"रांझना with सफर-20

 

आन्या अपने कमरे में थी। वह बिल्कुल शांत खड़ी थी, लेकिन उसकी आँखें आईने की ओर टिकी थीं।

कुछ देर बाद उसने माँ को पुकारा, "माँ, देखो! आईने में मेरे पीछे कोई खड़ा है!"

रीतिका जो उस समय कमरे में ही थी, उसका दिल जोर से धड़क उठा। उसके हाथों से पानी का गिलास छूटकर गिर पड़ा।

"क्या?" उसने काँपते हुए कहा।

उसके पैर खुद-ब-खुद आगे बढ़े और उसने घबराकर आईने में देखा। वहाँ सिर्फ वही और आन्या खड़े थे।

लेकिन...

तभी, एक काली परछाईं आईने में हल्की सी झलकी… और फिर अचानक गायब हो गई।

रीतिका ने घबराकर आन्या को अपनी बाहों में खींच लिया और ज़ोर से फादर और साहिल को आवाज़ दी।

फादर और साहिल भागते हुए कमरे में पहुँचे।

"क्या हुआ?" साहिल ने हाँफते हुए पूछा।

रीतिका की साँसें तेज़ चल रही थीं। उसने कांपते हुए आईने की ओर इशारा किया, "आईने में... कोई खड़ा था।"

फादर ने तुरंत आईने के सामने जाकर हाथ फैलाए और हल्की प्रार्थना शुरू कर दी।

हवा का दबाव अचानक बदलने लगा।

कमरे में ठंड बढ़ गई, खिड़कियों के पर्दे बिना किसी हवा के फड़फड़ाने लगे, और दरवाज़ा खुद-ब-खुद हल्का-सा खटखटाने लगा।

साहिल ने आन्या को अपने सीने से चिपका लिया, "फादर, यह क्या हो रहा है?"

फादर ने गहरी आवाज़ में कहा, "यह आत्मा इस आईने से जुड़ी हुई है… या फिर यह आईना एक दरवाज़ा है… एक ऐसी दुनिया का दरवाज़ा, जहाँ से यह आत्मा हमारे बीच आ सकती है।"

"तो अब हमें क्या करना होगा?" रीतिका ने घबराकर पूछा।

फादर ने एक लंबी साँस ली और कहा, "हमें इसे रोकना होगा, इससे पहले कि यह पूरी तरह से हमारे संसार में आ जाए।"

अब यह साफ था—यह आत्मा बस डराने के लिए नहीं थी। इसका इरादा कुछ और था… और इसका सबसे बड़ा निशाना था—आन्या।

क्या यह आईना ही इस घर के अतीत से कोई राज़ छुपा रहा था?

या फिर इस घर की दीवारों के पीछे कोई ऐसा भेद था, जिसे सालों से कोई छुपाने की कोशिश कर रहा था?

रहस्यमयी अघोरी अघोरानंद – जो आत्माओं की भाषा समझता था

फादर ने जिस अघोरी का जिक्र किया था, वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। वह काशी के मानिकर्णिका घाट पर रहने वाला एक ऐसा साधु था, जिसने मृत्यु और आत्माओं के बीच की सीमाओं को पार कर लिया था।

रात घनी थी। आसमान में अंधेरा और भी गहरा हो चुका था। गंगा के किनारे बहती हवा में एक अजीब-सी ठंडक थी, जो किसी आम रात में महसूस नहीं होती थी। काशी का वह श्मशान, जहाँ आम लोग जाने से भी डरते थे, वहाँ आज कुछ हलचल थी।

लकड़ियों के बीच जलती चिताएँ टिमटिमा रही थीं, और उनके बीच बैठा था एक अघोरी – अघोरानंद।

उसका शरीर राख से पुता हुआ था, लंबी उलझी हुई जटाएँ उसके कंधों तक फैली थीं। उसने अपने गले में मस्तक की खोपड़ियों की माला पहन रखी थी और उसके सामने एक चिता की आग जल रही थी, जिसमें वह ध्यान में मग्न बैठा था।

उसके पास बैठे कुछ और अघोरी भजन और तंत्र-मंत्र का जाप कर रहे थे। लेकिन अघोरानंद बिल्कुल शांत था, उसकी आँखें बंद थीं, जैसे वह किसी दूसरी दुनिया से संवाद कर रहा हो।

कई साल पहले, वह भी एक साधारण व्यक्ति था। उसका नाम शिवानंद था। एक संपन्न ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के बावजूद, उसे हमेशा लगता था कि जीवन सिर्फ यह नहीं हो सकता जो उसे बताया गया है।

लेकिन एक दिन उसके पिता की मृत्यु हो गई। उसने अपनी आँखों के सामने उन्हें जलती चिता पर राख में बदलते देखा। उसी क्षण, उसकी दुनिया बदल गई।

"क्या सच में यह शरीर सब कुछ है? क्या इसके बाद कुछ नहीं?"

