फादर की निगाहें रीतिका पर गहरी थीं, जैसे कुछ महसूस कर रहे थे। अचानक, रीतिका के चेहरे पर एक भयानक मुस्कान आई
, जो फादर को बेचैन कर गई। वह समझ गए थे कि रीतिका के साथ माया की आत्मा भी उसके घर जा रही है।
"माया...?" फादर ने धीरे से बुदबुदाया, उसकी आँखों में कुछ समझने की कोशिश थी।
रीतिका ने एक पल के लिए उसकी ओर देखा, और फिर सामने की खिड़की से बाहर का दृश्य देखने लगी। उसका चेहरा अब शांत था, लेकिन उसके दिल में एक अनकहा डर और उलझन था। उसे लग रहा था कि अब कुछ बड़ा होने वाला है। माया की आत्मा, जो अब उसके साथ थी, क्या सच में कुछ और चाहता था? क्या वह भी रीतिका की मदद करने आई थी, या फिर वह कुछ और हासिल करना चाहती थी?
गाड़ी के अंदर एक अजीब सी चुप्प थी। फादर समझ चुके थे कि रीतिका ने अब माया को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है, और अब इस रहस्य को सुलझाना आसान नहीं होगा।
"तुम ठीक हो, रीतिका?" फादर ने अपनी चिंता को दबाते हुए पूछा, लेकिन रीतिका का ध्यान कहीं और था।
"क्या माया मुझे कुछ और दिखाने वाली है?" रीतिका ने मन ही मन सोचा। उसकी आत्मा में एक भारी सवाल था, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी वही भयानक मुस्कान थी, जो उसने फादर को पहले दिखाई थी।
अब रीतिका को पता था कि वह जिस रास्ते पर चल रही थी, वह न केवल माया के अतीत से जुड़ा हुआ था, बल्कि उसकी खुद की किस्मत भी उससे जुड़ी थी। और शायद, यही वह मोड़ था, जहां उसे अपनी माँ और माया के बीच का सच जानने की राह मिल सकती थी।
रीतिका के मन में सवालों के तूफान उठ रहे थे, और वह अब तक इस रहस्यमय यात्रा में घिर चुकी थी, जहां हर कदम पर अंधेरे और असमंजस का साया था। जैसे ही गाड़ी ने देवनन्द पूल को पार किया, रीतिका की आँखों के सामने एक अजीब सा दृश्य आया। पूल का पानी गहरे काले रंग में बदल चुका था, जैसे किसी बड़ी दुर्घटना का प्रतीक हो। आसमान में छाए बादल और हवाओं में घुली ठंडक जैसे किसी बड़े तूफान की चेतावनी दे रहे थे।
आशामन में बिन मौसम बिजली की चमक और बारिश की संभावना ने जैसे ही रीतिका के अंदर एक नई बेचैनी भर दी, वह एक बार फिर घबराकर उधर देखी। उसे यह महसूस हो रहा था कि कुछ बहुत बुरा होने वाला था। उसकी अंतरात्मा में गहरे भय और उलझन का समंदर था। वह चाहती थी कि ये सब बस खत्म हो जाए, लेकिन एक अजीब सी मजबूरी उसे आगे बढ़ने के लिए मजबूर कर रही थी।
गाड़ी के अंदर हवा की हल्की सी सरसराहट सुनाई दे रही थी, और जैसे ही गाड़ी ने अगले मोड़ पर जाना शुरू किया, आसमान से अचानक एक तेज़ बिजली कड़क उठी। रीतिका की आँखें पल भर के लिए बंद हो गईं, और जब उसने फिर से आँखें खोलीं, तो उसे एक खौफनाक ख्वाब जैसा अहसास हुआ। हर बूँद बारिश की तरह उसकी आत्मा को और अधिक भारी बना रही थी, जैसे उसे किसी गहरे रहस्य के आगे धकेल दिया गया हो।
