"रांझना with सफर-23

धीरे-धीरे, आसपास का माहौल शांत होने लगा। लेकिन यह शांति किसी राहत की तरह नहीं थी, बल्कि यह तूफान के पहले की शांति थी।

हवाएँ धीरे-धीरे मंद हो गईं। कमरे में रखी हर चीज़, जो अब तक काँप रही थी, अचानक स्थिर हो गई। लेकिन एक अजीब-सा दबाव पूरे घर में महसूस किया जा सकता था।

रात का वह पहर, जब आत्माएँ सबसे ज़्यादा ताकतवर होती हैं, अब समाप्त होने की कगार पर था।

घड़ी ने चार बजाए।

यह ब्रह्म मुहूर्त था—एक ऐसा समय, जिसे सबसे पवित्र माना जाता है। एक ऐसा समय, जब स्वर्ग और नरक के द्वार खुलते हैं।

लेकिन यह मुहूर्त भी जैसे इस घर में कोई बदलाव नहीं ला पाया था।

अघोरानंद ज़मीन पर बैठ गए। उन्होंने अपनी आँखें बंद कीं और ध्यान मग्न हो गए।

घर के हर कोने में, हर दीवार में, हर परछाई में कुछ तो छुपा था।

वे सुन सकते थे…

वे महसूस कर सकते थे…

किसी की फुसफुसाहट।

किसी की हँसी।

किसी की आहट।

फादर अब भी वहीं खड़े थे, उनके हाथ काँप रहे थे। वह इस तरह की भयावह स्थिति पहले कभी नहीं देख चुके थे।

 

रीतिका अब पूरी तरह से बिखर चुकी थी।

वह ज़मीन पर घुटनों के बल बैठी, उसकी आँखें निर्जीव हो चुकी थीं।

"हमसे क्या गलती हो गई, फादर?" उसकी आवाज़ भारी थी, टूटी हुई थी।

फादर एंथनी ने कोई जवाब नहीं दिया। शायद अब उनके पास शब्द ही नहीं बचे थे।

रीतिका ने अपनी बेटी को उठाया और उसे अपने सीने से लगा लिया।

"बस थोड़ी देर की खुशियाँ बची थीं… बस थोड़ी देर…" वह बुदबुदाई।

उसने आन्या को अपने गोद में उठाया और धीरे-धीरे उसे कमरे में ले गई।

वह अब किसी भी चीज़ पर भरोसा नहीं कर सकती थी।

ना ईश्वर पर…

 ना आत्माओं पर… ना किसी तंत्र-मंत्र पर…

उसे अब सिर्फ अपनी बेटी को बचाना था।

उधर फादर एंथनी ने साहिल को सहारा दिया और उसे कमरे तक लेकर गए। साहिल का शरीर अब भी सुन्न था, लेकिन वह धीरे-धीरे अपनी चेतना वापस पा रहा था।

फादर और अघोरानंद अब अकेले रह गए थे।

"यह आत्मा कौन है?" फादर ने धीरे से पूछा।

अघोरानंद ने आँखें खोलीं।

उनकी आँखों में पहली बार डर था।

"यह आत्मा सिर्फ कोई भटकती आत्मा नहीं है, फादर…" उन्होंने गहरी आवाज़ में कहा।

फादर एंथनी ने घबराकर पूछा, "तो फिर क्या है?"

अघोरानंद ने अपनी माला को कसकर पकड़ा और बोले,

"यह कोई आम प्रेत नहीं है… यह किसी से बंधा हुआ है… किसी ऐसे से, जिसने इसे बुलाया है।"

फादर ने एक झटका महसूस किया।

"मतलब?"

अघोरानंद ने गहरी साँस ली, "मतलब यह आत्मा पहले से ही इस घर में नहीं थी, इसे बुलाया गया है। किसी ने इसे यहाँ लाने के लिए कोई तांत्रिक क्रिया की है। और यह सिर्फ एक आत्मा नहीं है, यह किसी चीज़ का हिस्सा है… किसी बहुत बड़े रहस्य का।"

फादर का खून ठंडा हो गया।

किसी ने इसे बुलाया था?

लेकिन कौन?

और क्यों?

क्या यह सब माया की आत्मा से जुड़ा था?

क्या यह सच में इस घर से जुड़ा था, या यह कुछ और ही खेल था?