अपने उत्तरों की खोज में वह काशी के श्मशान घाट पहुँचा, जहाँ उसकी मुलाकात एक सिद्ध अघोरी गहिननाथ से हुई।

"जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझना चाहते हो?" गहिननाथ ने उससे पूछा।

शिवानंद ने सिर हिलाया।

"तो पहले तुम्हें अपने अहंकार और भय को त्यागना होगा। तुम्हें समझना होगा कि यह शरीर कुछ भी नहीं, आत्मा ही सत्य है।"

और उसी के साथ, उसकी अघोर साधना शुरू हो गई।

अघोरी साधना आसान नहीं होती। गहिननाथ ने उसे आदेश दिया कि वह श्मशान में रहे, चिताओं के बीच ध्यान करे, और अपनी चेतना को गहरी साधना में डुबो दे।

शिवानंद ने रातभर बिना भोजन और जल के साधना की। कई रातों तक, उसने महसूस किया कि कुछ है, जो उसे देख रहा है। लेकिन पहली बार, एक अजीब रात में, जब चारों ओर घना अंधेरा था, शिवानंद ने महसूस किया कि कोई उसके पास खड़ा है।

उसने आँखें खोलीं—कोई नहीं था।

लेकिन हवा में एक अजीब सरसराहट थी।

गहिननाथ ने अपनी आँखें खोले बिना कहा, "वे आ रही हैं।"

"कौन?"

"आत्माएँ।"

और उसी क्षण, उसने देखा—हवा में हलचल हुई, चिता की राख उड़ने लगी, और एक अस्पष्ट छाया उसके सामने प्रकट हो गई।

"तुम हमें देख सकते हो?" एक धीमी, कंपन भरी आवाज़ आई।

शिवानंद की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई, लेकिन गहिननाथ ने उसे शांत रहने का संकेत दिया।

"ये आत्माएँ भटकी हुई हैं," गहिननाथ बोले। "तुम्हारी साधना अब तुम्हें उनके अस्तित्व से जोड़ रही है। लेकिन डरना नहीं।"

धीरे-धीरे, शिवानंद महसूस करने लगा कि वे आत्माएँ उससे संवाद कर रही थीं। कुछ आत्माएँ शांति चाहती थीं, कुछ बदला लेना चाहती थीं, और कुछ बस जीवन और मृत्यु के बीच अटकी हुई थीं।

 

अघोरी साधना के वर्षों बाद, शिवानंद को आत्माओं से संवाद करने और उनकी ऊर्जा को महसूस करने की शक्ति मिल गई। अब वह जानता था कि आत्माएँ तीन प्रकार की होती हैं—

मुक्त आत्माएँ – जो अपने कर्मों के अनुसार मोक्ष पा चुकी थीं।भटकी आत्माएँ – जो किसी कारणवश मृत्यु के बाद भी इस संसार में अटकी हुई थीं।दुष्ट आत्माएँ – जो अपने क्रोध, प्रतिशोध या असंतोष के कारण किसी को भी हानि पहुँचा सकती थीं।

एक दिन, जब शिवानंद ध्यान कर रहा था, तब एक आत्मा उसके पास आई।

वह एक युवती की आत्मा थी, जिसकी हत्या कर दी गई थी।

"मुझे न्याय चाहिए," उसने करुणा भरी आवाज़ में कहा।

शिवानंद ने उसकी बात सुनी और अपने तंत्र साधनों से उसे मुक्ति दिलाने का प्रयास किया। कई घंटों के जाप और अनुष्ठान के बाद, वह आत्मा प्रकाश में विलीन हो गई।

गहिननाथ ने मुस्कुराकर कहा, "अब तुम जान गए हो कि अघोरी सिर्फ डरावने नहीं होते, वे आत्माओं को मुक्ति देने वाले भी होते हैं।"

अब शिवानंद पूरी तरह से अघोरी बन चुका था।

वह देख सकता था कि कोई व्यक्ति कब मरेगा।वह भटकती आत्माओं को शांत कर सकता था।वह तंत्र-मंत्र की साधना द्वारा किसी भी व्यक्ति को आध्यात्मिक दिशा दिखा सकता था।

लेकिन सबसे बड़ा ज्ञान जो उसने प्राप्त किया, वह यह था—

"मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि एक यात्रा है। आत्मा नष्ट नहीं होती, वह बस रूप बदलती है। जब तक कोई मोह-माया में बंधा रहेगा, तब तक वह इस चक्र से मुक्त नहीं होगा।"

अब शिवानंद का नाम बदलकर अघोरानंद रखा गया। उसने अपना सारा जीवन श्मशान में रहकर आत्माओं की मुक्ति के लिए समर्पित कर दिया।

फादर ने गहरी साँस ली और साहिल व रीतिका की ओर देखा।

"अगर इस आत्मा को रोका जा सकता है, तो सिर्फ अघोरानंद ही यह कर सकता है। लेकिन याद रखना… यह रास्ता आसान नहीं होगा।"

साहिल और रीतिका ने एक-दूसरे को देखा।

अब उनके पास दो ही विकल्प थे—

घर छोड़कर भाग जाना और उस आत्मा के कब्जे का इंतज़ार करना।अघोरानंद के पास जाना और उस आत्मा के रहस्य को हमेशा के लिए खत्म करना।

अब सवाल यह था—क्या वे इस खौफनाक रास्ते पर चलने के लिए तैयार थे?

 

 

क्या साहिल और रीतिका अघोरानंद की मदद लेकर आत्मा को हराने के लिए तैयार हैं, या वे डर के मारे भाग जाएंगे? 👀क्या आईना सच में एक दरवाज़ा है, और क्या वह आत्मा इसे पार करके पूरी तरह से इस दुनिया में आ जाएगी? 🔮क्या अघोरानंद का रहस्यमयी साधना आत्मा को शांत करने में सफल होगा, या यह रास्ता और भी खतरनाक हो सकता है? 🕯️

 

आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........