मिश्रा ने अपनी 19 के दशक की मोटर -साईकल जयशंकर के घर के आगे रोक दी । उसने पीछे बैठे अमन को देखकर कहा
' यहां से सामने ओटो ले लेना ... घर जाकर आराम करो '
अमन उतरा और जयशंकर के पूराने से घर को देखने लगा
' सर क्या ये उस शैतान का घर है '
' हा, पर वो शैतान नही है ' मिश्रा ने कहा और अंदर चला गया । अमन पीछे - पीछे चल पड़ा
' वह शैतान से कम नही था , मैने बहुत करिब से देखा है उसे '
' तुम पीछे क्यो आ रहे हो ... कहा न घर जाओ ' मिश्रा ने कहा
' सर आपको तो चाय लेने के लिये भेजा था न इस्पेक्टर ने '
' हा तो , तुम्हे क्या करना ' मिश्रा ने कहा
वे दोनो बाते करते हुए घर के काफी अंदर जा चुके थे
' अर ... जाओ भी '
' सर आपको मदद की जरूरत होगी ' अमन ने फोन की टॉर्च चालू कर इधर उधर देखते हुए कहा ।
अभी भी बदबू गई नही थी ... पूरे घर मे घोर अंधेरा था
' ये शैतान अंधेरे मे ही रहता था क्या ' अमन ने आगे बढ़ते हुए कहा
' चुप रहोगे ' मिश्रा काफी देर तक फाइले , किताबे , ड्राअर , अलमारी टटोलता रहा ....
' लगता है टाइम वेस्ट ही हुआ यहां आकर ' मिश्रा पसीना पोछते हुए खुद से बोला
' क्या ये कुछ काम का है ' अमन ने झुक कर एक पेपर उठा लिया
' क्या है वो ? '
' इन्विटेशन है किसी स्कूल का .... अ अ ... 1985 बेंच का रियूनियन का ' अमन ने पढ़कर कहा
' इधर दो ' मिश्रा ने वह आमत्रण पत्र लिया , ' हम्मम ' मिश्रा ने उसे गौर से देखा , ' 23 अक्टूबर को प्रोग्राम था .... यानि 7 दिन पहले ... सारे पुराने दोस्त मिले ... 1985 बेंच '
' आप ढूढ़ना क्या चाहते हो ? ' अमन ने पूछा
' ऐसा कुछ जिससे पता चले कि जयशंकर ऐसा कैसे बन गया '
' शैतान है सर वो '
मिश्रा की नजर कमरे के कोने मे फर्श पर पड़ी जहां काला सा कोई द्रव गिरा हुआ था । उसने जब बैठकर सूघा तो नई सी बू आई । उसने उसे उंगली से टच करके देखा ये चिपचिपा सा लगा और त्वचा मे उस उंगली मे जलन सी होने लगी ....
आह आह ओ
अमन ने भाग कर उस पर पानी गिरा दिया ... तब जाकर जलन कम हुई पर पूरी तरह से जलन खत्म नही हुई
' ये है क्या ? ' अमन ने पूछा
' ये तो डॉक्टर ही बतायेगा ' मिश्रा ने कहा , ' एक काम करोगे .... इसका सैम्पल लेकर फोरेन्सिक डिपार्टमेंट जाओगे?'
' बिल्कुल सर '
' ठीक है फिर , वहां जाओ ... मेरा नाम ले लेना .... पता करके ही आना ... क्या है ? ... जयशंकर अभी भी आजाद घूम रहा है और शायद उसके जैसे 2 और है '
' दो और .... ठीक है सर '
मिश्रा के फोन की घण्टी बजी
' चाय कब लायेगा ... मोटे ' राजेश की आवाज आई
'सॉरी सर .. '
'चुप '
' सॉरी सर '
'जल्दी आ '
' जी सर '
' मै जाकर चाय देकर आता हूं '
अमन काफी समय बाद हल्का सा मुस्कुरा दिया ।
**
जय ने दरवाजा खटखटाया जिसकी नेमप्लेट पर
हरी कीर्तन पुरी
संध्या पुरी
लिखा था
दरवाजा किसी औरत ने खोला ।
' जी ,संध्या जी से मिलना है? ' जय ने कहा
' हा मै ही हू ...... कहो ' औरत ने जवाब दिया
जय ने उस महिला को ढंग से देखा ... वो बिल्कुल ठीक थी ना जयशंकर सी हुई थी न ही मानव सी अजीब ...
