तभी फादर कमरे में पहुंचे। उनके हाथ में एक प्राचीन क्रॉस था, जो तेज चमकने लगा। जैसे ही उन्होंने क्रॉस आत्मा की ओर बढ़ाया, वह चीख उठी। आत्मा रीतिका के पापा को छोड़कर पीछे की ओर गिर पड़ी। उसकी चीख इतनी भयानक थी कि ऐसा लगा, जैसे पूरे चर्च की दीवारें टूट जाएंगी।
आत्मा जमीन पर लेटी कांप रही थी, लेकिन उसकी गहरी लाल आंखें अब भी रीतिका के पापा पर गड़ी थीं। उसने खून से लथपथ चेहरे के साथ भयंकर आवाज में कहा, "बता, क्यों मारा मेरे रूद्र को? मूझे पता, यह तेरी ही बेटी है, पर अब यह मेरी शिकार है। अगर सच नहीं बताया, तो रीतिका अब कभी तुम्हारी नहीं होगी।"
कमरे का माहौल और डरावना हो गया। दीवारों पर परछाइयां बढ़ने लगीं, जैसे कोई अनदेखी शक्ति पूरे कमरे में घूम रही हो। फादर ने एक जोरदार आवाज में प्रार्थना शुरू की। आत्मा चीखते हुए उठ खड़ी हुई और हवा में झूलने लगी। उसने फादर की ओर घूरकर कहा, "तुम मुझे नहीं रोक सकते। मैं अपनी सजा पूरी करूंगी।"
रीतिका का शरीर कांप रहा था, उसकी आंखों से आंसुओं की जगह खून बहने लगा। लेकिन आत्मा अब भी उसे पूरी तरह अपने कब्जे में लिए हुए थी। कमरे में चारों ओर से फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं, जैसे कोई अदृश्य भीड़ आत्मा का साथ दे रही हो।
फादर ने अपनी प्रार्थना तेज कर दी। तभी आत्मा का चेहरा अचानक बदल गया। उसकी आंखों में गहरा दुख और गुस्सा झलकने लगा। उसने आखिरी बार रीतिका के पापा की ओर देखकर कहा, "अगर सच नहीं बताया, तो अगली बार मैं तेरे पूरे परिवार को ले जाऊंगी।"
इसके बाद आत्मा एक तेज चीख के साथ गायब हो गई, लेकिन कमरे में उसकी भयानक उपस्थिति अब भी महसूस हो रही थी। रीतिका बेहोश होकर फर्श पर गिर पड़ी। उसके पापा और फादर दोनों सन्न खड़े थे, सोचते हुए कि इस भयानक सच्चाई का सामना कैसे करें।
सोफिया, जो अब तक चुपचाप पीछे खड़ी सब कुछ देख रही थी, अचानक अजीब तरीके से हंसने लगी। उसकी हंसी धीरे-धीरे गहरी, भयानक, और ऐसी गूंज में बदल गई जो कमरे की हर दीवार से टकराकर लौट रही थी। उसकी आंखें अब पूरी तरह से काली हो गई थीं, और चेहरे पर एक डरावनी मुस्कान उभर आई थी।
उसके स्वर में आत्मा की भयंकरता गूंज रही थी। वह बोली, "अब मैं यहां हूं, और अब तुम सब देखोगे, एक-एक करके कैसे सब खत्म होगा।"
रीतिका के पापा, सुधीर, कांपते हुए बुदबुदाने लगे, "नहीं... नहीं... रीतिका को कुछ मत करना। यह मेरी जान है, मेरी बेटी है।" उनकी आवाज दर्द और डर से भरी थी, लेकिन उनकी आंखों में बेबसी झलक रही थी।
सोफिया ने एक भयानक मुस्कान के साथ सुधीर ( रीतिका के पापा ) की ओर देखा और तंज कसते हुए कहा, "तो फिर बोलो! तुम सच बताओगे या नहीं? देखना चाहते हो कि तेरी बेटी के साथ मैं और क्या कर सकती हूं?"
यह कहते हुए सोफिया ने अपना हाथ रीतिका की ओर बढ़ाया। उसी पल, रीतिका के चारों ओर आग की लपटें उठने लगीं। कमरे में अचानक इतनी गर्मी फैल गई कि सभी का दम घुटने लगा। रीतिका चीख भी नहीं पा रही थी; वह आग में फंसी हुई लग रही थी।
फादर, जो अब तक स्तब्ध खड़े थे, उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था कि इस भयावह स्थिति में क्या किया जाए। उन्होंने अपने क्रॉस को कसकर पकड़ा और प्रार्थना शुरू कर दी, लेकिन सोफिया ने उनकी ओर घूरते हुए कहा, "प्रार्थना से अब कुछ नहीं होगा। यह खेल अब मेरी शर्तों पर चलेगा।"
सुधीर अब भी सदमे में था। उसकी आंखें रीतिका और सोफिया के बीच दौड़ रही थीं। आखिरकार, उसने हिम्मत जुटाकर कांपती आवाज में पूछा, "तुम... तुम कौन हो? क्या चाहती हो? बताओ!"
