घर के अंदर माहौल और भी डरावना होता जा रहा था। फादर एंथनी पूरे जोर से अपनी प्रार्थनाएँ कर रहे थे, लेकिन अब ऐसा लग रहा था कि आत्मा पहले से ज्यादा ताकतवर हो गई थी।
कमरे की लाइटें अब पूरी तरह बुझ चुकी थीं। सिर्फ मोमबत्तियों की हल्की रोशनी थी, जो रह-रहकर थरथरा रही थी। हवाएँ रुक गई थीं, लेकिन एक अजीब-सी घुटन पूरे घर में फैल गई थी, जैसे किसी ने ऑक्सीजन खींच ली हो।
साहिल और रीतिका को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी छोटी-सी बच्ची को कैसे बचाएँ।
"एक छोटी-सी बच्ची पर इतनी बड़ी मुसीबत कैसे आ सकती है?"
रीतिका की आँखों से आँसू गिरने लगे। उसने आन्या को कसकर अपनी बाहों में समेट लिया। लेकिन आन्या अब भी अजीब थी—ना डरी हुई, ना सहमी हुई, बल्कि शांत, बिल्कुल शांत।
साहिल के मन में एक ख्याल आया—"कहीं हमने यह घर लेकर गलती तो नहीं की?"
जब उन्होंने यह घर खरीदा था, तब सब कुछ सामान्य लग रहा था। लेकिन अब जो कुछ हो रहा था, वह इस बात का संकेत था कि यह घर सामान्य नहीं था।
"हमें यह घर छोड़ देना चाहिए था!" साहिल ने कहा।
लेकिन फादर ने तुरंत उसे रोक दिया, "नहीं! अगर तुम लोग घर छोड़ते, तो यह आत्मा और ताकतवर हो जाती।"
"तो फिर हमें क्या करना चाहिए?" रीतिका चीख पड़ी।
फादर ने गहरी साँस ली, "हमें अघोरानंद का इंतज़ार करना होगा। वह ही इसका समाधान निकाल सकता है। लेकिन मुझे डर है कि अब बहुत कम समय बचा है…"
"अगर यह माया नहीं है, तो फिर यह कौन है?"
माया की आत्मा से उन्हें पहले ही मुक्ति मिल चुकी थी। फिर यह कौन था, जो अब उनकी ज़िंदगी में तबाही मचाने आया था?
और सबसे बड़ा सवाल—यह सब आन्या के आने के बाद ही क्यों हो रहा था?
क्या यह सब आन्या से जुड़ा था?
क्या कोई पुरानी आत्मा उसकी आत्मा से जुड़ चुकी थी?
क्या यह कोई ऐसा राज़ था, जो उनके सामने धीरे-धीरे खुल रहा था?
साहिल और रीतिका के दिमाग में सवालों का बवंडर चल रहा था, लेकिन उनके पास इनका कोई जवाब नहीं था।
अब बस एक ही उम्मीद थी—अघोरानंद जल्द से जल्द पहुँचे… इससे पहले कि यह आत्मा उन सबको खत्म कर दे।
जब अघोरानंद ने अंधकार की ताकत को ललकारा
कमरे का माहौल भय से भर चुका था। आत्माओं की लाल-लाल आँखें अब सीधी आन्या की ओर बढ़ रही थीं। रीतिका ने उसे अपनी बाँहों में कसकर जकड़ लिया, जैसे अगर उसे छोड़ दिया तो यह आत्माएँ उसकी बेटी को हमेशा के लिए निगल जाएँगी।
साहिर, जो अब तक रीतिका और आन्या के सामने ढाल बनकर खड़ा था, अचानक काँपने लगा। उसकी आँखों में डर उतर आया, और वह अपने गले को जोर-जोर से पकड़ने लगा।
"छोड़ दो... छोड़ दो मुझे..."
उसकी आवाज़ जैसे दम घुटने से निकल रही थी। उसकी गर्दन पर लाल निशान उभरने लगे थे, जैसे कोई अदृश्य हाथ उसकी सांसें रोकने की कोशिश कर रहा हो।
रीतिका चीख पड़ी, "साहिर! क्या हो रहा है तुम्हें?"
कमरे में हर तरफ़ हवाएँ तेज़ हो गईं। ऐसा लग रहा था मानो काली शक्तियाँ अब खुलकर अपना खेल खेल रही थीं।
कभी बिलियों के रोने की आवाज़...
कभी चिड़ियों की दर्दभरी चीखें...
कभी किसी बूढ़ी औरत की धीमी मगर डरावनी हँसी...
चारों ओर से अजीब-अजीब आवाज़ें गूंजने लगीं, जैसे यह दुनिया किसी और ही आयाम में खिंचती जा रही हो।
साहिल अब ज़मीन पर गिर पड़ा था। उसका शरीर झटके खा रहा था, उसकी आँखों के सफेद हिस्से पूरी तरह ऊपर चढ़ गए थे। उसकी नाक से खून बहने लगा, और फिर उसने अचानक खून की उल्टियाँ करनी शुरू कर दीं।
"नहीं... नहीं... यह क्या हो रहा है?" रीतिका चीख रही थी, लेकिन कोई उसे जवाब नहीं दे रहा था।
तभी…
दरवाजा ज़ोर से खुला।
"धड़ाम!"
