साहिर, रीतिका और फादर एंथनी जब अघोरानंद के बारे में बात कर रहे थे, तो कमरे में एक अजीब-सी ठंडक महसूस होने लगी। बाहर हल्की हवा चल रही थी, लेकिन खिड़कियाँ और दरवाजे बंद थे।
इसी बीच, आन्या अचानक से हँस पड़ी।
एक ऐसी हँसी, जो किसी मासूम बच्ची की नहीं लग रही थी।
साहिल और रीतिका के शरीर में झुरझुरी दौड़ गई। उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा और फिर आन्या की तरफ।
"आन्या, तुम हँस क्यों रही हो?" रीतिका ने घबराकर पूछा।
आन्या ने अपनी बड़ी-बड़ी मासूम आँखों से देखा, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब-सी शरारत थी।
"माँ, आपको क्या लगता है, यह सब तुम लोग तय कर सकते हो?"
यह सुनकर फादर का चेहरा सख्त हो गया।
"तुम लोग?" साहिल ने काँपती आवाज़ में पूछा।
आन्या अब भी मुस्कुरा रही थी। वह धीरे-धीरे अपने छोटे-छोटे पैरों से फर्श पर घुमने लगी, मानो किसी से बातें कर रही हो।
फिर वह एक कोने में जाकर दीवार की ओर मुँह करके खड़ी हो गई।
"माँ, पापा… आप अघोरी बाबा के पास जाओगे? तो क्या होगा?" उसने धीरे से कहा।
साहिल और रीतिका की साँसें थम गईं।
फादर ने गहरी आवाज़ में पूछा, "आन्या, तुम किससे बात कर रही हो?"
आन्या ने धीरे से अपना सिर घुमाया। उसकी आँखों में अजीब-सी चमक थी।
"मुझे सब पता है।"
अब यह साफ हो चुका था—आन्या कुछ जानती थी। शायद वह उस चीज़ से जुड़ चुकी थी, जो उनके घर में मौजूद थी।
अब सवाल यह था—क्या यह सिर्फ एक आत्मा थी, या फिर कुछ और बड़ा, कुछ और खतरनाक उनके सामने आने वाला था?
आन्या का रहस्य और अघोरानंद का आगमन
फादर ने तुरंत मानिकर्णिका घाट पर संदेश भेज दिया था। अघोरानंद को बुलावा दिया जा चुका था, लेकिन उसे वहाँ से यहाँ तक पहुँचने में कुछ दिन लगने वाले थे।
अब सवाल यह था—क्या वे तब तक सुरक्षित रह पाएँगे?
आन्या के व्यवहार में बदलाव साफ़ दिखने लगा था। वह एक आम बच्ची की तरह खेलती, हँसती, दौड़ती, लेकिन बीच-बीच में कुछ ऐसी बातें बोल जाती, जो किसी भी इंसान की रूह काँपाने के लिए काफी थीं।
एक दिन, जब रीतिका उसे नहलाने के लिए बाथरूम ले जा रही थी, आन्या ने अचानक उसकी कलाई पकड़ ली और हल्की मुस्कान के साथ बोली—
"माँ, आपको पता है, पापा बहुत रोएंगे..."
रीतिका के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। उसने तुरंत पूछा, "क्यों बेटा? पापा क्यों रोएंगे?"
आन्या ने धीरे-धीरे उसकी कलाई छोड़ी और पानी की ओर देखने लगी।
"क्योंकि वो सब कुछ ले जाएगा... और फिर कोई किसी को नहीं पहचान पाएगा..."
रीतिका की रीढ़ में ठंडक दौड़ गई।
"कौन ले जाएगा, बेटा?" उसने घबराकर पूछा।
आन्या ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा—"माँ, आपको बाद में पता चलेगा..."
उस रात, साहिल और रीतिका ने फैसला किया कि वे बारी-बारी से जागकर आन्या पर नज़र रखेंगे। उन्हें अब साफ़ दिख रहा था कि उनकी बेटी कुछ देख सकती थी, कुछ महसूस कर सकती थी… कुछ ऐसा, जिसे वे समझ नहीं पा रहे थे।
करीब आधी रात के समय, जब पूरे घर में गहरा सन्नाटा था, साहिल की आँख अचानक खुल गई।
कमरे में हल्की रोशनी थी, लेकिन... आन्या बिस्तर पर नहीं थी।
साहिल घबराकर उठा और पूरे कमरे में इधर-उधर देखा। तभी, उसकी नज़र दरवाज़े के पास खड़ी छोटी-सी आकृति पर पड़ी—आन्या।
वह एकदम सीधी खड़ी थी, उसकी आँखें खुली थीं, लेकिन उसकी पुतलियाँ अजीब तरह से ऊपर चढ़ी हुई थीं।
साहिल ने धीरे से उसे छूने की कोशिश की, "आन्या... बेटा, क्या कर रही हो?"
