"रांझना  with सफर"- 10

 

रात का समय था, जब रितिका सोफिया से मिलने के लिए उसके पास पहुंची। उसे अंदर से सिसकने की आवाजें सुनाई दीं। जैसे ही रितिका कमरे में पहुंची, उसने देखा कि सोफिया रो रही थी। रितिका को देखकर सोफिया ने अपना सिर ऊपर उठाया, और जो दृश्य उसके सामने था, वह असहनीय था। कुछ देर के लिए रितिका के कदम रुक गए, वह हैरान थी। फिर उसने खुद को संभाला और सोफिया के पास जाकर पूछा, "क्या हुआ सोफिया?"

सोफिया का चेहरा कांप रहा था, और वह बस इतनी ही कह पाई, "माया..."

रितिका को समझ में आ गया कि माया, जो सोफिया के अंदर समा चुकी थी, उसे परेशान कर रही थी। तभी माया ने गुस्से में आकर रितिका से कहा, "मैं तेरे पूरे खानदान को खत्म कर दूंगी!"

रितिका डरते हुए बोली, "मुझे मालूम है कि तुम अपने प्यार का बदला ले रही हो, लेकिन तुम इस छोटी सी बच्ची को क्यों परेशान कर रही हो? वह तो कुछ नहीं जानती।"

माया ने और भी जोर से चिल्लाते हुए कहा, "वह मेरी बच्ची है, और मैं वही करूंगी जो मुझे सही लगे!"

रितिका ने शांत स्वर में कहा, "वह तो सिर्फ एक मासूम बच्ची है, माया। वह समझ नहीं सकती कि क्या हो रहा है। कृपया इसे छोड़ दो।"

लेकिन माया ने रितिका की बातों को नजरअंदाज किया और वह गायब हो गई। तभी सोफिया बेहोश होकर गिर पड़ी। रितिका ने तुरंत सोफिया को संभाला और उसे बिस्तर पर लिटा दिया। वह कुछ देर तक सोचती रही, फिर धीरे-धीरे वहां से चली गई, लेकिन उसका मन बहुत विचलित था। उसने खुद से वादा किया कि वह किसी भी हाल में सोफिया की मदद करेगी।

 

अंधेरे में, जब रीतिका ने अचानक महसूस किया कि उसका हाथ कोई मजबूती से पकड़ चुका है और उसकी मुँह को धीरे से बंद कर दिया गया है, तो एक सिहरन उसके जिस्म में दौड़ गई। उसकी आँखों में डर था, लेकिन जब उसने उस हाथ को पहचाना, तो दिल ने एक गहरी राहत महसूस की — यह साहिल था।

"साहिर, तुम मुझे क्यों परेशान करते हो?" रीतिका ने धीरे से कहा, उसकी आवाज में गुस्सा था, लेकिन उस गुस्से के नीचे एक अजीब सा दर्द भी था।

साहिल की आँखों में अब कोई शैतानी नहीं, बस एक गहरी उदासी थी। वह रीतिका को कुछ देर तक चुपचाप देखता रहा, जैसे वह हर पल उस पर और अपने दिल पर हावी होता जा रहा हो। उसकी आँखों में एक रहस्य था, एक खालीपन, जो शब्दों से बयाँ नहीं किया जा सकता था।

कुछ देर बाद, वह धीरे से बोला, "बस... केस खत्म होते ही मैं हमेशा के लिए तुमसे दूर चला जाऊँगा..." उसकी आवाज में एक गहरी सर्दी थी, जैसे वह अपनी पूरी दुनिया को छोड़कर जाने वाला हो।

रीतिका की आँखों में एक पल के लिए आँसू थे, लेकिन उसने उन्हें बड़ी मुश्किल से छुपाया। "तो जल्दी खत्म कर लो ये केस, मेरी यही कामना है," वह बोली, लेकिन उसकी आवाज में एक अविश्वसनीय दर्द था, जैसे वह खुद को ही भूल चुकी हो, जैसे उसके दिल के टुकड़े साहिल के जाने से टूट रहे थे।

