रीतिका और साहिल ने एक-दूसरे की ओर देखा और सिर हिलाया। माया ने अपना हाथ रीतिका और साहिल की ओर बढ़ाया। जैसे ही उन्होंने उसका हाथ पकड़ा, एक जोरदार हवा का झोंका आया और सबकुछ धुंधलाने लगा।
अचानक, तीनों एक नई, अजीब सी जगह पर खड़े थे। वहां का आसमान गहरा लाल था, और हर दिशा में सिर्फ सन्नाटा और धुंध फैली हुई थी। जमीन काली और ठोस थी, मानो वह किसी मृत संसार का हिस्सा हो। दूर कहीं से चीखों की गूंज सुनाई दे रही थी, जो माहौल को और डरावना बना रही थी।
माया ने अपनी आवाज में गूंजते क्रोध और दर्द के साथ कहा, "यह है मेरी दुनिया। यहां सच और झूठ के बीच की हर दीवार गिर जाती है। अब तुम्हें मेरे साथ चलकर वह देखना होगा, जो मैंने झेला है। तैयार रहो, क्योंकि यहां हर कदम पर तुम्हारी हिम्मत की परीक्षा होगी।"
रीतिका और साहिल ने माया का अनुसरण किया, जानते हुए कि यह यात्रा उनकी जिंदगी की सबसे भयानक और चुनौतीपूर्ण यात्रा होगी।
यह दुनिया एक अजीबोगरीब खामोशी और अनजान डर से भरी हुई थी। चारों ओर भटकती आत्माएं अपनी-अपनी कहानियों के बोझ तले दबकर घुट रही थीं। हवा में उनके कराहने और सिसकने की आवाजें सुनाई देती थीं, जैसे वे अपनी सच्चाई किसी को सुनाना चाहती हों, लेकिन उनकी आवाजें उस भयावह वातावरण में कहीं खो जाती थीं।
माया, जो अब रीतिका और साहिल के साथ थी, धीरे-धीरे अपने अतीत के दर्दनाक दृश्य प्रकट करने लगी। उसने अपनी टूटी हुई, कांपती आवाज में कहा, "देखो, यही वह रात थी जिसने मेरी जिंदगी को खत्म कर दिया और मेरी आत्मा को इस अंधेरे में कैद कर दिया।"
पलक झपकते ही रीतिका और साहिल के सामने वह मंजर उभरने लगा।
एक खूबसूरत घर दिखाई दिया, जो अब खून से लथपथ था। कमरे में माया के माता-पिता की लाशें पड़ी थीं। उनकी आंखें खुली थीं, जैसे मरते समय उन्होंने किसी भयानक सच्चाई को देखा हो। कोने में रुद्र की बेजान देह थी, और उसके सीने पर चाकू का गहरा निशान था। माया खुद बीच में खड़ी थी, अपनी लाश के रूप में, उसकी आंखों में अनकहा दर्द और गुस्सा झलक रहा था।
रीतिका ने सिर पकड़ लिया। उसका मन भारी हो गया, और उसने दर्द भरी चीख निकाली, "यह सब कैसे हुआ? यह सब इतना भयानक क्यों है?" उसकी आवाज दर्द और घबराहट से कांप रही थी।
साहिल ने अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश की, लेकिन मंजर इतना भयावह था कि उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। उसने कांपते हुए कहा, "कोई इतना निर्दयी कैसे हो सकता है? यह सब किसने किया?"
माया की आत्मा ने एक ठंडी, भयानक हंसी के साथ जवाब दिया, "यह वही सवाल है, जिसका जवाब मुझे भी चाहिए। लेकिन मेरी आत्मा को सबसे ज्यादा तकलीफ इस बात की है कि मैं मरते समय भी अपने परिवार और रुद्र को नहीं बचा सकी।"
मंजर और गहराता गया। खून से सने हुए फर्श पर माया की आत्मा ने अपनी अतीत की छवि की ओर इशारा किया, जहां वह दर्द और चीखों के बीच अपने आखिरी पलों में संघर्ष कर रही थी। हर दृश्य रीतिका और साहिल के दिलों में एक अजीब सी टीस पैदा कर रहा था।
रीतिका ने साहस जुटाकर कहा, "माया, हम तुम्हारी मदद करेंगे। लेकिन हमें यह जानना होगा कि उस रात क्या हुआ था। क्या तुमने कुछ देखा था, जिसने यह सब किया?"