सोफिया की हंसी एक बार फिर कमरे में गूंज उठी। उसने सुधीर की ओर देखते हुए कहा, "मैं वह हूं, जिसे तुमने मिटाने की कोशिश की थी। मैं वह हूं, जिसका घर तुमने उजाड़ा था। और अब... अब मैं तुझे और तेरे परिवार को खत्म करके अपना बदला लूंगी।"
कमरे की हर चीज हिलने लगी। दीवारों से खून रिसने लगा, और आग की लपटें तेज होती जा रही थीं। सुधीर के चेहरे पर पसीना बह रहा था, लेकिन वह अब भी जवाब पाने के लिए सोफिया की ओर देख रहा था। फादर ने सोफिया की ओर क्रॉस बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन उसकी ताकत जैसे वहां बेअसर हो गई थी।
सोफिया की आवाज गूंजती रही, "अब कुछ भी नहीं बच सकता। मैंने जो खोया है, उसे पाने का समय आ गया है, चाहे इसकी कीमत कोई भी हो।"
कमरे में फैली भयानक चुप्पी को माया की अलबेली, लेकिन डरावनी हंसी ने चीर दिया। वह हंसते हुए बोली, "नहीं पहचाना? कभी तो मुझसे प्यार किया करते थे, सुधीर। मैं माया हूं, वही माया जिसकी जिंदगी तुमने नरक बना दी। मेरा गला दबाकर तुमने मुझे मार डाला।"
सुधीर, जो अब तक कांप रहे थे, घुटी हुई आवाज में बोले, "माया, मैंने तुम्हें नहीं मारा। यह सच नहीं है।"
लेकिन माया की आत्मा उनकी बातों से और भड़क उठी। उसकी आवाज गहरी और गूंजती हुई हो गई। उसने काली आंखों से सुधीर की ओर देखते हुए कहा, "झूठ मत बोल। तुझे लगता है, मैं सच नहीं जानती? तू ही मुझे मारने आया था।"
सुधीर की आंखों में डर और पछतावे का अक्स झलक रहा था। उन्होंने कांपते हुए कहा, "हां, यह सच है कि मैं तुम्हें मारने आया था। लेकिन जब मैं वहां पहुंचा, तो रुद्र पहले से ही मरा हुआ था। उसकी लाश खून से सनी पड़ी थी।"
माया की आत्मा का चेहरा अब और विकृत हो गया। लेकिन सुधीर ने जैसे खुद को संभालते हुए आगे कहा, "मैं डर गया था। वहां से भागते समय मैं एक लड़की से टकराया, जिसके हाथ में चाकू था। उसने मुझ पर हमला किया, देखो..." सुधीर ने अपना हाथ दिखाया, जहां एक गहरी चोट का निशान अब भी साफ था।
"उस चाकू ने मुझे भी घायल कर दिया। फिर, जब मैं किचन में गया, तो देखा... तुम्हारे मम्मी-पापा खून में लथपथ पड़े थे। उनके पेट पर चाकू के गहरे निशान थे। मैं कुछ समझ ही नहीं पाया। तभी, मुझे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी।"
सुधीर की आवाज भारी हो गई। उन्होंने अपनी आंखें बंद कर लीं, जैसे उस पल को फिर से जी रहे हों। "मैं बाहर गया, और तब तक तुम भी... लाश बन चुकी थी, माया। तुम्हारा चेहरा देखकर मैं टूट गया था। तुम्हारी मौत ने मुझे ऐसा दर्द दिया, जिसे मैं अब तक सहन नहीं कर पाया।"
सुधीर की आंखों से आंसू बहने लगे। उन्होंने रुंधे हुए गले से कहा, "तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा थीं, माया। मैं जानता हूं, मैं तुम्हारा नहीं था, पर मैं तुम्हें खोने का गम सह नहीं सका। तुम्हें देखकर लगा कि शायद मैं तुम्हारे बिना कभी नहीं जी पाऊंगा।"
कमरे में एक अजीब-सी ठंडक फैल गई। माया की आत्मा चुपचाप सुधीर को देख रही थी, लेकिन उसकी आंखों में अब भी गुस्सा और दर्द था। उसकी उपस्थिति अब और भी भारी हो गई थी। उसने धीमी, लेकिन खौफनाक आवाज में कहा, "यह सच है या फिर एक और झूठ? मुझे सच का जवाब चाहिए, सुधीर। अगर तुमने सच छिपाया, तो मैं सबकुछ खत्म कर दूंगी।"
