलने का कोई रास्ता न हो। क्या रीतिका वहां थी, या वह किसी और डरावनी जगह पर थी, इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता था। अब पुलिस और रीतिका के परिवार के लोग सिर्फ एक ही सवाल पर अटक गए थे: वह चर्च कहाँ था, और वहां क्या छुपा हुआ था?
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चांदनी रात थी, लेकिन चांद के उजाले में भी देवनंद पूल तक जाने वाला रास्ता डरावना लग रहा था। घने पेड़ों की परछाईयां जमीन पर अजीब-अजीब शक्लें बना रही थीं। हर कदम पर ऐसा लगता, मानो कोई पीछे से झाड़ियों के बीच से देख रहा हो।
पूल पर पहुंचते ही ठंडी हवा का झोंका एक सिहरन पैदा कर देता। नीचे बहती नदी का पानी काला और रहस्यमय लग रहा था, जैसे उसमें कोई अनजानी गहराई छुपी हो। पूल पार करते समय कदमों की आवाज गूंजती और कभी-कभी ऐसा लगता जैसे वो गूंज लौटकर नहीं, बल्कि किसी और के कदमों की आहट थी।
पूल पार करके सड़क एक पुराने चर्च की ओर जाती थी। रास्ता पूरी तरह से सुनसान था, चारों ओर घने पेड़ और झाड़ियां। हल्की-हल्की सी धुंध फैली हुई थी, जो वातावरण को और भी डरावना बना रही थी। कभी-कभी झाड़ियों से किसी जानवर की आवाज आती, लेकिन उसके बाद सब कुछ फिर से सन्नाटे में डूब जाता।
चर्च के दरवाजे तक पहुंचने से पहले ही उसकी मीनार दिखाई देती थी, जिस पर कोई पुरानी घड़ी अब भी अटक कर समय बताने की कोशिश करती प्रतीत होती। दरवाजे पर पुरानी लोहे की जाली जंग खा चुकी थी, और हवा से वो चरमराने की आवाज करती।
चर्च के अंदर जाने की हिम्मत करने से पहले ही, ये जगह किसी छुपे हुए रहस्य का एहसास दिला देती थी। रास्ते की खामोशी, पूल के नीचे बहती रहस्यमय नदी, और चर्च की अजीब सी उपस्थिति ने माहौल को ऐसा बना दिया था कि यहां कोई असामान्य घटना होने का आभास हर पल होता रहता।
चर्च की मीनार पर लटकी घंटी हवा के हल्के झोंकों से हिलती, लेकिन उसमें से कोई आवाज नहीं निकलती। ऐसा लगता, जैसे वह घंटी भी डर के मारे खामोश हो चुकी हो। मीनार पर एक टूटी हुई घड़ी थी, जिसकी सूइयां एक ही जगह अटकी हुई थीं, जैसे वह समय के किसी रहस्यमय पल को कैद करके रखे हुए हो।
चर्च के मुख्य द्वार पर एक लोहे की जाली थी, जो जंग खाकर हरे रंग की हो चुकी थी। हवा के झोंकों से वह जाली चरमराती और कभी-कभी ऐसा लगता, मानो कोई उसे खोलने की कोशिश कर रहा हो। दरवाजे के ऊपर, पत्थर की एक डरावनी आकृति बनी थी, जिसका चेहरा इतना विकृत था कि उसे देख कर ही रोंगटे खड़े हो जाते थे।
चर्च के अंदर का वातावरण और भी भयावह था। फर्श पर पड़ी टूटी-फूटी लकड़ियां और धूल की मोटी परत हर कदम पर चीखती हुई प्रतीत होतीं। दीवारों पर धुंधले चित्र बने हुए थे, जिनके चेहरे समय के साथ इतने फीके और विकृत हो गए थे कि वे किसी भूत की झलक जैसे लगते।
चर्च के बीचों-बीच एक पुराना पल्पिट (व्यासपीठ) खड़ा था, जिसके पास एक मोमबत्ती जल रही थी, हालांकि वहां कोई भी नहीं था। मोमबत्ती की हल्की लौ हिलती, जैसे किसी अदृश्य हवा का स्पर्श हुआ हो। छत से लटके बड़े झूमर में टूटी हुई मोमबत्तियां और मकड़ी के जाले लटके हुए थे, जो उसे और भी डरावना बनाते थे।
हर कोने से ऐसा महसूस होता, जैसे कोई देख रहा हो। चर्च की खामोशी इतनी गहरी थी कि दिल की धड़कन भी गूंजती हुई सुनाई देती।
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रीतिका ने अपने पापा को बुला तो लिया था, लेकिन उसके दिल में उठ रहे सवालों का जवाब उसे खुद भी नहीं पता था। कमरे में अजीब-सी ठंडक थी, जैसे वहां कोई अदृश्य परछाईं घूम रही हो। जब वह अपने कमरे में गई, तो देखा कि कोने में रखी लकड़ी की पुरानी कुर्सी धीरे-धीरे अपने आप हिल रही थी। रीतिका का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
साहस जुटाकर, उसने कांपते हाथों से उस कुर्सी को छुआ। जैसे ही उसका हाथ कुर्सी पर पड़ा, ठंडी हवा का एक झोंका कमरे में दौड़ गया। तभी अचानक, कुर्सी के ठीक सामने एक विकृत चेहरा उभर आया। वह चेहरा उसकी ओर घूर रहा था—आंखें लाल जैसे अंगारे, और मुंह से निकलती भयंकर खरखराहट। इससे पहले कि कृतिका कुछ समझ पाती, वह आत्मा पूरी ताकत से उसकी ओर झपटी और उसके कंधों को जकड़ लिया।
रीतिका का शरीर जैसे किसी मूर्ति में तब्दील होता जा रहा था। उसकी नसों में खून की जगह जैसे ठंडा जहर दौड़ने लगा। उसके पैरों ने जमीन पर जड़ें पकड़ लीं। आत्मा की ठंडी उंगलियां उसके गले के पास महसूस हो रही थीं। तभी बाहर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आई।
आवाज सुनते ही आत्मा ने अपनी कर्कश और डरावनी आवाज में कहा,
"आ...जा...सु...धीर...आ...जा...सु...धि...र..."