माया ने गहरी, दर्द भरी सांस लेते हुए कहा, "उस रात सबकुछ धुंधला था। मैं केवल इतना जानती हूं कि जो भी यह सब कर रहा था, उसकी आंखों में नफरत की आग थी। और वह कोई अजनबी नहीं था। वह किसी न किसी रूप में हमारा अपना था।"
यह सुनकर रीतिका और साहिल को झटका लगा। इस अंधेरी दुनिया में अब सच की परतें खोलने की जिम्मेदारी उनकी थी, लेकिन यह सफर केवल शुरुआत थी।
रितिका को चीखती हुई आवाज़ें अब सहन नहीं हो रही थीं। उसकी सांसे तेज़ हो चली थीं, दिल धड़कनों से बाहर आने को था। कमरे में अजीब-सी ठंडक थी, और हर कोने से वही आवाज़ गूंज रही थी। धुंधली आकृति माया के हत्यारे की दीवार पर उभरी, और उसे देखते ही रितिका के होश उड़ गए।
"यह... यह सच नहीं हो सकता," रितिका ने कांपते हुए कहा।
उसकी आंखें फटी रह गईं। उसने अपने कान बंद कर लिए, लेकिन आवाज़ें और तेज़ होती जा रही थीं। वह आकृति अब और स्पष्ट हो रही थी। उसने ने जैसे ही उसे देखा, उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ।
"नहीं! नहीं!" वह चीख पड़ी। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली। कमरे में सन्नाटा छा गया, लेकिन उसकी चीखों की गूंज अब भी उसके कानों में रह गई थी।
रीतिका को यह सच हजम करना मुश्किल हो रहा था। वह एक कोने में बैठकर गहरी सांसें ले रही थी, लेकिन उसकी आंखों से मंजर हट ही नहीं रहा था। माया के अतीत के हर दृश्य में कातिल का चेहरा धीरे-धीरे साफ होने लगा था। जो चीज अब तक धुंधली थी, वह अब स्पष्ट हो चुकी थी—वह चेहरा उसकी अपनी माँ से मिलता-जुलता था।
"यह... यह कैसे हो सकता है?" रीतिका की आवाज कांप रही थी। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, और उसके हाथ-पैर ठंडे हो गए थे।
साहिल ने यह सुनते ही घबराकर कहा, "रीतिका, तुम क्या कह रही हो? ऐसा कैसे हो सकता है? यह जरूर तुम्हारी आँखों का धोखा है।"
लेकिन रीतिका का मन बार-बार उसी चेहरे की ओर लौट रहा था। उसने कई बार मंजर को दोहराकर देखा था, और हर बार वही नतीजा निकल रहा था। उसने साहिल की ओर देखा और रुंधी हुई आवाज में कहा, "साहिर, यह मेरी माँ है। वह चेहरा, वह हाव-भाव... मैं इसे पहचान सकती हूँ। लेकिन ऐसा क्यों? मेरी माँ माया के परिवार को क्यों मारना चाहेगी?"
माया की आत्मा यह सब सुन रही थी। उसकी आंखों में पहले से अधिक गुस्सा और नफरत भड़क उठी। उसने भयानक आवाज में कहा, "तो यह तुम्हारी माँ थी? वही जिसने मेरे परिवार को मुझसे छीना? वही जिसने मुझे मार डाला? मैं उसे कभी माफ नहीं करूंगी।"
रीतिका ने घबराकर माया को समझाने की कोशिश की, "नहीं, माया। मैं अभी यकीन से कुछ नहीं कह सकती। मुझे और देखना होगा, और सच जानना होगा। अगर मेरी माँ ने यह सब किया, तो मैं खुद उसे सबके सामने लाऊंगी। लेकिन कृपया, मुझे थोड़ा समय दो।"
माया ने ठंडी हंसी के साथ कहा, "तुम्हारे पास समय कम है, रीतिका। सच छिपा नहीं रह सकता। अगर तुम्हें अपने माँ-बाप के बीच यह खाई देखनी है, तो सच को सहने की ताकत भी रखनी होगी।"
रीतिका की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा, "मैं किसी भी हद तक जाऊंगी, माया। सच जानना और तुम्हारी आत्मा को शांति देना ही मेरा मकसद है।"
साहिल ने रीतिका का हाथ पकड़कर कहा, "हम दोनों मिलकर यह सच ढूंढेंगे। तुम्हें अकेले नहीं लड़ना पड़ेगा।"
अब, रीतिका को न सिर्फ माया के दर्द का सामना करना था, बल्कि अपनी माँ और माया के बीच छिपे इस गहरे रहस्य को भी उजागर करना था। यह सफर अब पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक और भावनात्मक हो चुका था।
रहस्यमयी आवाजें अब रीतिका के लिए सहन करना बेहद मुश्किल हो गई थीं। हवा में अजीब सी सरसराहट थी, जैसे कोई उसके कानों में लगातार फुसफुसा रहा हो। हर शब्द, हर आवाज उसके दिल में एक अजीब सी घबराहट और डर पैदा कर रही थी। उसके सिर में तेज़ दर्द हो रहा था, और जैसे-जैसे वह इन आवाजों को सुन रही थी, उसका सिर और भारी हो रहा था।
क्या रीतिका की माँ सच में माया के परिवार की हत्यारी है, या वह किसी गहरे षड्यंत्र का हिस्सा है? 🔍क्या माया की आत्मा बदले की आग में अंधी हो रही है, और क्या वह रीतिका को भी नुकसान पहुँचा सकती है? 👁️🔥क्या रीतिका और साहिल समय रहते उस रहस्य तक पहुँच पाएंगे जो माया की आत्मा को शांति दे सकता है? ⏳
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