साहिल ने रीतिका की आँखों में देखा, और उसकी नज़रों में छुपा हुआ दर्द उसने भी महसूस किया। वह जानता था कि वह इस रास्ते पर चलकर उसे खो देगा, लेकिन वह फिर भी रीतिका से दूर होने की बात कह रहा था। दोनों के दिलों में अब एक खालीपन था, एक खामोशी, जो प्यार से कहीं ज्यादा गहरी थी। वह उसे जाने नहीं देना चाहता था, लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि वह उसे छोड़ने पर मजबूर था।

और उस चुप्पी में, उनके दिलों ने एक-दूसरे से अनकहे वादे किए, एक-दूसरे को प्यार किया, और फिर भी एक दूसरे से अलग हो गए।

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रीतिका अपने कमरे में अकेली बैठी थी, उसकी आंखों में उलझन और मन में ढेरों सवाल थे। माया की कहानी समझना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। "माया के साथ ऐसा क्यों हुआ? अगर पापा सच बोल रहे हैं, तो माया और उसके परिवार को किसने मारा?" उसने खुद से सवाल किया।

उसके दिमाग में बार-बार वही खौफनाक पल घूम रहे थे जब माया की आत्मा ने उसके पापा पर इल्जाम लगाया था। "क्या पापा झूठ बोल रहे हैं? या फिर माया को सच में किसी और ने मारा?"

रीतिका ने गहरी सांस ली और अपनी सोच को संयमित करने की कोशिश की। "अगर पापा निर्दोष हैं, तो उस रात का सच क्या है? क्या माया का गुस्सा गलत दिशा में जा रहा है? या फिर कोई ऐसी कड़ी है, जो हममें से किसी को नहीं पता?"

उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। हर छोटी बात अब उसे रहस्यमयी और डरावनी लग रही थी। "क्या माया का असली हत्यारा अब भी कहीं छिपा हुआ है? और अगर ऐसा है, तो वह कौन है? क्या वह भी यहीं आसपास है?"

कमरे में फैली अजीब-सी खामोशी उसके सवालों का जवाब देने में असमर्थ थी। लेकिन रीतिका जानती थी कि अगर उसे माया की आत्मा को शांति दिलानी है, तो उसे सच तक पहुंचना ही होगा।

वह बुदबुदाई, "मुझे माया को इंसाफ दिलाना होगा। पर यह तभी होगा, जब हम इस गुत्थी को सुलझा पाएंगे।" उसने ठान लिया कि वह हर संभव कोशिश करेगी। चाहे इसके लिए उसे खुद माया की आत्मा से सीधे बात क्यों न करनी पड़े।

रीतिका के मन में डर था, लेकिन साथ ही एक अजीब-सा हौसला भी। "अगर कोई कड़ी छिपी है, तो मुझे उसे ढूंढना होगा। सच तक पहुंचना ही माया की आत्मा को शांति दिलाने का एकमात्र तरीका है।"

रीतिका ने हिम्मत जुटाई और फादर से बात करने के लिए उनके कमरे में गई। वहां मोमबत्तियों की मद्धम रोशनी और एक अद्भुत सन्नाटा फैला हुआ था। फादर प्रार्थना में मग्न थे, लेकिन रीतिका के चेहरे पर चिंता देखकर उन्होंने अपनी प्रार्थना रोक दी।

"क्या हुआ, बेटी? तुम कुछ कहना चाहती हो?" फादर ने नरम स्वर में पूछा।

रीतिका ने धीरे से कहा, "फादर, क्या आपके पास कोई तरीका है जिससे माया को बुलाया जा सके? मुझे उससे सीधे बात करनी है। मुझे उसकी कहानी पूरी तरह समझनी होगी, ताकि मैं जान सकूं कि उसके साथ असल में क्या हुआ था।"