"क्या सचमुच कुछ बुरा होने वाला है?" रीतिका ने मन ही मन सोचा। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, और वह जानती थी कि वह एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां से कोई वापस नहीं लौट सकता। उसे नहीं पता था कि वह किस अंधेरे से गुजरने वाली थी, लेकिन उसे यह महसूस हो रहा था कि माया की आत्मा उसके साथ है, और वह उसे कहीं और लेकर जाने वाली है।
आशामन की काली घटाएँ, अचानक बिजली का चमकना और तेज़ बारिश, यह सब संकेत दे रहे थे कि अब और नहीं रुक सकते थे। रीतिका को यह समझ में आ रहा था कि अब उसे अपने डर का सामना करना ही होगा, क्योंकि वह उस रहस्य की ओर बढ़ रही थी, जिसका उत्तर कहीं न कहीं उसकी माँ और माया की कहानियों में छुपा था।
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साहिल रीतिका को घूरते हुए समझने की कोशिश कर रहा था, कि आखिर वह क्या करेगी। उसकी आंखों में सवाल थे, और दिल में असमंजस। इस समय, वह रीतिका के साथ खड़ा था, लेकिन उसकी स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी, जैसे वह भी किसी अंधेरे रास्ते पर चल रहा हो। रीतिका और माया के बीच की लड़ाई, जिसमें एक मृत आत्मा शामिल थी, एक ऐसी उलझन बन गई थी, जिससे बाहर निकलना आसान नहीं था।
साहिल को समझ में नहीं आ रहा था कि वह रीतिका की मदद कैसे करे। वह जानता था कि रीतिका के अंदर गहरे दर्द और उलझन का तूफान था, लेकिन साथ ही वह यह भी जानता था कि रीतिका की खुशी और उसकी मानसिक शांति फिर से पाने के लिए उसे एक मजबूत कदम उठाना होगा। लेकिन सवाल यह था कि वह कैसे कर सकता था?
"क्या माया की आत्मा को शांति मिल पाएगी?" यह सवाल साहिल के मन में भी चकरा रहा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि रीतिका को खुश कैसे किया जाए, जब उसके अंदर इतने सवाल और दर्द जमा हो। रीतिका पहले जैसी खुश क्यों नहीं हो पा रही थी? क्या सच में उसकी माँ का कुछ लेना-देना था माया की मौत से?
साहिल की परेशानी इस सवाल में उलझी थी कि वह रीतिका को कैसे उस अंधेरे से बाहर निकाले, जो उसकी आत्मा पर भारी हो रहा था। वह जानता था कि वह रीतिका की पहले जैसी खुशी और मानसिक शांति को वापस लाने की कोशिश में है, लेकिन कैसे? क्या वह कभी उसे खुश देख पाएगा, जब तक वह इस दर्दनाक रहस्य का हल नहीं ढूंढ लेती?
साहिल खुद भी इस अनसुलझे रहस्य में फंसा हुआ था, और रीतिका की हालत देख उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कर सकता है। क्या रीतिका को माया के साथ किए गए अन्याय का सच पता चलने के बाद कभी शांति मिल पाएगी? या फिर यह कहानी एक और नए मोड़ पर जाएगी, जहां रीतिका को फिर से अपने जीवन का सबसे बड़ा सामना करना पड़ेगा?