कमरे का अंधेरा और गहरा हो गया। सुधीर के आंसू गिरते रहे, और फादर ने कांपते हुए क्रॉस को थामे रखा, प्रार्थना जारी रखते हुए। अब सबकी नजरें माया की अगली हरकत पर थीं।
माया की आत्मा का चेहरा गुस्से और दर्द से विकृत हो चुका था। उसकी आवाज और भी भयानक हो गई। उसने घूरते हुए कहा, "झूठ! यह सब झूठ है। मुझे बहकाने की कोशिश मत कर, सुधीर।"
सुधीर ने कांपती आवाज में कहा, "नहीं माया, यही सच है। मैं उस दिन तुम्हें मारने के इरादे से आया था, लेकिन जब मैं पहुंचा, तो वह सब पहले ही हो चुका था। किसी और ने वह घिनौना काम कर दिया था।"
सुधीर की बातों में सच्चाई झलक रही थी, लेकिन माया की आत्मा को अब भी उन पर यकीन नहीं हुआ। उसकी चीखें पूरे कमरे में गूंजने लगीं। "झूठ! झूठ! तुम सब झूठे हो!" वह चीखती हुई कमरे से गायब हो गई।
जैसे ही माया की आत्मा कमरे से गई, रीतिका के चारों ओर जल रही आग की लपटें धीरे-धीरे बुझने लगीं। कमरे में फैली भयानक गर्मी अब ठंडक में बदलने लगी। रीतिका बेहोश जमीन पर पड़ी थी ।
सुधीर ने तेजी से दौड़कर रीतिका को गोद में उठाया और बिस्तर पर सुला दिया। उसके चेहरे पर चिंता और भय साफ झलक रहा था। फादर ने शांत लेकिन गंभीर स्वर में कहा, "सुधीर, मुझे तुमसे अकेले में कुछ जरूरी बात करनी है।"
सुधीर ने रीतिका को एक नजर देखा और उसकी सांसें चलती देख राहत की सांस ली। फिर वह फादर के साथ कमरे के कोने में चला गया, जहां फादर ने गहरी और गंभीर आवाज में कहा, "सुधीर, यह आत्मा इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं है। यह सिर्फ बदला लेने नहीं आई है। इसकी नफरत इससे भी ज्यादा गहरी है। तुम्हें सच को पूरी तरह सामने लाना होगा, वरना यह वापस आएगी, और तब यह सिर्फ रीतिका को नहीं, बल्कि तुम्हारे पूरे परिवार को ले जाएगी।"
कमरे में अब भी एक अजीब-सा सन्नाटा था, और दीवारों पर रहस्यमयी परछाइयां नाच रही थीं। ऐसा लग रहा था, जैसे माया की आत्मा पूरी तरह से कहीं गई नहीं थी, बल्कि किसी कोने में छिपकर उनकी हर बात सुन रही थी।
फादर की आंखें सुधीर पर टिकी हुई थीं, जैसे वह किसी पुराने ख्वाब को फिर से जी रहे हों। उनकी आवाज भारी हो गई, जब उन्होंने कहा, "सुधीर, यह सच है? क्या यह तुम ही हो?"
सुधीर ने गहरी सांस ली, उसकी आंखों में थकान और पछतावा साफ झलक रहा था। उसने कहा, "हां, फादर। आपने मुझे पहचान लिया? मैं तो इतना बदल चुका हूं कि मेरा सबसे अच्छा दोस्त भी मुझे पहचानने से इनकार कर चुका है।"
फादर की आंखों में आंसू उमड़ आए। उन्होंने धीरे से कहा, "तू मेरा बेटा है। मैं तुझे कैसे नहीं पहचानूंगा? चाहे तू कितना भी बदल जाए, मैं तुझे हमेशा पहचानूंगा।" उनकी आवाज में गहरा दर्द था।
सुधीर की आवाज धीमी हो गई, जैसे वह अतीत के किसी कोने में खो गया हो। उसने कहा, "मां कैसी हैं, फादर? क्या वह ठीक हैं?"
फादर का चेहरा अचानक उदासी से भर गया। उन्होंने भारी मन से कहा, "तेरी मां... तेरे जाने के बाद ही दम तोड़ गई। उसे यकीन नहीं हुआ कि तू उसे छोड़कर चला गया है। वह आखिरी सांस तक तेरा इंतजार करती रही। एक मां अपने बेटे के बिना कैसे जी सकती है, सुधीर?"