फादर का चेहरा गंभीर हो गया। उन्होंने कुछ देर सोचा और कहा, "माया की आत्मा बहुत अशांत है। उसे बुलाने का मतलब है कि हम उसकी पीड़ा और क्रोध को फिर से उकसाएंगे। यह खतरनाक हो सकता है, रीतिका। आत्माओं को बुलाने के लिए विशेष अनुष्ठानों की आवश्यकता होती है, और अगर इसमें कोई गलती हुई, तो परिणाम भयावह हो सकते हैं।"

रीतिका ने दृढ़ता से कहा, "मैं हर खतरे के लिए तैयार हूं, फादर। मुझे माया से बात करनी ही होगी। अगर उसकी आत्मा को शांति दिलानी है, तो यह करना जरूरी है।"

फादर ने गहरी सांस ली और कहा, "ठीक है, लेकिन यह अनुष्ठान आसान नहीं होगा। हमें कुछ चीजों की आवश्यकता होगी—उस जगह की मिट्टी जहां माया की मौत हुई थी, उसकी कोई व्यक्तिगत वस्तु, और सबसे महत्वपूर्ण, मजबूत आत्मबल। यह अनुष्ठान सिर्फ सत्य को उजागर करने के लिए किया जा सकता है।"

रीतिका ने तुरंत पूछा, "उसकी मौत की जगह की मिट्टी और व्यक्तिगत वस्तु कहां से मिल सकती है?"

फादर ने गंभीर स्वर में कहा, "तुम्हें उस घर में जाना होगा जहां यह सब हुआ था। लेकिन याद रखना, वह जगह अब भी माया के गुस्से और दर्द का केंद्र है। वहां जाना आसान नहीं होगा।"

रीतिका ने फादर की बात सुनी और मन ही मन अपनी हिम्मत को मजबूत किया। "मैं तैयार हूं, फादर। मुझे वह सब लाने दीजिए जो माया को शांति दिलाने में मदद करे।"

फादर ने सहमति में सिर हिलाया और कहा, "तुम्हारी हिम्मत तुम्हारे पापा और माया, दोनों के लिए निर्णायक होगी। जाओ, पर सतर्क रहो।"

अब रीतिका के पास सिर्फ एक ही रास्ता था—माया की सच्चाई तक पहुंचने के लिए उस खौफनाक घर का सामना करना।

माया का घर अब समय और त्रासदी का खंडहर बन चुका था। दूर से ही यह जगह अजीब और भयावह लगती थी, जैसे वहां कोई अदृश्य शक्ति हर आने-जाने वाले को देख रही हो। घर के चारों ओर घनी झाड़ियां उग आई थीं, जो इस जगह को और भी रहस्यमय बना रही थीं। दरवाजे पर लटके पुराने ताले को जंग खा चुका था, और खिड़कियों के शीशे टूटे हुए थे, जिससे अंदर की झलक मात्र से डर का एहसास होता था।

घर का मुख्य दरवाजा भारी लकड़ी का बना हुआ था, जो अब समय के साथ सड़ चुका था। उसके ऊपर एक पुराना घंटा लटक रहा था, जो हवा में कभी-कभी धीमी आवाज में बज उठता था, जैसे वहां कुछ अनकहा याद दिला रहा हो।

अंदर कदम रखते ही माहौल बदल जाता था। फर्श पर बिखरी धूल और टूटे हुए फर्नीचर इस बात के गवाह थे कि यह घर कई सालों से वीरान था। दालान के एक कोने में एक पुरानी झूला कुर्सी रखी हुई थी, जो अपने आप हिलती प्रतीत होती थी। दीवारों पर फैली दरारें और उन पर गहरे लाल निशान एक खौफनाक कहानी बयां कर रहे थे।