आन्या ने कोई जवाब नहीं दिया।
फिर उसने धीरे से अपना सिर घुमाया और फुसफुसाकर कहा—"वो आ गया है..."
"कौन?" साहिल की आवाज़ काँप गई।
आन्या ने दरवाज़े के बाहर की ओर इशारा किया।
साहिल ने धीरे-धीरे हिम्मत जुटाकर दरवाज़े के बाहर देखा... कुछ नहीं था।
लेकिन तभी, पूरे घर की लाइटें झपकने लगीं, और हवा में एक अजीब-सी फुसफुसाहट गूँजने लगी।
"तुम देर कर चुके हो..."
"अब यह हमारी है..."
"अघोरी भी इसे नहीं बचा सकता..."
साहिल ने तुरंत आन्या को गोद में उठाया और जोर से पुकारा—"रीतिका! फादर!"
अब यह साफ़ हो चुका था कि जो ताकत इस घर में थी, वह किसी भी तरह से अपना नियंत्रण छोड़ने वाली नहीं थी।
क्या अघोरानंद के आने से पहले ही कुछ अनहोनी हो जाएगी?
क्या वे अपनी बेटी को बचा पाएँगे?
या फिर कोई अनदेखी ताकत इस परिवार को हमेशा के लिए तबाह करने वाली थी?
जब आत्मा ने अपना खेल शुरू किया
फादर ने अपनी प्रार्थना तेज कर दी थी। उनके स्वर में अब पहले से ज्यादा दृढ़ता थी। वह पूरे घर में घूमते हुए पवित्र जल छिड़क रहे थे, लेकिन जितना वे आगे बढ़ते, उतना ही वातावरण और भयावह होता जा रहा था।
तेज़ हवाएँ पूरे घर में दौड़ रही थीं। खिड़कियाँ बिना किसी कारण ज़ोर-ज़ोर से पटकने लगीं। पर्दे हवा में लहराने लगे, मानो कोई अदृश्य शक्ति उन्हें झकझोर रही हो। कमरे की लाइटें रह-रहकर जलती और बुझतीं, और अचानक एक अजीब-सी आवाज़ गूँजने लगी—गहरी, भारी और ठंडी, जिससे पूरे घर में एक सिहरन दौड़ गई।
"अब कोई नहीं रोक सकता…"
साहिल और रीतिका ने घबराकर एक-दूसरे की ओर देखा। रीतिका ने आन्या को अपनी बाहों में कसकर पकड़ लिया, लेकिन कुछ अजीब था… आन्या अब भी मुस्कुरा रही थी। उसकी आँखें कहीं दूर शून्य में टिकी थीं, जैसे उसे पहले से सबकुछ पता हो, जैसे वह इस खेल की सबसे अहम खिलाड़ी हो।
"आन्या, बेटा… क्या तुम ठीक हो?" रीतिका ने काँपती आवाज़ में पूछा।
आन्या ने धीरे से उसकी ओर देखा और सिर झुका लिया। "माँ, आपको क्या लगता है? क्या ये सब आप रोक सकते हैं?"
रीतिका के गले से कोई आवाज़ नहीं निकली। उसकी अपनी बेटी उससे यह सवाल कर रही थी, लेकिन उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था, जो उसे अपना ही खून जमा देने जैसा महसूस हो रहा था।
फादर ने क्रॉस को उठाया और ज़ोर से मंत्रोच्चार किया।
"हे ईश्वर, जो भी अशुद्ध है, उसे इस स्थान से दूर करो… जो भी आत्मा इस संसार में बंधी हुई है, उसे मुक्ति प्रदान करो…!"
जैसे ही उनके शब्द हवा में घुले, पूरे घर में अजीब-सी ध्वनि गूँजने लगी। एक कंपन, जो फर्श से उठकर दीवारों तक फैल रही थी।
और फिर… आईने में कुछ उभरने लगा।
कमरे के कोने में रखा वो बड़ा सा आईना, जिसमें कुछ पल पहले तक सिर्फ उनकी परछाइयाँ थीं, अब उसमें कुछ और दिखने लगा। कोई आकृति।
धीरे-धीरे, एक काला धुआँ उस आईने के भीतर आकार लेने लगा। पहले सिर्फ एक धुंधली परछाईं, फिर धीरे-धीरे कुछ और साफ़… दो लाल चमकती आँखें, जो सबको घूर रही थीं।
फादर ने तुरंत क्रॉस आईने की ओर बढ़ाया और ज़ोर से मंत्र पढ़ने लगे।
"ईश्वर के नाम पर, जो भी अशुद्ध है, वह यहाँ से प्रस्थान करे!"