साहिल की बेचैनी और मन की उलझन जैसे रीतिका के दर्द और भ्रम से मेल खा रही थी। वह जानता था कि यह यात्रा खत्म नहीं होगी, जब तक माया और रीतिका के बीच के सारे रहस्यों का खुलासा नहीं हो जाता।
लंबे रास्ते पार करने के बाद, रीतिका आखिरकार अपने घर वापस आई। घर की दहलीज़ को पार करते ही, उसकी आँखों के सामने बचपन के वो दिन फिर से ताज़ा हो गए, जब वह अपनी माँ के साथ हंसी-खुशी समय बिता रही थी। वह कमरे में घुसी और दीवारों पर टंगे पुराने फ़ोटो फ्रेम्स को देखा, जो उसके और उसकी माँ के खुशहाल पलों को समेटे हुए थे। हर तस्वीर में एक अलग ही कहानी थी, और रीतिका उन यादों में खो गई।
जैसे ही वह उन तस्वीरों को देखती, उसकी आँखों में आँसू छलक आए। उसे अपनी माँ की यादें बहुत सता रही थीं—वो हंसी, वो बातें, वो ख्याल, जो अब सिर्फ यादों में रह गए थे। उसकी माँ के बिना यह घर वीरान सा लगने लगा था। रीतिका को समझ नहीं आ रहा था कि वह जो अपने माँ के साथ बिताए हुए पल कभी नहीं भूल सकती थी, वो पल अब कभी वापस नहीं आएंगे।
उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे, और दिल में एक गहरी टीस महसूस हो रही थी। क्या वह कभी उस शांति और सुकून को वापस पा सकेगी, जो उसने अपनी माँ के साथ महसूस किया था? क्या वह कभी अपने माँ से वह सारे सवाल पूछ पाएगी, जो उसके मन में हैं? क्या माया के मामले का हल निकालने के बाद, वह अपनी माँ की यादों से निकल पाएगी और आगे बढ़ पाएगी?
सभी सवालों के बीच, रीतिका का दिल भारी था, और उसकी आत्मा भी शांति की तलाश में थी। लेकिन, क्या सचमुच उसे वह शांति मिल पाएगी, जिसे वह खोज रही थी?
रीतिका की माँ ने कई दिनों बाद अपनी बेटी को देखा, और रीतिका को गले लगाने के लिए दौड़ी। उसकी आँखों में खुशी और प्यार की झलक थी, लेकिन जैसे ही रीतिका ने अपनी माँ को देखा, उसकी मासूमियत धीरे-धीरे एक भयावह मुस्कान में बदलने लगी। वह मुस्कान, जो अब किसी और का गुस्सा लग रही थी। माया की आत्मा का क्रोध अब रीतिका पर हावी हो रहा था।
वह एक भयानक ताकत के साथ अपनी माँ को उठाने लगी। रीतिका की माँ, जो अभी भी सब कुछ नहीं समझ पा रही थी, कांपते हुए बोली, "बेटा, ये क्या कर रही हो? मैं तुम्हारी माँ हूँ, मैं हूँ, तुम्हारी अपनी !" लेकिन रीतिका की आँखों से अब जो दिख रहा था, वह एक अलग ही दुनिया से आया हुआ था, और उस दुनिया का गुस्सा रीतिका के भीतर समा गया था।
सुधीर ने जल्दी से रीतिका को रोकने की कोशिश की, लेकिन माया की आत्मा ने उसे भी अपनी शक्ति से उठाकर दूर फेंक दिया। वह उसे इतनी तेजी से धक्का दे रही थी, जैसे उसकी उपस्थिति अब रीतिका के लिए किसी खतरे से कम न हो।
रीतिका की माँ की आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि उसकी बेटी अब किस ताकत के नियंत्रण में है। उसकी बेटी से एक अजिब बदलाव हो चुका था, और वह केवल एक ही चीज़ समझ पा रही थी — माया का गुस्सा, जो अब रीतिका के रूप में उसके सामने खड़ा था।
"बेटा, मैं तुम्हारी माँ हूं... मुझे छोड़ दो!" वह मिन्नतें करती रही, लेकिन रीतिका की आँखों में अब वही डरावनी चमक थी, जो माया की आत्मा की थी।
सुधीर, जो अब खुद को बेबस महसूस कर रहा था, जानता था कि माया की आत्मा को शांति दिलाना ही एकमात्र रास्ता हो सकता था, लेकिन यह एक कठिन लड़ाई बन चुकी थी। अब यह तय करना था कि रीतिका को इस आत्मा के चंगुल से कैसे मुक्त किया जाए, और माया के गुस्से को शांति कैसे दी जाए।
माया ने गुस्से से भरे स्वर में कहा, "बोल, क्यों मारा मेरे परिवार को, मेरे प्यार रुद्र को? क्यों तुमने हमें खत्म कर दिया?" उसकी आवाज़ में इतना दर्द और गुस्सा था कि पूरी हवाओं में खौफ फैल गया। रीतिका की माँ, जो अभी भी इस बदलाव को समझने की कोशिश कर रही थी, घबराहट में बुदबुदाती रही, "मैं... मैं... कुछ नहीं जानती, बेटा! मैं नहीं जानती तुम क्या कह रही हो!"