सुधीर के चेहरे पर गहरा दर्द उभर आया। उसकी आंखें भर आईं, और वह धीरे से बुदबुदाया, "मां..."
फादर ने अपनी आवाज को संभालते हुए कहा, "उसने तुझे हमेशा माफ किया, सुधीर। उसने कभी तेरे लिए बुरा नहीं सोचा। पर तेरे जाने का गम उसने सहन नहीं कर पाया। तेरे बिना उसकी जिंदगी अधूरी रह गई।"
कमरे में एक भारी खामोशी छा गई। सुधीर की आंखों से आंसू बहने लगे, और वह अपना चेहरा हाथों में छुपा कर बैठ गया। फादर ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, "सुधीर, अब भी देर नहीं हुई है। जो हुआ, उसे बदल नहीं सकते, लेकिन आगे जो होगा, वह तेरे हाथ में है।"
कमरे में अजीब-सी ठंडक और गहरा सन्नाटा छाया हुआ था, जैसे वक्त भी इस दर्दनाक मंजर को महसूस कर रहा हो।
सुधीर ने अपनी आंखों से आंसू पोंछते हुए बातों का रुख बदलने की कोशिश की। उन्होंने धीमी लेकिन गंभीर आवाज में फादर से पूछा, "रीतिका... रीतिका आपको कहां और कैसे मिली थी? वह यहां चर्च तक कैसे आई?"
फादर ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "वह चर्च में आई थी, सुधीर। बहुत डरी हुई और सहमी हुई थी। उसने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उसकी आंखों में दर्द और डर साफ झलक रहा था। मैंने उसे यहीं रखा और उसकी देखभाल की। लेकिन इन सब सवालों को छोड़ो, सुधीर। अभी यह बताओ, तुम अब कैसे हो? क्या तुमने अपनी जिंदगी को फिर से बसाने की कोशिश की?"
सुधीर ने गहरी सांस ली और थकी हुई आवाज में कहा, "मैंने कोशिश की थी, फादर। माया के जाने के बाद, मैंने सोचा था कि अपनी जिंदगी को एक नई शुरुआत दूं। लेकिन माया का साया मेरी जिंदगी से कभी गया ही नहीं। वह हमेशा मेरे आस-पास रही, मेरे ख्यालों में, मेरे डर में। और अब... अब वह सच में वापस आ गई है।"
इसी बीच, रीतिका कमरे में आ गई। उसकी आंखों में गुस्सा और दर्द था। उसने सीधे सुधीर की ओर देखा और दृढ़ आवाज में कहा, "पापा, मुझे आपसे बात करनी है।"
सुधीर ने उसकी ओर देखा और धीरे से कहा, "बोलो, बेटा।"
रीतिका ने बिना झिझके कहा, "पापा, पुलिस को यहां बुलाइए। माया के हत्यारे का पता लगाना होगा। हमें सच्चाई तक पहुंचना होगा।"
सुधीर ने कुछ पल तक उसे देखा, फिर धीमे स्वर में कहा, "ठीक है, बेटा। पुलिस को बुलाते हैं। लेकिन... माया को कौन समझाएगा कि मैं उसका खूनी नहीं हूं? उसका दर्द और गुस्सा इतना गहरा है कि उसे सच्चाई सुनाई नहीं देती।"
रीतिका ने अपनी आवाज में दृढ़ता लाते हुए कहा, "यह सब बाद में देखा जाएगा, पापा। लेकिन माया को इंसाफ चाहिए। और हमें यह पता लगाना होगा कि असली हत्यारा कौन है। अगर सच्चाई सामने आएगी, तो शायद माया की आत्मा को शांति मिले।"
कमरे में एक बार फिर सन्नाटा छा गया। फादर ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "रीतिका सही कह रही है, सुधीर। सच सामने लाना जरूरी है। सिर्फ यही एक तरीका है, जिससे यह सब खत्म हो सकता है।"
सुधीर ने भारी मन से सिर हिलाया, लेकिन उसके दिल में एक अजीब सा डर बैठा हुआ था। उसकी आंखों में सवाल थे—क्या सच में यह माया की आत्मा को शांति दिला पाएगा? या फिर यह बस एक और तूफान की शुरुआत है?
🔥 क्या सुधीर की बताई कहानी सच है, या उसके पीछे अब भी कोई गहरी साज़िश छिपी हुई है? क्या असली हत्यारा वही है... या कोई और?
👁️🗨️ माया की आत्मा अब भी छुपकर सब कुछ देख रही है—क्या वह इंसाफ पाकर शांत हो जाएगी, या उसका बदला अभी बाकी है?
⚖️ रीतिका और पुलिस की यह खोज किस सच्चाई को उजागर करेगी? क्या यह अंत है, या एक और आत्मा के जागने की शुरुआत?
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........