"बाकी आत्माएँ?" उसने धीमे स्वर में दोहराया।
अघोरानंद ने उसकी आँखों में देखा, "क्या तुम्हें याद है? वहाँ और भी आत्माएँ थीं। वे सभी तुमसे मदद माँग रही थीं। वे रो रही थीं। वे तुम्हें पुकार रही थीं। लेकिन तुमने सिर्फ माया की मदद की।"
रीतिका का पूरा शरीर ठंडा पड़ गया।
"हाँ…" उसकी आवाज़ फुसफुसाहट में बदल गई।
"हम तो वैसे भी कमजोर थे… वहाँ से बच निकलना मुश्किल था।"
अघोरानंद ने उसकी बात काट दी, "लेकिन तुम दोनों बच निकले थे। क्या तुमने कभी सोचा कि कैसे?"
रीतिका ने कुछ सोचने की कोशिश की।
"माया ने मदद की थी हमारी…" उसने धीरे से कहा।
अघोरानंद ने सिर हिलाया, "नहीं। माया अकेले तुम्हें बाहर नहीं निकाल सकती थी। वहाँ की बाकी आत्माओं ने मदद की थी। उन्होंने माया की शक्ति को और बढ़ाया, ताकि तुम दोनों वहाँ से बचकर आ सको।"
रीतिका का पूरा शरीर सुन्न हो गया था।
"तो…" उसकी आवाज़ काँप रही थी।
"तो तुमने उनका कर्ज़ नहीं चुकाया।"
रीतिका का खून जम गया।
"वे सब तुम्हारी मदद के लिए आगे आई थीं। लेकिन जब तुम बाहर आ गईं, तो तुमने उनकी पुकार सुनी ही नहीं।"
"नहीं…"
"वे सब छटपटाती रह गईं…
वे सब तुम्हें पुकारती रहीं… लेकिन तुम नहीं रुकीं।"
"नहीं!" रीतिका ने ज़ोर से कहा। "मैं कुछ नहीं कर सकती थी!"
अघोरानंद ने कहा, "और यही कारण है कि यह आत्मा तुम्हारी खुशियों को छीनना चाहती है। क्योंकि तुमने उनकी मदद नहीं की थी।"
रीतिका ने सिर पकड़ लिया। उसे ऐसा लग रहा था कि वह किसी बुरे सपने में फँस गई हो।
"हमने कुछ गलत नहीं किया!"
"हम सिर्फ अपनी ज़िंदगी बचाना चाहते थे!"
"हम वहाँ से भाग निकले, इसका मतलब यह नहीं कि हमने कुछ गलत किया!"
अघोरानंद ने गहरी आवाज़ में कहा, "पर आत्माएँ यह नहीं समझतीं, रीतिका। उन्हें तो बस इतना पता है कि तुमने उन्हें छोड़ दिया। तुमने उन्हें रोता हुआ वहीं पर छोड़ दिया।"
और फिर…
रीतिका का सिर अचानक झटका खा गया।
उसके कानों में एक अजीब-सी फुसफुसाहट गूँज उठी।
"तुम हमें भूल गईं, रीतिका…"
"तुम हमें छोड़कर चली गईं…"
"अब हम तुम्हें छोड़कर नहीं जाएँगे…"
उसका पूरा शरीर सुन्न पड़ गया। उसकी आँखें फैल गईं।
अघोरानंद और फादर एंथनी ने तुरंत देखा कि रीतिका अब एकदम सीधी खड़ी हो गई थी।
उसकी आँखें एक पल के लिए सफेद हो गईं।
साहिल और आन्या अब भी बेहोश पड़े थे।
और अब…
अब आत्माएँ रीतिका को घेरने लगी थीं।
अब यह सिर्फ आन्या की लड़ाई नहीं थी।
अब यह रीतिका के लिए भी मौत का खेल बन चुका था।
रीतिका के होंठ हल्के से फड़फड़ाए, मानो कुछ कहना चाहती हो, लेकिन कोई शब्द बाहर नहीं निकला। उसकी आँखों के सामने अंधेरा गहराने लगा, जैसे पूरी दुनिया किसी गहरे कुएँ में समा रही हो। उसका सिर अचानक हल्का महसूस हुआ, पैरों तले ज़मीन डगमगाने लगी।
उसके कानों में कोई अजीब-सी भनभनाहट गूँज रही थी, जैसे सैकड़ों फुसफुसाहटें एक साथ उसे बुला रही हों। दिल की धड़कन अनियमित हो गई—कभी तेज़, कभी धीमी। एक ठंडी लहर उसकी रीढ़ के नीचे तक दौड़ गई।
फिर, अचानक, उसका शरीर शिथिल पड़ गया। उसकी पलकें भारी हो गईं, और देखते ही देखते उसका संतुलन बिगड़ गया। उसकी देह किसी टूटी हुई गुड़िया की तरह धीमे-धीमे ज़मीन की ओर गिरने लगी। उसके हाथ लड़खड़ाकर हवा में झूल गए, और फिर उसके घुटने मुड़े।