रीतिका की आँखों में अब एक भयंकर ज्वाला सी जल रही थी। उसकी माँ की मासूमियत और प्यार का कोई असर नहीं हो रहा था। माया की आत्मा का गुस्सा, जो अब रीतिका के शरीर में समा चुका था, उसे किसी भी सच्चाई से परे कर चुका था। माया के सवालों का कोई जवाब नहीं था, क्योंकि रीतिका की माँ खुद को बेबस महसूस कर रही थी। वह जानती थी कि उसके परिवार और रुद्र के साथ क्या हुआ, और लेकिन वह यह भी नहीं समझ पा रही थी कि रीतिका को इतनी गहरी तकलीफ क्यों हो रही थी।
"बोल! क्यों मारा?" माया ने फिर से आवाज उठाई, और रीतिका का चेहरा अब पूरी तरह से एक भयानक मुस्कान में बदल गया, जो माया की आत्मा की क्रूरता का प्रतिबिंब था।
सुधीर ने धीरे-धीरे उठते हुए कहा, "माया, तुम जो भी पूछ रही हो, मैं सच बताऊंगा। लेकिन रीतिका को तुम्हारे इस गुस्से से बचाना हमारा काम है। तुम शांति से सुनो, और तुम्हारे परिवार का सच सामने लाऊंगा।"
लेकिन माया की आत्मा ने उसे बीच में ही काट दिया, "झूठ! तुम सब झूठ बोल रहे हो। अगर तुम सच नहीं बोलोगे, तो रीतिका को मेरे साथ उस दुनिया में हमेशा के लिए ले जाऊँगी।"
अब रीतिका की माँ और सुधीर दोनों समझ गए थे कि यह सिर्फ एक भूतिया संघर्ष नहीं था, बल्कि माया की आत्मा को शांति देने की एक आखिरी कोशिश थी।
रीतिका की माँ के आँसू अब रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, उनकी आँखों में सच्चाई और पछतावे का गहरा दर्द था। वह धीमे-धीमे अपने काले अतीत के बारे में बात करने लगी, और वह जो राज़ लंबे समय से छिपाए बैठी थी, वह अब सामने आ रहे थे। उसकी आवाज़ कांप रही थी, लेकिन उसका दिल भारी था, और वह रीतिका से सच को कहने के लिए मजबूर थी।
"मैं... मैं वह सब नहीं चाहती थी," रीतिका की माँ ने गहरे पछतावे के साथ कहा, "लेकिन जब तक माया थी, सुधीर कभी भी मुझे अपनी ओर नहीं देखता था। वह हमेशा माया से ही प्यार करता था। माया के होते हुए मैं कभी उसके करीब नहीं जा सकती थी, और मेरी दुनिया उसी दर्द और अकेलेपन में सिमटी हुई थी।"
क्या रीतिका माया की आत्मा के गुस्से से खुद को बचा पाएगी, या हमेशा के लिए उसकी गिरफ्त में चली जाएगी? 👁️🗨️क्या सुधीर सच में माया से प्यार करता था, या उसके पीछे भी कोई और राज़ छुपा है? 🔍क्या रीतिका की माँ का पछतावा असली है, या वह अब भी कुछ छुपा रही है? 🕯️
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........