ठंडी हवाओं का एक झोंका कमरे में घुसा, और उसके साथ ही वह व्यक्ति, जिसे देख फादर एंथनी की आँखों में एक नई रोशनी आ गई।
अघोरानंद आ चुका था।
वह दरवाज़े के सामने खड़ा था—
लंबे, उलझे हुए बाल, जिनमें राख और चिता की धूल बसी हुई थी।
गले में खोपड़ियों की माला, कंधों तक लटकती जटाएँ, और शरीर पर केवल भस्म का लेप।
उसकी आँखें गहरी और भयानक थीं, मानो किसी दूसरे लोक से देख रही हों।
लेकिन जो सबसे ज्यादा डरावना था, वह था उसकी आँखों के चारों ओर फैला काजल, जो उसकी तेज़ लाल आँखों को और भी खौफनाक बना रहा था।
उसने एक कदम आगे बढ़ाया।
कमरे में मौजूद सभी शीशे एक झटके में चटक गए।
"क्र्र्र्र… कड़ाक!"
शीशे टूटकर ज़मीन पर बिखर गए। आत्माओं की चीखें हवा में गूँज उठीं, जैसे उन्हें किसी ने ज़ोर से जला दिया हो।
"अब ये खेल खत्म होगा…" अघोरानंद की भारी आवाज़ कमरे में गूँज उठी।
उसने दरवाज़े से ही मंत्रोच्चार शुरू कर दिया।
"ॐ कालभैरवाय नमः...ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु स्वाहा..."
जैसे ही उसने मंत्र पढ़े, घर की दीवारों से एक भयानक चीख निकली।
"तुम मुझे नहीं हरा सकते... ये लड़की अब मेरी है..."
लेकिन अघोरानंद सिर्फ मुस्कुराया। उसने अपनी हथेली खोली, और उसके अंदर से राख की एक मोटी लकीर निकलकर ज़मीन पर फैल गई।
"आत्माएँ भस्म से डरती हैं..." उसने कहा और ज़ोर से हाथ झाड़ा। राख पूरे कमरे में उड़ गई।
आत्माएँ अब और भयंकर रूप में तड़पने लगीं।
साहिल अब भी ज़मीन पर पड़ा तड़प रहा था, लेकिन अघोरानंद ने एक नज़र उस पर डाली और फुसफुसाया, "यह आत्मा कमजोर नहीं है... यह बहुत पुरानी और बहुत ज़िद्दी है। लेकिन अब देखना, जब काशी का एक अघोरी इसकी परीक्षा लेगा।"
आन्या अब भी हँस रही थी।
रीतिका ने उसे झकझोरा, "आन्या! क्या हो गया है तुम्हें?"
लेकिन आन्या ने धीरे से सिर उठाया और उसकी आँखों में अब मासूमियत नहीं थी… बल्कि एक अजीब-सी चमक थी।
"अब देखिए... कौन किसे हराता है…"
रीतिका के हाथ कांप गए।
आन्या के चेहरे पर वह मुस्कान थी, जो किसी बच्चे की नहीं हो सकती थी।
अघोरानंद ने पहली बार उसके चेहरे को गौर से देखा, और उसकी आँखों में पहली बार चिंता की लकीर उभरी।
"यह बच्ची सिर्फ शिकार नहीं है..." उसने मन ही मन सोचा।
"इसमें कुछ और है... कुछ ऐसा जो अब तक मैं भी नहीं देख पाया था..."
अब यह लड़ाई सिर्फ आत्मा को हराने की नहीं थी…
अब यह खेल किसी और मोड़ पर जा चुका था।
मौत का साया – जब आत्माओं की पकड़ और गहरी हो गई
रात के अंधेरे में हवाएँ थम चुकी थीं, लेकिन घर के भीतर जो हलचल मची थी, वह किसी भयावह तूफान से कम नहीं थी। अघोरानंद ने अपनी झोली से मुट्ठी भर भस्म निकाली और बिना एक पल की देरी किए, सीधे आन्या पर फेंक मारा।
आन्या ज़ोर से चीख पड़ी।
लेकिन यह किसी आम बच्चे की चीख नहीं थी, यह एक ऐसी चीख थी, जो किसी दूसरी दुनिया से आई हो।
उसकी आवाज़ पूरे घर में गूँज उठी, जैसे किसी ने उसकी आत्मा को ज़बरदस्ती बाहर खींचने की कोशिश की हो।
रीतिका का दिल चीर गया। उसकी बेटी, जिसे उसने नौ महीने अपने पेट में रखा, जिसका हर रोना उसने अपने दिल में महसूस किया था, आज ज़मीन पर गिरकर बेतहाशा छटपटा रही थी।
"आन्या!"
उसने उसकी तरफ़ दौड़ने की कोशिश की, लेकिन अघोरानंद ने अपने त्रिशूल से ज़मीन पर एक लकीर खींच दी।
"इधर मत आना!" उनकी भारी आवाज़ गूँजी।
रीतिका वहीं रुक गई, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन उसके पैर सुन्न हो चुके थे।
आन्या ज़मीन पर पड़ी थी, उसके शरीर से जैसे धुएँ की हल्की-हल्की लहरें उठ रही थीं। उसका शरीर काँप रहा था, और उसकी उँगलियाँ मुड़ रही थीं, जैसे कोई अदृश्य ताकत उसके भीतर से बाहर निकलने की कोशिश कर रही हो।
अघोरानंद ने और भस्म निकाली और उसे साहिल पर फेंक दिया।
साहिर, जो अब तक ज़मीन पर पड़ा तड़प रहा था, एक झटके में शांत हो गया। उसकी साँसें धीमी पड़ गईं, लेकिन उसका चेहरा अब भी डर और पीड़ा से भरा हुआ था।
फादर एंथनी और रीतिका अब भी कांप रहे थे।
यह कैसा आतंक था?
यह सब क्यों हो रहा था?
क्या अघोरानंद समय पर पहुँच पाएगा, या आत्मा सब कुछ नष्ट कर देगी? 😱 क्या आन्या वाकई में केवल शिकार है, या कुछ और खतरनाक छिपा है उसके भीतर? 👀 क्या इस आत्मा को हराना अघोरानंद के लिए भी असंभव होगा? 🔥
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........