आईने के भीतर की परछाईं एक पल को कांपी, लेकिन फिर एक कर्कश हँसी गूँज उठी।
"तुम इसे मुझसे छीन नहीं सकते…"
फादर पीछे नहीं हटे, उन्होंने मंत्र जारी रखा, लेकिन जैसे ही उन्होंने आईने पर पवित्र जल छिड़का…
आईना चटकने लगा।
पहले एक दरार, फिर दूसरी, और फिर…
"क्र्र्र्र… कड़ाक!"
आईना ज़ोर से फट गया। कांच के टुकड़े ज़मीन पर गिरे, और अचानक घर की सारी लाइटें एक झटके में बंद हो गईं।
चारों ओर अंधेरा छा गया।
सिर्फ एक चीज़ थी, जो अभी भी दिखाई दे रही थी—वह लाल चमकती आँखें, जो अब आईने से बाहर आ चुकी थीं।
अब यह आत्मा छुप नहीं रही थी… अब उसने खुद को प्रकट कर दिया था।
रीतिका की चीख पूरे घर में गूँज उठी। साहिल ने आन्या को कसकर पकड़ लिया, लेकिन वह अब भी हँस रही थी, धीरे-धीरे, जैसे किसी रहस्य को अपने अंदर समेटे हुए।
फादर की साँसें तेज़ हो गई थीं। उन्होंने क्रॉस को कसकर पकड़ा और साहिल को देखा। "अब यह सिर्फ आत्मा नहीं है… अब यह एक खेल है, जिसमें यह हमें अपना मोहरा बना चुका है।"
"तो हमें क्या करना होगा?" साहिल ने घबराकर पूछा।
फादर ने गहरी साँस ली, "अब हमें अघोरानंद का इंतज़ार करना होगा… लेकिन मुझे डर है, कि वह तब तक आ भी पाएगा या नहीं।"
साहिल और रीतिका के सामने अब सिर्फ दो रास्ते थे—या तो वे इस आत्मा का सामना करें, या फिर खुद को इसके हवाले कर दें। लेकिन इस खेल का सबसे बड़ा मोहरा उनकी मासूम बेटी थी… जो शायद अब उतनी मासूम नहीं रह गई थी।
अघोरानंद जैसे-जैसे साहिल और रीतिका के घर के करीब पहुँच रहा था, उसे अपने शरीर पर एक अजीब-सा बोझ महसूस होने लगा। हर कदम के साथ ऐसा लग रहा था मानो ज़मीन ने उसके पैरों को जकड़ लिया हो। उसकी साधना इतनी गहरी थी कि वह दूर से ही किसी भी आत्मा की उपस्थिति को भाँप सकता था।
लेकिन यह आत्मा कोई साधारण भटकती आत्मा नहीं थी… यह कुछ और थी।
उसने अपनी आँखें बंद कीं और अपनी ऊर्जा को केंद्रित किया। उसे तुरंत एहसास हो गया कि जो ताकत इस घर के अंदर मौजूद थी, वह न केवल शक्तिशाली थी बल्कि बहुत पुरानी भी थी।
"अगर मैंने जल्द ही कुछ नहीं किया, तो यह आत्मा उन सभी को खत्म कर देगी..." अघोरानंद ने मन ही मन सोचा।
उसने अपने हाथों में बंधी काले धागों की माला को कसकर पकड़ा और अपने भीतर की ऊर्जा को संतुलित किया। वह जानता था कि यह आत्मा अब उसे भी रोकने की कोशिश कर रही थी। लेकिन वह कोई आम इंसान नहीं था। उसने वर्षों तक चिताओं के बीच साधना की थी, मृत्यु और आत्माओं से सीधा संवाद किया था।
अघोरानंद ने अपनी शक्तियों का उपयोग किया और अपने पैरों पर पड़ रहे भार को कम किया। जैसे ही वह आगे बढ़ा, उसके मन में एक सवाल उठा—क्या वह सही समय पर पहुँच पाएगा? या तब तक बहुत देर हो चुकी होगी?
क्या अघोरानंद समय पर पहुँच पाएगा, या आत्मा ने सब कुछ खत्म कर दिया होगा? ⏳क्या आन्या की मासूमियत सच में छिपी आत्मा से प्रभावित हो चुकी है, या वह आत्मा का नया मोहरा बन चुकी है? 👹क्या फादर और साहिल इस आत्मा का सामना कर पाएंगे, या यह उनका आखिरी खेल होगा? 🔥
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........