"रांझना with सफर-18

आन्या के आने से पूरा घर जैसे स्वर्ग बन गया था। हर कोना उसकी किलकारियों से गूंजने लगा था। जहाँ पहले साहिल और रीतिका एक-दूसरे में खोए रहते थे, अब उनकी पूरी दुनिया आन्या बन चुकी थी। रीतिका उसे आँचल में छुपाकर रखती, उसके हर रोने पर घबरा जाती, उसकी हर मुस्कान पर खिल उठती। साहिर, जो कभी अपनी दुनिया में अकेला था, अब हर वक्त अपनी बेटी को गोद में उठाए घूमता रहता। वह उसे उँगली पकड़कर चलना सिखाने की कल्पना करता और उसके भविष्य के हर सपने को अपने दिल में संजोए रखता।

एक रात, जब सब सो चुके थे, साहिल और रीतिका अपनी नन्ही परी को देखते रहे। रीतिका ने हल्की आवाज़ में कहा, "कभी सोचा था कि हमारी ज़िंदगी में इतनी बड़ी खुशी आएगी?"

साहिल ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराकर कहा, "अब लगता है कि हमारी ज़िंदगी का हर अधूरा हिस्सा पूरा हो गया।"

रीतिका ने अपनी बेटी को हल्के से सीने से लगाया और धीरे से कहा, "अब हमारी पूरी दुनिया यही है।"

लेकिन क्या यह खुशी हमेशा बनी रहेगी? क्या इस नन्ही जान का इस दुनिया में आना सिर्फ एक संयोग था, या इसके साथ कोई ऐसा रहस्य भी जुड़ा था, जो उनकी पूरी ज़िंदगी को बदल कर रख देगा?

 

साहिल और रीतिका की ज़िंदगी अब पूरी हो चुकी थी। उनके पास सब कुछ था—एक प्यारी-सी बेटी, नया बंगला, ढेर सारी खुशियाँ और अपनों का प्यार। हर दिन हँसी-खुशी बीतता था, मानो उनकी दुनिया में कोई कमी ही नहीं थी। लेकिन कहते हैं ना, ज़िंदगी के दो पहलू होते हैं—खुशी और ग़म। अगर खुशियाँ दस्तक दे चुकी हैं, तो कहीं न कहीं दुख भी अपना सामान पैक कर चुका होगा और आने का रास्ता ढूँढ रहा होगा।

उनकी बेटी आन्या किसी आम बच्ची जैसी नहीं थी। वह बाकी बच्चों की तुलना में सबकुछ बहुत जल्दी सीख रही थी। कुछ ही महीनों में उसने बोलना, समझना और भावनाओं को पहचानना शुरू कर दिया था। उसकी हर हरकत सभी को चौंका देती थी, लेकिन इसे सबने उसकी तीव्र बुद्धि समझकर अनदेखा कर दिया।

पाठ 21 

लेकिन वो रात… वो रात कुछ अलग थी।

गहरी रात थी। बाहर हल्की हवा चल रही थी, और खिड़कियों से सफेद पर्दे हिल रहे थे। रीतिका ने प्यार से आन्या को सुलाया और खुद भी पास ही लेट गई। कमरे में सिर्फ नाइट लैंप की हल्की रोशनी थी, और सबकुछ शांत लग रहा था।

अचानक…

आन्या झटके से उठकर बैठ गई।

रीतिका की आँखें तुरंत खुल गईं। उसने देखा कि आन्या की आँखें बंद थीं, लेकिन वह कुछ बड़बड़ा रही थी। उसकी आवाज़ न तो बच्चों जैसी थी, न ही किसी जागे हुए इंसान जैसी। वो एक गहरी, गंभीर आवाज़ में बोल रही थी—

"हवेली पर उसका हक है... वह इसे लेने आएगा... माँ, दरवाजा मत खोलना..."

रीतिका का दिल जोरों से धड़कने लगा। उसने तुरंत आन्या को पकड़कर झकझोरा, लेकिन उसकी बेटी की आवाज़ और गहरी हो गई—

"वो आ रहा है... सब खत्म होने वाला है..."

ठीक उसी समय, हवेली की सभी लाइटें एक झटके में बुझ गईं। पूरे घर में घुप अंधेरा छा गया।

रीतिका का दिल धक-धक कर रहा था। उसने आन्या को गोद में उठाया और तेजी से साहिल को जगाने के लिए कमरे से बाहर निकली। लेकिन जैसे ही उसने बाहर कदम रखा, उसे ऐसा महसूस हुआ कि कोई बहुत ठंडी हवा उसके पास से गुजरी है।

पूरे घर में सन्नाटा था। साहिल भी लाइट्स बंद होने की वजह से जाग चुका था।

"क्या हुआ?" उसने चिंतित होकर पूछा।

"आन्या… कुछ अजीब बोल रही थी, और अचानक लाइट्स भी चली गईं…"

साहिल ने टॉर्च जलाकर आन्या की ओर देखा। अब वह सामान्य लग रही थी—उसकी मासूमियत भरी चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी।

लेकिन… उसके तकिये के पास कुछ उकेरा हुआ था।

जब साहिल ने नजदीक जाकर देखा, तो उसकी आँखें फैल गईं। तकिये पर धूल से एक नाम लिखा था—

"वो आ चुका है..."