डाइनिंग रूम की मेज पर अब भी टूटे हुए कांच और बिखरे हुए बर्तन पड़े थे, जैसे वहां किसी ने खाने के बीच में ही सब कुछ छोड़ दिया हो। कमरे के बीचोंबीच एक बड़ा काले रंग का दाग था, जो शायद खून का निशान था।

घर के ऊपर के हिस्से में जाने वाली सीढ़ियां चरमराती थीं, मानो हर कदम पर यह एहसास दिला रही हों कि वह ज्यादा वजन सहन नहीं कर पाएंगी। ऊपर का गलियारा और भी डरावना था—हर दरवाजा बंद, लेकिन दरारों के पीछे से अंधेरे की गहराई झांकती थी।

माया का कमरा सबसे आखिरी में था। उसकी दरवाजे पर अब भी एक पुरानी नेमप्लेट लटकी हुई थी, जिस पर "माया" का नाम लिखा था। अंदर का माहौल एक अजीब-सी ठंडक और गहरी उदासी से भरा हुआ था। दीवारों पर अब भी कुछ तस्वीरें लटकी हुई थीं, जिन पर समय की धूल और उदासी की परतें चढ़ चुकी थीं।

बिस्तर अब भी वैसा ही था, जैसे किसी ने उसे आखिरी बार इस्तेमाल किया हो। तकिए पर एक हल्का सा निशान था, जो शायद माया के आंसुओं का गवाह था। कमरे के कोने में रखी एक अलमारी आधी खुली हुई थी, जिसमें से एक लाल दुपट्टा झांक रहा था—माया की आखिरी याद।

यह घर केवल ईंट और पत्थर से नहीं बना था, बल्कि इसमें बसी हुई थीं माया की चीखें, उसका दर्द और वह अनकही कहानी, जिसे अब रीतिका को समझना था।

रीतिका ने फादर की बातों को मन में दोहराते हुए माया के घर में प्रवेश करने का फैसला किया। जैसे ही उसने भारी लकड़ी के दरवाजे को धक्का दिया, वह धीमे चरमराहट के साथ खुला। अंदर कदम रखते ही ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे से टकराया, मानो किसी ने उसके स्वागत में अपना अंधकार फैला दिया हो।

अजीब सी बेचैनी उसकी रगों में दौड़ने लगी। हर कदम के साथ वह घर के अंदर गहराई तक जाती गई, और अजीबोगरीब आवाजें उसकी बेचैनी को और बढ़ा रही थीं।

"धप्प... धप्प... धप्प..." जैसे किसी के कदमों की आवाजें पीछे से आ रही हों। उसने पलटकर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था। दीवारों पर लगी दरारों से हवा गुजर रही थी, जिससे निकलने वाली सिसकारियां मानो किसी के दर्द और गुस्से का बयान कर रही थीं।

डाइनिंग रूम में पहुंचते ही उसकी नजर उस खून के बड़े दाग पर पड़ी। वह सहम गई। उसकी आंखों के सामने धुंधली छवियां तैरने लगीं—जैसे किसी ने वहां संघर्ष किया हो।

एक कोने में रखी झूला कुर्सी धीमे-धीमे हिल रही थी, जबकि वहां कोई नहीं था। "क्या यह मेरा वहम है, या माया सचमुच यहीं कहीं है?" उसने खुद से सवाल किया।

वह हिम्मत जुटाकर सीढ़ियों की ओर बढ़ी। हर कदम पर सीढ़ियां चरमराती थीं, मानो वे उसका वजन सहने से इनकार कर रही हों। ऊपर पहुंचने पर गलियारे में एक अजीब-सी ठंडक महसूस हुई। एक-एक दरवाजा बंद था, लेकिन उनके पीछे से धीमी आवाजें आती थीं।

"आजा... रीतिका... तेरा इंतजार है..." एक भयानक फुसफुसाहट ने उसे ठिठका दिया। उसकी धड़कन तेज हो गई, लेकिन उसने खुद को संभाला और सबसे आखिरी कमरे की ओर बढ़ी।