धरती से टकराने के एक क्षण पहले, उसकी साँसें थम-सी गईं। उसके चेहरे पर स्थिरता आ गई—न कोई डर, न कोई दर्द, बस एक रहस्यमयी शांति। अगला ही पल, उसके शरीर ने ज़मीन को छू लिया, और सन्नाटा छा गया… पूर्ण अंधकार।
अघोरानंद अब भी अपनी ध्यान अवस्था में थे। उनके चारों ओर जलती हुई मशालें अजीबोगरीब छायाएँ बना रही थीं। हवा में घुली हुई धूप और राख की गंध माहौल को और रहस्यमय बना रही थी। उनकी आँखें बंद थीं, लेकिन उनके मन की दृष्टि सबकुछ देख रही थी। हर हलचल, हर छाया, हर श्वास उन्हें साफ़ सुनाई दे रही थी।
सामने फादर एंथनी बेचैनी से इधर-उधर घूम रहे थे। उनके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं, जबकि कमरे की हवा असहनीय रूप से ठंडी हो चुकी थी। उन्होंने गहरी साँस लेते हुए कहा,
"हमें इसे रोकना होगा! हमें इस आत्मा को खत्म करना होगा!"
लेकिन अघोरानंद शांत थे। उन्होंने अपनी आँखें खोले बिना ही कहा, "नहीं... अभी वक्त नहीं आया है।"
फादर ने गुस्से और घबराहट में मुट्ठियाँ भींच लीं। उनकी साँसें तेज़ हो गई थीं।
"क्यों? क्यों नहीं? अगर हम अभी इसे नहीं रोकते, तो यह हमें ही खत्म कर देगा!"
अचानक, अघोरानंद ने अपनी आँखें खोलीं। उनकी लाल, गहरी आँखों में एक सच्चाई झलक रही थी, जिसे फादर अब तक समझ नहीं पाए थे। उनकी आवाज़ गूँज उठी,
"क्योंकि इस आत्मा को सिर्फ आन्या ही खत्म कर सकती है।"
फादर के चेहरे पर भय और अविश्वास की लहर दौड़ गई।
"क्या?" उनकी आवाज़ अब एक फुसफुसाहट में बदल गई थी।
"हां। यह आत्मा सिर्फ और सिर्फ आन्या के लिए ही बुलाया गया है। कोई अपना ही है, जिसने यह आत्मा आन्या को मारने या फिर उसे अपने वश में करने के लिए भेजी है। यह सिर्फ एक बदला नहीं है..." अघोरानंद ने एक गहरी साँस ली, "... यह उससे कहीं ज्यादा गहरी साज़िश है।"
फादर की रीढ़ में ठंडक दौड़ गई। कमरे की हवा अब भारी हो चुकी थी।
"तो क्या... क्या कोई अपने ही परिवार का व्यक्ति है, जिसने आन्या के खिलाफ यह आत्मा बुलाई?"
कमरे के कोनों में अंधकार घना हो गया। मानो कोई परछाईं वहाँ चुपचाप सब सुन रही हो।
फादर की आवाज़ अब और भी घबराई हुई थी, "लेकिन... आन्या तो अभी बहुत छोटी है! वह आत्मा से कैसे लड़ेगी?"
अघोरानंद ने अपनी माला को पकड़ते हुए कहा, "इसलिए हमें इसे अभी के लिए बंद करना होगा।"
फादर ने उलझन में कहा, "मतलब?"
"मतलब, मैं इस आत्मा को खत्म नहीं कर सकता। मैं इसे कुछ सालों के लिए बंद कर सकता हूँ, इसकी ताकत को कमज़ोर कर सकता हूँ। लेकिन इसका पूरा खात्मा केवल आन्या ही कर सकती है। जब तक वह बड़ी नहीं होती, तब तक यह आत्मा खत्म नहीं होगी।"
फादर के हाथ काँप गए। उनके चेहरे का रंग सफ़ेद पड़ गया था।
क्या यह आत्मा सच में आन्या के लिए ही बुलाई गई थी, या कुछ और गहरी साज़िश है? 😱 क्या कोई अपने ही परिवार का सदस्य है, जिसने आन्या को मारने के लिए यह आत्मा भेजी है? 👀 क्या आन्या इस खतरनाक आत्मा का सामना करने के लिए तैयार होगी, या यह खेल मौत तक जाएगा? ⚡
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए रांझन with सफ़र ........