हर शब्द के साथ उसकी आवाज गहरी और गूंजती हुई लग रही थी, जैसे कोई सड़ा हुआ कुआं बोल रहा हो। कमरे की दीवारों पर अंधेरे की छायाएं नाचने लगीं, और रीतिका की आंखों के सामने अंधेरा छा गया।
उसकी हर सांस अब उस आत्मा के कब्जे में थी।
.....
रीतिका के पापा घबराए हुए चर्च पहुंचे और फादर से मिलने के लिए अंदर गए। फादर ने उनकी परेशानी देखते ही पूछा, "क्या हुआ?" रीतिका के पापा ने तुरंत सवाल किया, "रीतिका कहां है?"
फादर का चेहरा गंभीर हो गया। उन्होंने धीमे स्वर में कहा, "वह ऊपर के कमरे में है।"
इससे पहले कि वे कुछ और पूछते, ऊपर सीढ़ियों पर अचानक रीतिका दिखाई दी। उसकी आंखें लाल और चेहरे पर अजीब सा डर था। वह कांपती हुई बोली, "आप आ गए? "
रीतिका के पापा ने हैरान होकर पूछा, "तुम यहां कैसे आई?"
रीतिका ने एक पल ठहरकर कहा, "सब कुछ ऊपर बताऊंगी। आप ऊपर चलिए।" लेकिन जैसे ही फादर और उसके पापा ऊपर जाने लगे, रीतिका ने हाथ उठा दिया। उसकी आवाज अचानक गहरी और भारी हो गई। उसने कहा, "नहीं........., पापा...आप अकेले ऊपर जाओ। सिर्फ आप ।"
फादर और उसके पापा दोनों स्तब्ध रह गए। फादर ने धीमे स्वर में कहा, "कुछ तो ठीक नहीं लग रहा।"
रीतिका के पापा जैसे ही ऊपर पहुंचे, उन्होंने देखा कि रीतिका कमरे के बीचों-बीच खड़ी थी। उसके चेहरे पर एक अजीब-सी मुस्कान थी, जो डरावनी और ठंडी लग रही थी। पलकों के झपकते ही रीतिका ने अपने पापा की ओर झपट्टा मारा और उनके गले को पूरी ताकत से दबाने लगी।
उनका दम घुटने लगा। तभी रीतिका का चेहरा अचानक बदलने लगा। उसकी आंखें पूरी तरह काली हो गईं, होंठों से खून टपकने लगा, और उसका पूरा चेहरा किसी अजनबी की भयानक आकृति में बदल गया। यह चेहरा ऐसा था, जिसे देखकर रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ जाए।
उसके पापा का गला और कसने लगा। वह रीतिका को बुलाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनकी आवाज गले में अटक गई। रीतिका का खून से सना चेहरा अब किसी अज्ञात भयावहता का प्रतीक बन चुका था।
कमरे में ठंडी हवा बहने लगी, और दीवारों पर परछाइयां नाचने लगीं। एक भयानक अट्टहास गूंजा, जो इस बात का संकेत था कि यह रीतिका नहीं, बल्कि कुछ और था—कुछ ऐसा जो इस दुनिया का नहीं था।
रीतिका के पापा की सांसें घुटने लगी थीं। आत्मा की ताकत उनके गले पर कसती जा रही थी। रीतिका की आवाज अब पूरी तरह बदल चुकी थी, और उसमें एक भयानक गूंज थी। वह दहाड़ते हुए चिल्लाई, "क्यों मारा मेरे रूद्र को? मेरे परिवार को? बता, नहीं तो तेरी बेटी की लाश आज तेरे ही घर जाएगी!"
कमरे की दीवारें इस भयानक आवाज से कांप उठीं। हवा इतनी ठंडी हो गई थी कि उनके शरीर जमने लगे। रीतिका के पापा कुछ बोलने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन आत्मा की पकड़ इतनी मजबूत थी कि शब्द उनके होंठों से बाहर नहीं आ पा रहे थे।
👁️🗨️ आखिर रीतिका के पापा ने ऐसा क्या किया था जो आत्मा को रूद्र और माया की मौत के लिए उन्हीं से जवाब चाहिए? क्या उनके अतीत में छिपा है कोई बड़ा गुनाह?
🕯️ रीतिका के अंदर समा चुकी आत्मा क्या सिर्फ बदला चाहती है, या अब उसका मकसद है पूरा खानदान खत्म करना?
✝️ क्या फादर और पुलिस मिलकर इस आत्मा को रोक पाएंगे, या ये भयानक कहानी अब और भी ज्यादा खौफनाक मोड़ लेने वाली है?
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........