लेकिन सबसे डरावनी बात यह थी कि जिसने भी इसे बुलाया था, वह अब तक सामने नहीं आया था।

और जब तक वह सामने नहीं आता…

तब तक यह आत्मा नहीं जाएगी।

तब तक यह खेल खत्म नहीं होगा।

तब तक यह मौत का साया इस घर पर बना रहेगा।

अंधकार का सच – जब रीतिका ने सबसे बड़ा रहस्य जाना

रीतिका की चीख पूरे घर में गूँज उठी। उसका शरीर काँप रहा था, उसकी आँखें भय और गुस्से से भरी थीं।

"क्या... क्या किसी ने इस आत्मा को बुलाया है?" उसकी आवाज़ काँप रही थी, उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं।

"कौन? कौन हमारी खुशियों को छीनना चाहता है?"

फादर एंथनी ने उसके कंधे पर हाथ रखा, "शांत हो जाओ, रीतिका। इस गुस्से और घबराहट से कुछ नहीं बदलेगा। हमें पहले यह समझना होगा कि यह आत्मा आई कहाँ से है।"

अघोरानंद ने अपनी आँखें बंद कीं, अपने माथे पर राख लगाई और धीमे स्वर में कहा, "हाँ, यह आत्मा किसी और ने बुलाई है। यह कोई अपना ही है, जिसने तुम्हारी खुशियों पर नज़र लगाई है।"

साहिर, जो अब भी बेहोश पड़ा था, धीरे-धीरे होश में आ रहा था। उसकी हालत अभी भी कमजोर थी, लेकिन उसने भी अघोरानंद की बात सुन ली थी।

"लेकिन कौन?" रीतिका ने काँपते हुए पूछा।

अघोरानंद ने उसकी आँखों में गहरी नज़रें गड़ा दीं, "कोई ऐसा, जिसे तुम्हारी खुशी पसंद नहीं थी। कोई ऐसा, जो तुम्हें तकलीफ़ में देखना चाहता था। कोई ऐसा, जो पहले से ही इस आत्मा से जुड़ा था।"

रीतिका का दिमाग सुन्न पड़ गया।

"लेकिन… मेरे सब अपने हैं… मेरा कोई अपना ऐसा क्यों करेगा?" उसकी आवाज़ टूट चुकी थी।

"कोई अपना नहीं… लेकिन कोई, जिससे तुम अंजान हो।"

फिर अघोरानंद ने कुछ सोचा और कहा, "क्या तुमने शादी के बाद कोई ऐसी जगह गई थी? किसी से मिली थी, जिसे तुम पर ईर्ष्या हो सकती है?"

रीतिका बेचैन हो गई। उसकी सांसें तेज़ चलने लगीं।

"नहीं! ऐसा कोई नहीं है! मेरे परिवार में, मेरे दोस्तों में, मेरे करीबी लोगों में ऐसा कोई नहीं हो सकता!"

अघोरानंद कुछ सोचने लगे। फिर उन्होंने कहा, "क्या तुम्हें माया की बात याद है?"

रीतिका का दिल धड़क उठा।

"माया?"

"हाँ, माया…" अघोरानंद ने धीरे से कहा।

"नहीं!" रीतिका तुरंत बोल पड़ी। "माया मेरी माँ जैसी थी! उसने मेरी मदद की थी! उसने अपना बदला पूरा किया और उसे मोक्ष मिल चुका था! वह कभी ऐसा नहीं करेगी!"

अघोरानंद ने गहरी साँस ली और कहा, "हाँ, यह माया की आत्मा नहीं है… लेकिन जब तुमने माया की मदद की थी, तब तुम आत्माओं की दुनिया में गई थीं, है ना?"

"हाँ…"

"तब से ही तुम्हारा प्यार और बढ़ने लगा था, सही कहा ना?"

रीतिका की आँखों में अचानक कुछ चमका।

अघोरानंद ने फिर धीरे से कहा, "जब तुम आत्माओं की दुनिया में गई थीं, तब तुमने सिर्फ माया की आत्मा की मदद की थी। लेकिन… बाकी आत्माएँ?"

रीतिका की साँसें अटक गईं।

 

 

 

 

 

क्या रीतिका ने अपनी मदद से किसी और आत्मा को भी मुक्त कर दिया था, जिसे अब बदला लेने का इरादा है? 👀 क्या माया की आत्मा सच में मोक्ष पा चुकी थी, या वह किसी अन्य भयानक उद्देश्य के लिए लौट आई है? 😨 क्या अघोरानंद ने रीतिका को एक खतरनाक राज़ बताया है, जिसका सामना अब उन्हें करना पड़ेगा? 💀

 

आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........