माया का कमरा।

दरवाजे पर लिखा उसका नाम अब भी साफ नजर आ रहा था। रीतिका ने हिम्मत जुटाई और दरवाजा खोला। कमरे में घुसते ही उसके सामने का माहौल बिल्कुल अलग था। ठंडक अचानक बढ़ गई, और लाल दुपट्टा हवा में लहराता दिखा।

अचानक, कमरे के कोने से एक परछाई उभरी। माया की झलक दिखी। उसके बाल बिखरे हुए थे, और उसकी आंखें जलती हुई लाल थीं। उसने रीतिका की ओर देखा और धीरे-धीरे मुस्कुराई।

"तुम आ ही गई, रीतिका। मुझे पता था, तुम मेरे दर्द को समझने आओगी। लेकिन क्या तुम सच को सहन कर पाओगी?" माया की आवाज कमरे में गूंज उठी।

रीतिका का शरीर कांपने लगा, लेकिन उसने हिम्मत करते हुए कहा, "माया, मैं तुम्हारे सच को जानने आई हूं। बताओ, उस रात क्या हुआ था।"

कमरा अचानक से और भी ठंडा हो गया। माया की परछाई गहराने लगी, और उसके चारों ओर हवा का अजीब-सा दबाव बढ़ने लगा। रीतिका ने महसूस किया कि यह घर अब उसे अपने रहस्यों से रूबरू कराने के लिए तैयार हो रहा था।

रीतिका ने माया के दर्द और सच्चाई को पूरी तरह समझने के लिए उस दूसरी दुनिया में जाने का फैसला कर लिया। फादर ने उसे इस निर्णय के खतरों के बारे में चेताया, लेकिन रीतिका का संकल्प अटूट था। उसने कहा, "अगर मैं माया की सच्चाई जानने में असफल रही, तो यह कहानी फिर से अधूरी रह जाएगी। मैं यह जोखिम उठाने के लिए तैयार हूं।"

साहिर, जो छिपकर रीतिका का पीछा कर रहा था, यह सुनकर सामने आ गया। उसने घबराते हुए कहा, "रीतिका, तुम यह सब अकेले नहीं कर सकती। अगर तुम उस दुनिया में जाओगी, तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा। मैं तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकता।"

रीतिका ने पहले साहिल को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसकी दृढ़ता देखकर वह मान गई। फादर ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "यह रास्ता आसान नहीं है। उस दुनिया में जाने के दो ही तरीके हैं: या तो मृत्यु के माध्यम से, या फिर वहां से कोई आत्मा तुम्हें लेकर जाए। माया ने खुद तुम्हें वहां ले जाने का प्रस्ताव दिया है, लेकिन याद रखना, वहां समय और स्थान के नियम अलग हैं। हर कदम सोच-समझकर उठाना।"

माया की आत्मा ने अपनी मौजूदगी जताते हुए कहा, "मैं तुम्हें उस दुनिया में ले जाऊंगी, लेकिन याद रखना, वहां केवल वही बचेगा जो सत्य का सामना कर सके। झूठ और डर को यह दुनिया सहन नहीं करती।"

माया के चारों ओर अंधेरा गहराने लगा, और उसके इशारे पर कमरे का वातावरण बदल गया। हवा अचानक ठंडी हो गई, और चारों ओर से अजीबोगरीब फुसफुसाहटें आने लगीं।

"तुम दोनों तैयार हो?" माया ने पूछा।

 

 

 

 

 

 

क्या माया की आत्मा वाकई सिर्फ बदला ले रही है, या वह किसी और बड़े रहस्य को उजागर करने की कोशिश कर रही है? उस रात ठीक 2:13 बजे माया के कमरे में ऐसा क्या हुआ था, जिसे जानना अब भी किसी को मना है? क्या फादर सच में रीतिका की मदद कर रहे हैं, या वो भी उस राज़ का हिस्सा हैं जिसे सब छुपा रहे हैं?

 

आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........