इस बंगले में आने के बाद पहली बार ऐसा कुछ हुआ था। क्या यह सिर्फ एक संयोग था? क्या आन्या सिर्फ सपना देख रही थी, या फिर उसके जरिए कोई और बोल रहा था?

और सबसे बड़ा सवाल—वो कौन था, जो आ चुका था?

अब उनके खुशहाल जीवन पर किसी अनजानी ताकत की छाया पड़ चुकी थी… और यह तो सिर्फ शुरुआत थी।

साहिल और रीतिका के दिलों में अब बेचैनी थी। उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी इतना डर महसूस नहीं किया था। कुछ तो था, जो उनकी खुशियों को निगलने की कोशिश कर रहा था। पूरे घर में एक अजीब-सी ठंडक थी, जैसे कोई अनजानी ताकत वहाँ मंडरा रही हो।

उन्हें फादर की याद आई, वही फादर जो चर्च में मिले थे और जिन्होंने माया की आत्मा को शांति दिलाई थी। साहिल और रीतिका को अब एक ही रास्ता नज़र आ रहा था—सुबह होते ही फादर को बुलाना और सारी बातें बताना।

लेकिन सुबह अभी बहुत दूर थी... और यह रात इतनी आसान नहीं थी।

आन्या को सुलाने की लाख कोशिशों के बावजूद, ऐसा लग रहा था जैसे कुछ उसे सोने नहीं दे रहा हो। जब भी उसकी आँखें बंद होतीं, कोई न कोई अजीब चीज़ घटने लगती।

कभी उसके खिलौने खुद-ब-खुद हिलने लगते।कभी खिड़की के पर्दे बिना हवा के भी फड़फड़ाने लगते।कभी कमरे में हल्की फुसफुसाहटें सुनाई देतीं, जो धीरे-धीरे तेज़ हो जातीं।

सबसे डरावनी बात यह थी कि जब भी आन्या सोने लगती, उसकी परछाई जमीन पर वैसे ही बनी रहती, मानो उसकी आत्मा अभी भी वहाँ खड़ी हो।

साहिल और रीतिका के रोंगटे खड़े हो गए थे। उन्होंने आन्या को कसकर अपनी गोद में ले लिया और भगवान का नाम लेने लगे।

 

रात के किसी पहर, जब चारों तरफ सन्नाटा था, आन्या अचानक से उठी। उसने अपनी छोटी-छोटी उँगलियाँ खिड़की की तरफ बढ़ाईं और धीमी आवाज़ में बोली—

"पापा, ये छत पर खड़ा आदमी हर रात हमें क्यों देखता है?"

साहिल के चेहरे का रंग उड़ गया। रीतिका का गला सूख गया।

"क्या?" साहिल ने धीरे से पूछा।

आन्या ने खिड़की के बाहर देखते हुए कहा—"हर रात, जब आप लोग सो जाते हो, वो हमें देखता रहता है।"

साहिल की साँसें अटक गईं। उसने तेजी से खिड़की से बाहर झाँका—छत पूरी तरह खाली थी।

"कौन आदमी, बेटा?" उसने घबराते हुए पूछा।

आन्या ने सिर झुका लिया और मुस्कुरा दी। "कुछ नहीं, पापा। उसने कहा कि आप उसे देख नहीं सकते।"

साहिल और रीतिका की धड़कनें तेज़ हो गईं। उन्होंने आन्या को पकड़कर अपने बीच लिटा लिया।

अब यह साफ हो चुका था कि उनकी बेटी सिर्फ एक आम बच्ची नहीं थी। वह कुछ देख सकती थी, कुछ सुन सकती थी, कुछ ऐसा महसूस कर सकती थी, जो बाकी लोग नहीं कर सकते थे।

और अब सवाल यह था—वह कौन था, जो हर रात उन्हें देखता था?

क्या यह सब सिर्फ एक संयोग था? या फिर कुछ ऐसा था, जिसका जुड़ाव उनके अतीत से था?

सुबह होते ही उन्हें फादर को बुलाना था। अब वे और इंतज़ार नहीं कर सकते थे… क्योंकि अब यह सिर्फ डर की बात नहीं थी, यह उनके परिवार के अस्तित्व की लड़ाई थी।

 

 

 

 

क्या आन्या सच में कुछ देख रही है, या वह सिर्फ अपनी कल्पनाओं में खोई हुई है? 👀वो आदमी कौन है, जो हर रात साहिल और रीतिका को देखता रहता है? 😱क्या इस रहस्य का जुड़ाव उनके अतीत से है, या यह कोई और ताकत है जो उनके परिवार को खतरे में डाल रही है? 🔮

 

आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........