' हैलो ' नन्द ने हाथ मिलाने के लिये आगे बढा दिया
पहले वह औरत झिझकी पर फिर उसने हाथ मिला लिया
नन्द ने इशारे से जय और संजना को बताया कि वह गर्म नही थी ।
' हा संध्या सिन्हा जी मै ये कह .... ' संजना ने बोलना शुरू किया
' मै सिन्हा नही हू ... गलत जगह आये हो ' उसने धड़ाम से दरवाजा बंद कर दिया
' ये तो ठीक ही है जय ' संजना ने कहा
' शायद तुम्हारा अंदाजा गलत था जय ' नन्द ने कहा
' तो सिर्फ मानव और मेरे पापा ही है बस ' जय ने जैसे खुद से ही कहा हो
' वह इकलौती है जो ठीक है हमे उससे पूछ भी तो सकते है कि उस दिन क्या हुआ ' नन्द ने सुझाव दिया
' पता नही ... क्या करे '
***
'अंदर कहां घूसे आ रहे हो भई ' एक औरत ने अमन को मुख्य लैब में घुसते हुए देखने पर कहा
' वो मैडम ... मि .. मिश्रा जी ने भेजा है _ इसकी जांच करने के लिए ' (अमन ने एक काले चिपचिपे द्रव की थैली आगे कर दी )
प्लास्टिक की थैली पूरी तरह से मैली थी और द्रव बाहर भी आ गया था और अमन के हाथ भी द्रव से काले हो गये थे
'छी _ दूर ,दूर रखो ___ डॉक्टर आकर देख लेगें , वहां रख दो इसे और वॉशरूम लेफ्ट में है हाथ साफ कर लो _ _ _ पता नही क्या ही है ये '
' जी ' अमन ने कहा और लाचार चेहरे के साथ बाथरूम की तरफ चला गया ।
जब लौटा तो वह औरत उस द्रव की जांच कर रही थी ___
' डॉक्टर आज नही आ पायेंगे तो मैं ही देख लेती हूं बस इसलिए क्योंकि मिश्रा जी ने भेजा है '
थैंक्यू - अमन
' तुम वही हो न हॉस्पीटल में से शक के बेस पर पकड़े गये थे ' अपना काम करते हुए लेडी ने पूछा
' हा ' बेहयापन से जवाब दिया
' मिश्रा जी ने काम पर लगाया है तो सोचकर लगाया होगा '
अमन ने कुछ नही कहा बस एक तरफ पड़ी शारदा की बॉडी जो जाँच के लिए आयी थी , को देखे जा रहा था
' सुनो अभी कुछ कह पाना मुश्किल है थोड़ा टाईम लगेगा ' इतना कहकर उस औरत ने अपना हाथ अमन के कंधे पर रखकर उसकी भावना समझकर उसे सांत्वना दी ।
अमन को अपने कंधें से पूरे शरीर में जबरदस्त गर्मी का प्रवाह होता महसूस हुआ
उसने झटके से खुद को उस औरत से दूर कर दिया और उसके सफेद कोट पर उसका नाम पढ़ा
डॉ.संध्या पुरी
*****
जय ने छत पर सिर झुकाए नंद को देखा जिसने अभी -अभी हवलदार मिश्रा का फोन कट किया था
'कहा कहा ढूढ़ा तुझे भाई , चल आ जा निकलते है । बॉस के घर जाकर कुछ पता चले शायद ' जय ने उसके कंधे पर थपकी देते हुए कहा
जय कुछ समझ पाता उससे पहले नंद ने उसके ऊपर झपट कर उसे मुक्के -लातों से मारने लगा । उसने पास पड़े गमले को उठाकर जय के सिर फोड़ना चाहा पर संजना ने समय रहते हुए उसे धक्का मार दिया
' पागल हो गये हो नंद ' संजना ने चिल्लाकर रोते हुए कहा
जय का चेहरा उसी के रक्त से भरा पड़ा था
नंद ने लाल आंखों से संजना को देखा । उसने गुस्से से फिर से जय को पेट पर लात मारी और चिल्लाया
' भेन् *** , सबकुछ छीन लिया तेरे बाप ने मेरा । उसने मेरे माँ बाप को मार डाला ' उसने एक ओर लात मारी और हंसने लगा
' तेरा बाप हैवान है __ उसे तो मैं ही जान से मारूंगा '
' संजना ' ( नंद चीखा ) , 'कह देना इसे दूर रहे मुझ से । ' इतना नंद सीढ़िया उतर गया
संजना ने जय को अपनी गोद मे सुलाकर उसके जख़्मो को देखकर सहसा रोने लगी।